Kashi ki Kasturi, जिस दौर में सुचरिता ने अपना शहर छोड़ा, उस दौर में लड़कियों का घर से निकलना मना था। आप समझ सकते हैं असम के डिब्रूगढ़ से निकल कर काशी आना और यहां न सिर्फ संगीत बल्कि के चुनौतपूर्ण क्षेत्र को चुना बल्कि उसमें गौरवान्वित करने वाला ओहदा भी हासिल किया। यह इस बात का प्रमाण है कि आप के संकल्प में शक्ति है। आप धैर्य रखना जानते हैं और विवेकपूर्ण निर्णय करने में निपुण हैं।
ये बातें उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष पद्मश्री प्रो. राजेश्वर आचार्य ने कहीं। वह रविवार को बीएचयू के कला संकाय स्थित राधाकृष्ण सभागार में ‘काशी की कस्तूरी’ पुस्तक के विमोचन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
सुचरिता गुप्ता के जीवन संघर्षों पर उनकी दत्तक पुत्री डा. शबनम द्वारा लिखी पुस्तक के विमोचन के उपरांत मुख्य अतिथि ने कहा कि लेखकीय कौशल से पुस्तक और भी प्रभावशाली हो गई है। ऐसा ही एक प्रकरण है जिसे पढ़ते समय पूरे घटनाक्रम का चित्र मेरे समक्ष बन गया था। वह घटना सुचरिता गुप्ता के बचपन की है। लड्डुओं से उन्हें बहुत प्रेम था।
उनकी दादी गोपालजी को भोग लगाने के लिए रोज लड्डू बनातीं। एक रोज जब उनसे लोभ संवरण नहीं हुआ तो वह लड्डुओं की थाली गोपालजी के आगे करके बोली लो जल्दी से तुम खा लो ताकि मैं भी खा सकूं। बेशक यह उस बच्ची की शैतानी थी लेकिन उस शैतानी में भी समर्पण छिपा था जिसने कालांतर में दिशा पाई और हमारे सामने एक सशक्त कलाकार सुचरिता गुप्ता के रूप में उपस्थित है।
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विमोचन समारोह की अध्यक्ष लाल बहादुर शास्त्री एयरपोर्ट की निदेशक आर्यमा सेन ने कहा कि संगीत और समर्पण एक दूसरे के पर्याय हैं। दोनों का जब एक साथ संवेदित होते हैं तो सुचरिता गुप्ता जैसी गायिका आकार लेती है। मैं सौभाग्यशाली हूं कि काशी में मेरी पोस्टिंग हुई और मुझे यहां की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने वाली विभूतियों के दर्शन का अवसर मिलता है।
काशी कला कस्तूरी के संरक्षक केशव जालान ने कहा कि अभी सुचरिता गुप्ता को और भी मंजिलें पानी हैं और हम उम्मीद करते हैं कि जल्द ही एक और कृति उनके कृतित्व पर लिखी जाएगी। विशिष्ट अतिथि बीएचयू के प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि जिन क्रूर घटनाक्रमों से दो चार होते हुए सुचरिता गुप्ता ने यह लक्ष्य हासिल किया है।
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वह सबके बूते की बात नहीं। विशिष्ट अतिथि एयर कमांडर अनुज गुप्ता ने कहा डा. शबनम ‘काशी की कस्तूरी’ का लेखन कर सुचरिताजी की संगीत यात्रा को सार्वजनिक किया है। विशिष्ट अतिथि बीएचयू की उप कुलसचिव सुनिता चंद्रा ने कहा कि यह कृति नारी के सशक्त व्यक्ति का परिचय है। विशिष्ट अतिथि फादर चंद्रकांत ने कहा जब जब काशी के संगीत समाज की चर्चा होगी सुचरिता गुप्ता का नाम जरूर लिया जाएगा।
आरंभ में पुस्तक परिचय देते हुए लेखिका डॉ. शबनम ने कहा कि यह पुस्तक एक बेटी की ओर से मां को तोहफा है। यह किताब लिखना मेरे लिए बहुत बड़ी चुनौती थी। मेरा संगीत से सीधा कोई सरोकार नहीं था लेकिन जब संगीत यात्रा कलमबंद करने की बात आई तो पहले मैंने संगीत को समझना शुरू किया।
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समझने के बाद संगीत का रस आने लगा तो शब्द भी मिलने लगे। नगर के वरिष्ठ साहित्यकारों, कला समीक्षकों और संस्कृति कर्मियों के सहयोग से मैंने इस कृति का लेखन आरंभ किया और देखते ही देखते यह लेखन पूरा हुआ। मैं एक खास बात कहना चाहूंगी कि यदि डा. स्मिता भटनागर ने मेरा हाथ न पकड़ा होता तो मैं किस कृति को इसके वर्तमान स्वरूप में प्रस्तुत नहीं कर पाती। कार्यक्रम का संचालन मुर्तुजा आलम ने किया।
इस अवसर पर सप्तक समूह की महिलाओं ने भी सुचरिता गुप्ता का सम्मान किया। उपस्थित जनों में नगर के कई वरिष्ठ संस्कृति सेवी भी उपस्थित रहे। इनमें कला प्रकाश के पं. हरिराम द्विवेदी, प्रो. टीएम. महापात्रा, सरोजनी महापात्रा, प्रो. मुकुलराज मेहता, डॉ. यूपी शाही, वीएस.विद्यार्थी, प्रभाष झा, फादर चंद्रकांत, अशोक कपूर, डॉ.मंजरी पांडेय, डॉ.लियाकत अली, डॉ. हसन शईद, विश्वनाथ गोकर्ण, डॉ. विधि नागर,डॉ. संजय कुमार, प्रो. संगीता पंडित,डॉ. एनके.शाही, नरेंद्र आचार्य, देवाशीष डे, प्रो. वजीर हसन, प्रो. सुनील चौधरी आदि उपस्थित रहे।