Teesta Setalvad 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े मामले में जमानत पर हैं। साक्ष्यों को कथित रूप से गढ़ने के एक मामले में गुजरात उच्च न्यायालय ने उनकी नियमित जमानत याचिका खारिज कर दी। इस आदेश के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं।
पहले दो जजों की पीठ में जमानत पर सहमति न बन पाई तो मामला चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के बाद गया और बड़ी बेंच के पास भेजने का सुझाव दिया गया। शीर्ष अदालत ने शनिवार को रात में ही तीन न्यायाधीशों की पीठ गठित की।
शनिवार रात नौ बजे के बाद बैठी सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने
इससे पहले तीस्ता सीतलवाड की ओर से वरिष्ठ वकील सीयू सिंह ने बहस शुरू की। सीयू सिंह ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उन्हें पिछले साल 22 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत दी थी। उन्होंने जमानत की किसी भी शर्त का उल्लंघन नहीं किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि तीस्ता 10 महीने से जमानत पर हैं। शीर्ष अदालत ने उन्हें हिरासत में लेने की तत्काल जरूरत को लेकर सवाल किया। कोर्ट ने पूछा? “अगर अंतरिम संरक्षण दिया गया तो क्या आसमान गिर जाएगा… उच्च न्यायालय ने जो किया है उससे हम आश्चर्यचकित हैं। इतनी चिंताजनक तात्कालिकता क्या है?”
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि किसी व्यक्ति को जमानत को चुनौती देने के लिए सात दिन का समय क्यों नहीं दिया जाना चाहिए, जबकि वह व्यक्ति इतने लंबे समय से बाहर है।
सॉलिसिटर ने कहा, ”जो दिखता है उससे कहीं ज्यादा कुछ है। इस मामले को जिस सहज तरीके से प्रस्तुत किया गया है, उससे कहीं अधिक कुछ है। यह उस व्यक्ति का सवाल है जो हर मंच पर गाली दे रहा है।”
उन्होंने कहा, एसआईटी (2002 गोधरा दंगा मामले पर) सुप्रीम कोर्ट ने गठित की थी। इसने समय-समय पर रिपोर्ट दाखिल की है। गवाहों ने एसआईटी को बताया कि उन्हें उन सामग्रियों के बारे में जानकारी नहीं है जो कथित तौर पर तीस्ता ने तैयार कराए।
सीतलवाड़ ने भी SIT को बयान दिया था। उनका ध्यान विशेष क्षेत्र पर था जो गलत पाया गया। सॉलिसिटर जनरल का कहना है कि सीतलवाड ने झूठे हलफनामे दायर किए, गवाहों को पढ़ाया।
जिरह के बाद देश की सबसे बड़ी अदालत ने एक बार फिर पर्सनल लिबर्टी की रक्षा करते हुए तीस्ता को अंतरिम राहत प्रदान की। कोर्ट ने कहा कि अंतरिम राहत की अवधि में तीस्ता को हिरासत में रखने या गिरफ्तार करने पर रोक लगा दी गई है।