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  • November 22, 2024
  • Last Update November 16, 2024 2:33 pm
  • Noida

Makar Sankranti : 14-15 जनवरी दोनों दिन मकर संक्रांति, पंचांग क्या कहता है ? किस दिन दान कर खाएं दही-चूड़ा-तिलकुट

Makar Sankranti : 14-15 जनवरी दोनों दिन मकर संक्रांति, पंचांग क्या कहता है ? किस दिन दान कर खाएं दही-चूड़ा-तिलकुट

Makar Sankranti इस साल 15 जनवरी को है। पंचांगों के अनुसार स्नान-दान का मुहूर्त देखने के दृष्टिकोण से 15 जनवरी को मकर सक्रांति मनाना शुभ है, क्योंकि 14 जनवरी की रात में सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे। हालांकि, जो पंचागों को नहीं मानते है वो 14 जनवरी को भी मकर सक्रांति मना सकते है। भगवान सूर्य नारायण के मकर राशि में प्रवेश को मकर संक्रांति और सूर्य उत्तरायण के साथ खिचड़ी नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि इसके बाद से सूर्य उत्तर दिशा में गमन करते हैं। शास्त्रों में खिचड़ी को नवग्रह का प्रसाद माना जाता है। संक्रांति के साथ ही देशभर में पोंगल, गुड़ी पर्व, बिहू, लोहड़ी और पतंग पर्व भी मनाया जाता है।

क्या खाना शुभ होता है

मकर सक्रांति के दिन खिचड़ी को विशेष तौर पर खाया जाता है और इसे खाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है, साथ ही आज के दिन तिल का सेवन किया जाता है। दही, चूड़ा (पोहा), गुण व मिठाई का भोजन करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार खिचड़ी में मिलाए जाने वाले चावल, हल्दी, हरी सब्जियां ,काली दाल, आदि का अलग-अलग ग्रहों से संबंध है।

खिचड़ी को बनाने में उपयोग होने वाली सामंग्री जैसे चावल, माना जाता है कि चावल चंद्रमा और शुक्र ग्रह की शांति के लिए बहुत लाभकारी है। हल्दी का बृहस्पति से संबंधित है, हरि सब्जियों का संबंध बुध से है। वहीं काली दाल के सेवन से शनि, राहू- केतू के दुष्प्रभाव समाप्त होते है। खिचड़ी में घी का संबंध सूर्य से है। खिचड़ी के साथ गुड़ खाने का भी विधान है जिसका संबंध मंगल से है। मकर संक्रांति पर खिचड़ी के उपयोग से नवग्रह की कृपा प्राप्त होती है, साथ ही आरोग्य का वरदान मिलता है। मकर संक्रांति पर खिचड़ी का दान करने से हर कार्य में सफलता मिलती है।

कैसे करें पूजा

पुण्यकाल में स्नान करने के बाद चूड़ा- दही, तिल, मिठाई खिचड़ी सामग्री, गर्म कपड़े दान करने व इसे ग्रहण करने से सुख- समृद्धि आती है। मकर राशि में सूर्य का प्रवेश होते ही देवताओं के लिए दिन और देत्यों के लिए रात शुरू होती है। खरमास खत्म होने के साथ ही माघ शुरू हो जाता है।

गोरखनाथ से भी जुड़ी है मकर सक्रांति

पौराणिक कथा के अनुसार खिलजी और उसकी सेना से युद्ध लड़ने के कारण नाथ योगी न ही भोजन पका पाते थे, न खा पाते थे। इस वजह से हर दिन योगी अक्सर भूखे रह जाते थे। इस समस्या का हल निकालने के लिए बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्ज़ी को मिलाकर एक पकवान बनाने को कहा, जिसे नाम दिया गया खिचड़ी। इस वजह से हर साल मकर संक्रांति पर बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का खास भोग लगाया है।

भारतवर्ष में समय समय पर हर पर्व को श्रद्धा, आस्था, हर्षोल्लास एवं उमंग के साथ मनाया जाता है। पर्व एवं त्योहार प्रत्येक देश की संस्कृति तथा सभ्यता को उजागर करते हैं। मध्यम मान से सूर्य एक राशि पर एक महीना रहता है , सूर्य जिस राशि पर स्थित हो, उसे छोड़कर जब दूसरी राशि में प्रवेश करे, उस समय का नाम संक्रान्ति है। ऐसी बारह संक्रान्तियों में मकरादि ६ और कर्कादि ६ राशियों के भोगकाल क्रमशः उत्तरायण और दक्षिणायन ये दो अयन होते हैं। मकर संक्रान्ति देवताओं की मध्यरात्रि है।
मकर – संक्रान्ति का पर्व का हमारे देश में विशेष महत्व है। इस‌ सम्बन्ध में संत तुलसीदास जी ने श्रीरामचरित मानस में लिखा है-

माघ मकरगत रबि जब होई।
तीरथपतिहिं आव सब कोई।।

ऐसी मान्यता है कि गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर प्रयाग में मकर -संक्रान्ति के पर्व के दिन सभी देवी देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान के लिये आते हैं। अतएव वहाँ मकर – संक्रान्ति पर्व के दिन स्नान करना अनन्त पुण्यों को एक साथ प्राप्त करना माना जाता है। इस दिन स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध, तथा अनुष्ठान आदि का अत्यधिक महत्व है। इस अवसर पर किया गया दान सौ गुना होकर प्राप्त होता है।

इस वर्ष भगवान् सूर्य मकर राशि में शनिवार 14 जनवरी को रात्रि में 2 बजकर 25 मिनट पर प्रवेश कर रहे हैं। सूर्यास्त के बाद मकर संक्रांति होने पर पुण्यकाल अगले दिन होता है। अतः इस वर्ष रविवार 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनायी जाएगी।

धर्मसिन्धु में कहा गया है कि-

रविसंक्रमणे प्राप्ते न स्नायाद्यस्तु मानवः।
सप्तजन्मनि रोगी स्यान्निर्धनश्चैव जायते।।

अर्थात मकर-संक्रान्ति के दिन स्नान न करने वाला व्यक्ति जन्मजन्मान्तर में रोगी तथा निर्धन होता है।

मकर संक्रान्ति पर्व महोत्सव का रूप धारण कर चुका है। आज के दिन भारतवर्ष में पतंग उड़ाने का कार्य होता है। मकर संक्रान्ति के दिन भगवान शिव का घी से अभिषेक करने का विशेष फल होता है। स्वर्ण दान तथा तिल से भरे पात्र का दान करना अक्षय फल को देता है।

विभिन्न परम्पराओं और रीति-रिवाजों के अनुरूप प्रदेशों में भिन्न -भिन्न रूप से मनाया जाता है। उत्तर भारत में गंगा यमुना के किनारे बसे गाँवों नगरों में मेलों का आयोजन होता है। जिसमें बंगाल गंगासागर का मेला प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त दक्षिण बिहार में मदार-क्षेत्र में भी एक मेला लगता है। महाराष्ट्र और गुजरात में मकर संक्रान्ति पर अनेक खेल प्रतियोगिताओं का भी आयोजन होता है। पंजाब एवं जम्मू-कश्मीर मेम लाहिड़ी के नाम से मकर संक्रान्ति पर्व मनाया जाता है। सिन्धी समाज भी मकर संक्रान्ति के एक दिन पूर्व इसे लाल लोही के रूप में मनाता है। तमिलनाडु में मकर संक्रान्ति को पोंगल के रूप मेम मनाया जाता है। तमिल पंचाग का नया वर्ष पोंगल से शुरु होता है।

भारतीय ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में हुए परिवर्तन को अन्धकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है। मकर संक्रान्ति से दिन बढ़ने लगता है और रात्रि का समय कम होने लगता है। स्पष्ट है कि दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा और रात्रि छोटी होने से अन्धकार की अवधि कम होगी। हम सब जानते हैं कि सूर्य ऊर्जा का अजस्त्र स्त्रोत है। इसके अधिक देर चमकने से प्राणिजगत् में चेतनता और उसकी कार्यशक्ति में वृद्धि हो जाती है। इसीलिए हमारी संस्कृति में मकर संक्रान्ति पर्व मनाने का विशेष महत्व है।

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