Earthquake Turkey के बाद न्यूजीलैंड में भी कहर दिखा रहा है। भूकंप का एक कनेक्शन बनारस और इस शहर के ऐतिहासिक संस्थान काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से भी है। यहां रहने वाले एक जीनियस भूकंप की भविष्यवाणियां बादलों को देखकर (Earthquake Predictions by looking at Clouds) करते हैं। इनका सिद्धांत है कि भूकंपीय तरंगें बादलों (Seismic Waves clouds) की दिशा निर्धारित करती हैं। खालिस बनारसी अंदाज वाले प्रतिभाशाली भारतीय को शकील अहमद (Shakeel Ahmed) के रूप में जाना जाता है। कुर्ता-लूनी पहने शकील भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा और जटिल वैज्ञानिक विषय पर अपनी स्किल बीएचयू के प्रबुद्ध वैज्ञानिकों के सामने भी दिखा चुके हैं।
इनकी चर्चा इसलिए क्योंकि अभी हाल ही में तुर्की और सीरिया में भीषण भूकंप आया। इसमें 40 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई है। प्राकृतिक आपदा की मार ऐसी होती है जिसे रोक पाना तो दूर टालना भी असंभव लगता है। हालांकि, विज्ञान की मदद से यदि आपदा से अलर्ट रहकर पहले से एहतियात बरता जाए तो नुकसान को कम किया जा सकता है। भले ही भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा का नाम सुनते ही लोगों की रुह कांपने लगती है। ऐसी त्रासदी में हजारों की संख्या में लोगों की मौत होती है। साथ ही आर्थिक सामाजिक नुकसान भी चिंता पैदा करता है। हर तरफ रूह कंपाने वाले मंजर देखने को मिलते हैं, लेकिन बिंदास जीवन और बेबाकी के लिए मशहूर बनारस के शकील अहमद यहां के आसमान में दिखने वाले बादलों को देखकर दुनिया के किसी भी कोने में भूकंप का अनुमान लगाने का दावा करते हैं।
विज्ञान की तरक्की और आधुनिक आविष्कारों के बीच कोई इंसान ऐसा भी है जो बादलों को देखकर प्राकृतिक आपदा या भूकंप की भविष्यवाणी कर सकता है। भारत के सबसे अलबेले, आध्यात्मिक और सबसे पुराने लेकिन जीवित शहर का दर्जा रखने वाले बनारस में रहने वाले ये शख्स करीब 40 साल से भूकंप और प्राकृतिक आपदाओं की भविष्यवाणी कर रहे हैं।
वाराणसी के छित्तनपुरा में रहने वाले शकील अहमद सन 1982 से ही बादलों को देखकर भूकंप या अन्य प्राकृतिक आपदा की भविष्यवाणी कर रहे हैं। देश-विदेश के अखबार समय-समय पर इनकी भविष्यवाणियों को छपते भी रहे हैं। आपको बता दें कि 25 से 30 जनवरी के भीतर ही शकील अहमद ने तुर्की और सीरिया में आने वाले 7 पॉइंट 8 रिक्टर स्केल से अधिक के भूकंप की भविष्यवाणी कर दी थी।
खबर हिंदी की टीम ने जब शकील अहमद के बारे में रिसर्च किया तो करीब 14 साल पुरानी कई अखबारों की रिपोर्ट सामने आई। रिपोर्ट के मुताबिक उस समय 12वीं पास रहे शकील बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU)में ‘बादलों का प्रभाव भूकंप की भविष्यवाणी’ (Impacts of clouds on earthquake prediction) विषय पर प्रस्तुति दे चुके हैं।
भले ही भूभौतिकी, भूविज्ञान और भूगोल विषयों में विभागों के विशेषज्ञों को अपने तर्कों से समझाने में सफलता नहीं मिली। कहना गलत नहीं होगा कि बीएचयू जैसे विश्वविद्यालय के मंच पर कुलपति रहे प्रो पंजाब सिंग के निर्देश पर शकील अहमद की प्रस्तुति भी कम बड़ी बात नहीं थी। इस मामले की जानकारी रखने वाले भूभौतिकी विभाग के प्रोफेसर वीपी सिंह के अनुसार शकील विशेषज्ञों को समझाने में नाकाम रहे। इसकी विस्तृत रिपोर्ट वीसी के पास भेजी गई और ये चैप्टर हमेशा के लिए बंद करने की सिफारिश की गई। हालांकि, इससे शकील निराश नहीं हुए और उन्होंने बादलों को देखकर भूकंप की भविष्यवाणी भी बंद नहीं की।
शकील दावा करते हैं, अगर मुझे पर्याप्त तकनीकी सहायता प्रदान की जाए तो मैं अधिक सटीक भविष्यवाणी कर सकता हूं।” बनारस में बैठकर दुनिया के किसी भी कोने में भूकंप का पूर्वानुमान कैसे लगता हैं? इस पर शकील कहते हैं कि वे दिशा का पता लगाने के लिए केवल कम्पास और मानचित्र का उपयोग कर बादलों के आधार पर एशिया और यूरोप के देशों में भूकंप की भविष्यवाणी कर सकते हैं। मौसम विज्ञान के बारे में उन्हें करीब 25 साल पहले भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) दिल्ली के वैज्ञानिकों के पैनल से मिलने का मौका मिला था। शकील बताते हैं कि IMD ने उन्हें भूकंप के आंकड़े उपलब्ध कराए, फिर भी उन्होंने बादलों का हवाला देने वाले मेरे सिद्धांत को मानने से इनकार कर दिया। IMD का तर्क है कि शकील के पूर्वानुमान में बेहद विशाल क्षेत्र शामिल है। भविष्यवाणी में अधिक समय अवधि की बात भी कही गई। शकील नियमित रूप से भारत और विदेश के कई मौसम विज्ञान केंद्रों में भविष्यवाणियां भेजते हैं।
भूकंप के संभावित समय और में भूकंप की तीव्रता की भविष्यवाणी करने का दावा करने वाले शकील कहते हैं कि 1982 में उन्होंने अनुमान लगाने की शुरुआत की। 31 अगस्त, 1994 को राजस्थान में भूकंप का अनुमान लगाया और अगले ही दिन धरती डोली। अपनी प्रतिभा और अपने दावों के बारे में शकील बताते हैं कि मौसम विज्ञान केंद्रों के अलावा अल्पसंख्यक आयोग और उच्च शिक्षा विभाग (अल्पसंख्यक सेल) सहित विभिन्न कार्यालयों को लेटर लिख चुके हैं।
16 साल पहले बनारस में मंडलायुक्त रहे नितिन रमेश गोकर्ण के लेटर का भी जिक्र है। दिसंबर, 2007 में उन्होंने बीएचयू के तत्कालीन वीसी से विशेषज्ञ पैनल में शकील का साक्षात्कार कराने की अपील की। बीएचयू वीसी ने जवाब में भूभौतिकी विभाग के हवाले से बताया कि दो साल पहले ‘शकील अलीमद को अपने सिद्धांतों पर चर्चा का मंच दिया गया था, लेकिन यूनिवर्सिटी उनके किसी वैज्ञानिक आधार के बिना आश्वस्त नहीं हो सकी। यह समझना भी मुश्किल है कि बनारस के आसमान में बादलों की मूवमेंट देखकर दुनिया भर में आने वाले भूकंप का पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है।
बीएचयू में जियो फिजिक्स के प्रोफेसर वीपी सिंह के अनुसार, भूकंप का पता लगाने के लिए कम से कम तीन मापदंडों (स्थान, समय और स्थान) को जरूरी होते हैं। वैज्ञानिक नजरिए से बनारस के बादलों के आधार पर एशिया और यूरोप के किसी भी स्थान पर भूकंप का अनुमान लगाना असंभव है।
कौन हैं शकील अहमद ?
शकील अहमद छत्तनपुर के रहने वाले हैं। उन्होंने 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई की है। वह बताते हैं कि जब एक बार वह बादलों को इसी तरह देख रहे थे तब उन्होंने बादलों के हावभाव को देखकर मनन किया कि भूकंप आने की संभावना है। उन्होंने करीब 1982 से 1992 तक सिर्फ बादलों को देखकर भविष्यवाणी की। जब देखा कि भविष्यवाणियां सत्य हो रही हैं तब उन्होंने 1992 के बाद से अखबारों से संपर्क किया और अपनी भविष्यवाणी के बारे में लोगों को बताया।
शकील जी से जब खबर हिंदी की टीम ने जानना चाहा कि आखिर वह भविष्यवाणियां कैसे करते हैं ? उन्होंने बताया कि जब सेटेलाइट से खींची हुई कोई तस्वीर सोशल मीडिया इंटरनेट पर पोस्ट की जाती है जिसके बाद वह वहां होने वाली हलचल को देखते हैं और बादलों में उसे पढ़ने की कोशिश करते हैं इसके बाद वह उसके रुख को देखते हुए किस-किस जगह पर भूकंप समेत प्राकृतिक या दैवीय आपदा का संकेत होते हैं। उसके बारे में वह प्रभावित होने वाले लोगों को अलर्ट करते हैं।
शकील जी कहते हैं कि प्रकृति अपने आप में रहस्य उसका खजाना है और वह इन बादलों पर लिखी बातों को पढ़ लेते हैं। उन्होंने कहा, ‘मेरा अनुभव है कि प्रकृति का हर रंग अपने आप में कुछ संदेश देता है। कुछ आसानी से समझ में आ जाता है किसी को काफी मेहनत के बाद भी नहीं समझा जा सकता है। जैसे बादलों को देखकर हम बारिश का अंदाजा लगा लेते हैं लेकिन सभी बादल बरसने वाले नहीं होते।
ठीक उसी प्रकार वह उन्हें बादलों के आकार प्रकार रंगरूप आदि को देखकर भूकंप की आशंका होती है, इसी आधार पर वे भविष्यवाणी करते हैं। भविष्यवाणी के लिए सूरज निकलने और सूरज के डूबने का समय बादलों को पढ़ने का सही समय होता है। वह कहते हैं कि जब वह बादलों की स्थिति देखते हैं उसके बाद उसके बारे में ज्ञात तथ्यों को लिख लेते हैं।
अब विज्ञान और मौसम विभाग के अत्याधुनिक सेटेलाइट्स के दौर में शकील जी के हुनर को क्या कहें ? वे खुद इस कला को भगवान का आशीर्वाद बताते हैं। कई बार बीएचयू और दिल्ली भी आमंत्रित किया गया। उनके रिसर्च बीबीसी से लेकर तमाम चैनलों में पब्लिक किए गए हैं। कई बार उन्होंने वैज्ञानिकों के साथ मीटिंग भी की लेकिन वैज्ञानिकों ने उनकी बात नहीं मानी और कई 100 सालों के भूकंप का रिकॉर्ड पढ़ने के लिए मुझे भेज दिया। इसके बाद उधर से कोई रिस्पांस नहीं मिला। BHU के सेमिनार में भी उन्होंने अपनी बातें रखी हैं। इस सेंट्रल यूनिवर्सिटी से जुड़े प्रबुद्ध लोगों और वैज्ञानिकों ने कहा कि शकील की बातों को पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता है।
शकील जी कहते हैं कि बादलों के जरिए धरती की धड़कन भी मापी जा सकती है। अब तक 500 से अधिक भविष्यवाणियां कर चुके शकील 10 साल के गहन अध्ययन के बाद Earthquake Threat Perdiction शुरू किया। यदि एक्यूरेसी के मानक पर देखें तो इनकी भविष्यवाणी या पूर्वानुमान 90 फीसद तक सही साबित होते हैं।
शकील जी कहते हैं कि वह अपनी कला अन्य वैज्ञानिकों के साथ साझा करना चाहते हैं। पहले कई बार इसको लेकर प्रयास किए गए, लेकिन सफलता नहीं मिली। वह चाहते हैं कि उनकी इस कला का उपयोग युवा वैज्ञानिक भी करें। वह भी सीखें कि किस तरीके से बादलों को पढ़कर आने वाले त्रासदी में नुकसान को कम किया जा सकता है।