Holika Dahan फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को होता है। इसका मुख्य सम्बन्ध होली के दहन से है। जिस प्रकार श्रावणी को ऋषिपूजन, विजयादशमी को देवीपूजन, दीपावली को लक्ष्मीपूजन के पीछे भोजन किया जाता है, उसी प्रकार होलिका के व्रत वाले उसकी ज्वाला देखकर भोजन करते हैं। जो इस वर्ष सोमवार 6 मार्च को पड़ रही है।
भविष्यपुराण के अनुसार सतयुग में ढुण्ढा नाम की राक्षसी ने भगवान् शिव से वरदान प्राप्त कर छोटे बालकों को पीड़ित करना शुरू किया। महाराज रघु ने इसके निराकरण का उपाय वशिष्ठ ऋषि से पूछा। ऋषि ने उपाय बतलाया कि – सूखी लकड़ी एवं उपला आदि का संचय करके रक्षोघ्न मंत्रों से हवन करते हुए उसमें आग लगानी चाहिए। ताली बजाते हुए किल-किल शब्द करना चाहिए। अग्नि की तीन परिक्रमा करनी चाहिए। दान देना तथा हास्य करना चाहिए। इसी से वह भस्मीभूत होगी। इसी विधान को करने से ढुण्ढा नाम की राक्षसी भस्म हुई। इस प्रकार करने से ढुण्ढा के दोष शान्त हो जाते हैं और होली के उत्सव से व्यापक सुख-शान्ति होती है।
प्रश्न — इस बार होलिका दहन को लेकर शंका यह है कि 6 मार्च को रात्रि में भद्रा बीतने के बाद यदि पूर्णिमा तिथि मिल रही है तो फिर 7 को सूर्योदय से पूर्व या बाद में होलिका दहन क्यों नहीं हो सकता ?
उत्तर — इस शंका के निवारण के लिए धर्मसिंधु देखना चाहिए। धर्मसिन्धुकार कहते हैं कि होलिका दहन के लिए, फाल्गुनी पूर्णिमा प्रदोष व्यापिनी और भद्रा रहित होनी चाहिए। जो 6 मार्च को है किन्तु 7 मार्च को नहीं है।
कितने बजे Holika Dahan
आगे कहते हैं यदि उस समय भद्रा हो तो भद्रा के बाद करें। किन्तु कब भद्रा के बाद होलिका दहन किया जाय इसके लिए कहते हैं यदि दूसरे दिन पूर्णिमा प्रदोष व्यापिनी न हो और भद्रा अर्धरात्रि से पूर्व समाप्त हो गया हो तो भद्रा के बाद होलिका दहन करें। यदि अर्धरात्रि के बाद भद्रा समाप्त हो तो भद्रा का मुख त्याग कर भद्रा में ही होलिका दहन करें अर्थात् भद्रा के पुच्छ (रात १२:२३ से रात १:३५ तक)में।
होलिकादहन के दिन समिधा
इसी अवसर पर नवीन धान्य( जौ, गेहूँ, और चना) – की खेतियाँ पककर तैयार हो रही होती है और मानव-समाज में उनके उपयोग में लेने का प्रयोजन भी उपस्थित हो जाता है; किन्तु धर्मप्राण हिन्दू यज्ञेश्वर को अर्पण किये बिना नये अन्न को उपयोग में नहीं लाते, अतः होलिकादहन के दिन समिधास्वरूप उपले आदि का संचय करके उसमें यज्ञ की विधि से अग्नि का स्थापन, प्रतिष्ठा, प्रज्वालन और पूजन करके जौ, गेहूँ आदि के चरु स्वरूप बालों की आहूति और हुतशेष धान्य को घर लाकर प्रतिष्ठित करते हैं। इससे सभी प्राणी हृष्ट-पुष्ट और बलिष्ठ होते हैं। इस प्रक्रिया को वैदिक भाषा में ‘ नवान्नेष्टि’ यज्ञ कहते हैं।
Holi का मूल संदेश क्या है
होली सम्मिलन, मित्रता, एवं एकता का पर्व है। इस दिन द्वेष भाव भूलकर सबसे प्रेम और भाई चारे से मिलना चाहिये। एकता, सद्भावना एवं सोल्लास का परिचय देना चाहिये। यही इस पर्व का मूल उद्देश्य है एवं संदेश है।