BHU Fake Doctor Allegation से हड़कंप मच गया है। चिकित्सा अधीक्षक पर हृदय रोग विभागाध्यक्ष ने गंभीर आरोप लगाए हैं। कहा जा रहा है कि ‘पूर्वांचल के एम्स’ कहे जाने वाले बीएचयू के मेडिकल अस्पताल में फर्जी डॉक्टर दिहाड़ी पर रखे गए हैं। आरोप है कि बीएचयू अस्पताल में 12वीं पास फर्जी डॉक्टर मरीजों का इलाज कर रहे हैं। खौफनाक मामले के प्रकाश में आने पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। बीएचयू मेडिकल प्रबंधन कठघरे में है।
आरोप है कि फर्जी डॉक्टर लंबे समय से मरीजों को दवाएं देने के अलावा इंजेक्शन भी लगा रहे थे। अब तक ऐसे तीन लोग पकड़े गए हैं। इनको एमबीबीएस डॉक्टरों ने 600 रुपए की दिहाड़ी पर रखा था। यानी, एमबीबीएस डॉक्टरों की ड्यूटी लगती थी, लेकिन वह खुद मरीजों को देखने नहीं आते थे, डॉक्टरों के लिबास में फर्जी लोगों को भेजकर अपनी जगह ड्यूटी कराते थे। इन फर्जी डॉक्टरों ने एमसीएच विंग में भी ड्यूटी की है। बता दें कि इस यूनिट में मरीज बेहद गंभीर हालत में आते हैं। मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से होता है कि गर्भवती महिलाओं के इलाज में भी फर्जी डॉक्टरों की संलिप्तता सामने आई है।
फर्जी डॉक्टरों को डिजिटल पेमेंट प्लेटफॉर्म- पेटीएम के माध्यम से रोज 600 रुपए की दिहाड़ी मिलती थी। पकड़े जाने के डर से इन 12वीं पास फर्जी डॉक्टरों का लक्ष्य 600 रुपये की दिहाड़ी नहीं, बल्कि गरीब और कामगार तबके से आने वाले कम पढ़े-लिखे मरीज ही होते थे। मरीजों और उनके स्वजनों को बरगलाकर सुनियोजित तरीके से प्राइवेट अस्पताल, लैब या मेडिकल स्टोर भेजने के आरोप भी लगे हैं। इन केंद्रों से फर्जी डॉक्टरों को कमीशन मिलता था।
इस दिल दहलाने वाले खुलासे के बाद बीएचयू समेत देश-प्रदेश में हड़कंप मच गया है। मामला प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) तक पहुंचने की बात भी सामने आई है। बता दें कि फर्जी डॉक्टरों का ये मामला खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र का होने के कारण अधिक गंभीर प्रकृति का लगता है। इस मामल में पुलिस कमिश्नर अशोक मुथा जैन का कहना है कि बीएचयू में कुछ लोग एमबीबीएस डॉक्टरों की जगह फर्जी तरीके से काम कर रहे थे। बीएचयू की जांच में यह बात सामने आई है। पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली है। आगे जांच की जा रही है। जांच के बाद पता चलेगा कि ये सभी कब से बीएचयू में फर्जी ड्यूटी कर रहे थे।
बीएचयू के मेडिकल सुपरिन्टेंडेन्ट, डॉक्टर के.के. गुप्ता का कहना है कि अस्पताल के ही एक नर्सिंग स्टाफ ने जानकारी दी कि प्रसूति विभाग के साथ अन्य विभाग में तीन लोग दूसरे के नाम पर ड्यूटी कर रहे हैं। सूचना मिलते ही तत्काल इन तीनों को मौके से पकड़ा गया। बीएचयू प्रशासन की तरफ से लंका थाने में शिकायत की गई। पूछताछ के दौरान पकड़े गए फर्जी डॉक्टरों ने बताया कि आईएमएस बीएचयू के ही चार डॉक्टर, एमबीबीएस पूरा करने के बाद इंटर्न के तौर पर अस्पताल में लगाए गए थे। वो अपनी जगह 12वीं पास लोगों से इंटर्नशिप करा रहे थे और रोज के हिसाब से इन लोगों को पेटीएम के माध्यम से दिहाड़ी के पैसे ट्रांसफर करते थे। पूछताछ में फर्जी डॉक्टरों ने आईएमएस बीएचयू के चार एमबीबीएस छात्रों के नाम भी बताए हैं। पुलिस ने पहचान गोपनीय रखते हुए मामले में जांच शुरू कर दी है। आरोप ये भी हैं कि इंटर्नशिप की जगह चार एमबीबीएस छात्र निजी अस्पतालों में सेवाएं देकर मोटी रकम कमा रहे हैं।
पुलिस के पास दर्ज मुकदमे के बारे में खबर हिंदी टीम को मिली जानकारी के मुताबिक डॉ नितिन, डॉ. शुभम, डॉ. सौमिक डे और कृति अरोड़ा पर फर्जी डॉक्टरों से मरीजों का इलाज कराने के आरोप लगे हैं। 12वीं पास तीनों आरोपियों की पहचान मोहित, अभिषेक सिंह और प्रीति चौहान के रूप में हुई है।
इस मामले में बीएचयू कुलपति प्रो. सुधीर कुमार जैन ने कहा कि बीएचयू अस्पताल में फर्जी डॉक्टरों की घटना बहुत ही गंभीर है। इस तरह की घटनाओं से विश्वविद्यालय की छवि धूमिल होती है। गलत कार्यों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मामले में दोषियों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई की जाएगी, जिससे भविष्य में कोई भी ऐसी हरकत करने की हिमाकत न करे। बीएचयू हृदय रोग विभाग के विभागाध्यक्ष, प्रोफेसर ओम शंकर का कहना है कि बीएचयू जैसे अस्पताल जहां के इमरजेंसी वार्ड में सीसीटीवी कैमरे लगे हों, जिसका प्रसारण मेडिकल सुपरिन्टेंडेन्ट, डॉ के.के. गुप्ता के कमरे में भी होता है, वहां कई वर्षों से फर्जी डॉक्टर दूसरे डॉक्टरों की जगह ड्यूटी करें, इससे साफ है कि ये सब बिना मेडिकल सुपरिन्टेंडेन्ट की मिलीभगत के संभव नहीं। उन्होंने दो टूक कहा- बीएचयू के मेडिकल सुपरिन्टेंडेन्ट, गुप्ता जी का भ्रष्टाचार और उनकी अक्षमता सर्वविदित है। दोनों ही वजहों से मेडिकल सुपरिन्टेंडेन्ट पर तुरंत कारवाई होनी चाहिए।
कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर ओम शंकर बीएचयू के वरिष्ठ चिकित्सक होने के अलावा बीएचयू के भीतर व्याप्त भ्रष्टाचार और अंधेरगर्दी के खिलाफ मुखर आवाज के रूप में जाने जाते हैं। खास बात ये भी है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब मेडिकल सुपरिन्टेंडेन्ट, के.के. गुप्ता पर भ्रष्टाचार, वित्तीय अनियमितता और कदाचार का आरोप लगा हो। बकौल प्रो. ओम शंकर, भ्रष्टाचार के आरोप में डॉ. के.के. गुप्ता पहले भी पद से हटाए जा चुके हैं, लेकिन पता नहीं उनके कौन-से गुण के कारण उन्हें बार-बार चिकित्सा अधीक्षक के पद पर तैनात कर दिया जाता है।
वर्तमान चिकित्सा अधीक्षक, डॉक्टर गुप्ता पर हृदय रोग विभाग में बेड खाली होने के बावजूद मरीजों की पर्ची पर ‘नो बेड’ लिखकर वापस लौटाने और चिकित्सा से वंचित करने जैसे गंभीर आरोप भी लगे हैं। इस मामले में प्रो. ओम शंकर प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) और स्वास्थ्य मंत्रालय तक चिकित्सा अधीक्षक की मनमानी की शिकायत कर चुके हैं। चिकित्सा अधीक्षक डॉ गुप्ता को ब्लड बैंक से खून चोरी के आरोप में भी चिकित्सा अधीक्षक पद से हटाया जा चुका है।
अब देखना होगा कि इस बार मामले में कार्रवाई होती है या एक बार फिर ‘सरकारी तंत्र’ का ये मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा और कार्रवाई के नाम पर पकड़े गए तीन युवाओं के साथ-साथ एमबीबीएस की पढ़ाई कर चुके चार छात्रों पर ही गाज गिरेगी और कथित तौर पर करप्ट मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ गुप्ता अपनी गद्दी पर काबिज रहेंगे।
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