Chaitra Navratri, वासंतिक नवरात्र के चौथे दिन मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप माता कूष्माण्डा की पूजा का विधान है। काशी में माता कुष्मांडा का अति प्राचीन मंदिर दुर्गाकुंड में स्थित है। माता के दर्शन के लिए देर रात से श्रद्धालु कतारबद्ध होकर माता के दर्शन कर रहे हैं।
मां दुर्गा के सभी स्वरूपों में मां कूष्मांडा का स्वरूप बहुत ही तेजस्वी है। मां कूष्मांडा सूर्य के समान तेज वाली हैं। कहते हैं जब संसार में चारों ओर अंधियारा छाया था, तब मां कूष्मांडा ने ही अपनी मधुर मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी। मां कूष्मांडा की पूजा से बुद्धि का विकास होता है।
साथ ही जीवन में निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है। मां दुर्गा का ये स्वरूप अपने भक्त को आर्थिक ऊंचाईयों पर ले जाने में निरन्तर सहयोग करने वाला माना जाता है। कहा जाता है कि यदि कोई लंबे समय से बीमार है तो देवी कूष्मांडा की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए।
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मंदिर के महंत सोनू महराज ने बताया कि नवरात्र 9 दिनों में चौथे दिन माता कुष्मांडा के दर्शन का विधान है। उन्होंने बताया कि आज के दिन यहां पर दर्शन का खास महत्व है। उन्होंने बताया कि साल भर पूरे देश से लोग यहां मां कुष्मांडा को पूजने और अपने पापों का प्रायश्चित करने आते हैं।
देवी कुष्मांडा को मालपुआ चढ़ाने का विशेष महत्व उन्होंने बताया कि आज के दिन मां को मालपुआ चढ़ाने का विशेष महत्व है। इसके अलावा आज के ही दिन कन्याओं को रंग-बिरंगी चुनरी और कपड़े भेट करने से धन-संपदा में वृद्धि होती है। वहीं मां का दर्शन करने श्रद्धालु ने कहा कि पिछले कई वर्षों से हर नवरात्र पर यहां दर्शन करने आती हैं। मां सबकी हर मनोकामना पूरी करती हैं।
कूम्हडे़ की बलि मां को प्रिय माता कूष्माण्डा अपनी मन्द मुस्कान से अण्ड अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण कूष्माण्डा देवी के नाम से जानी जाती हैं। इनकी पूजा के दिन भक्त का मन ‘अनाहत’ चक्र में स्थित होता है। अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और शांत मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा करनी चाहिए। संस्कृत भाषा में कूष्माण्ड कूम्हडे़ को कहा जाता है। कूम्हडे़ की बलि इन्हें प्रिय है। इस कारण भी इन्हें कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है।
मां कूष्मांडा के स्वरूप के बारे में कहा जाता है कि यह अष्ट भुजाओं वाली देवी हैं। इनकी भुजाओं में बाण, चक्र, गदा, अमृत कलश, कमल और कमंडल शोभा पाते हैं। वहीं दूसरी भुजा में वह सिद्धियों और निधियों से युक्त माला धारण करती हैं। मां कूष्मांडा की सवारी सिंह है।