Chhath Puja सोमवार, 31 अक्टूबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ लोक आस्था का महापर्व छठ पूरा हुआ। 4 दिनों तक चलने वाला यह महापर्व बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से लोकप्रिय है। वैश्विकरण के दौर में अब भारत और दूसरे देशों में रह रहे प्रवासी भारतीयों के बीच भी छठ महापर्व को लेकर विशेष आस्था देखी जाती है।
Chhath Puja के मौके पर वाराणसी में उत्साह
छठ पूजा के अवसर पर रविवार को वाराणसी में रामनगर, रामनगर दुर्गा जी पोखरा, सामनेघाट, सारनाथ, चौबेपुर और वहीं ग्रामीण क्षेत्र के माधोपुर स्थित शुलटंकेश्वर घाट,अखरी,अमरा,लठिया,रोहनिया, जगतपुर, दरेखु, मोहनसराय, गंगापुर, रानीबाजार, राजातालाब, भीमचंडी, मिल्कीचक, भवानीपुर, शाहंशाहपुर, जख्खिनी, पनियरा, कोइली, मरुई इत्यादि गांव सहित ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब के किनारे डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर इस व्रत का समापन हुआ।
28 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक सूर्य उपासना
छठ पूजा का अंतिम दिन ऊषा अर्घ्य होता है. व्रति महिलाएं उगते सूर्य को अर्घ्य देती है ,जिसके बाद छठ के व्रत का पारण किया जाता है. लगभग 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखने वाले व्रती उदयाचल भगवान भास्कर यानी सूर्य देवता की पूजा करते हैं। व्रत पूरा होने के मौके पर भगवान सत्यनारायण की कथा भी सुनी जाती है। लोक आस्था का महापर्व 2022 छठ 28 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक चला। 28 अक्टूबर को नहाय-खाय के साथ छठ का असाध्य व्रत शुरू हुआ।
इस दिन व्रती महिलाएं सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उदितनारायण सूर्य को अर्घ्य देती हैं और सूर्य भगवान और छठी मैया से संतान की रक्षा और परिवार की सुख-शांति की कामना करती हैं. 29 अक्टूबर को छठ व्रतियों ने खरना पूजा की। इसके बाद निर्जला उपवास शुरू हो गया। 28 अक्टूबर की शाम करीब 7:00 से 8:00 के बीच शुरू हुआ निर्जला उपवास 31 अक्टूबर की सुबह पूरा हुआ। 30 अक्टूबर को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया गया। लोक आस्था का महापर्व छठ तस्वीरों में देखिए–
सोमवार, 31 अक्टूबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ लोक आस्था का महापर्व छठ पूरा हुआ। 4 दिनों तक चलने वाला यह महापर्व बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से लोकप्रिय है। वैश्विकरण के दौर में अब भारत और दूसरे देशों में रह रहे प्रवासी भारतीयों के बीच भी छठ महापर्व को लेकर विशेष आस्था देखी जाती है।
निर्जला व्रत रहकर महिलाओं ने उगयमान सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्यनारायण भगवान से प्रार्थना की और परंपरागत छठ माई का गीत गाते हुए हर्षोल्लास के साथ छठ पूजा किया।
कौन हैं छठी मईया
ब्रह्मवैवर्त पुराण और मार्कंडेय पुराण के अनुसार सूर्य देवता ब्रह्मा जी के मानस पुत्र और प्रकृति मानस पुत्री हैं। यह प्रकृति छ: भागों में 6 देवियों के रूप में विभक्त हैं। वही छठी देवी ही षष्ठी देवी हैं जिन्हें आम भाषा में छठी मैया कहते हैं।
राजा मनु के वंशज राजा प्रियंवद और रानी मालिनी निःसंतान थे। महर्षि काश्यप ने संतान प्राप्ति हेतु उन्हें षष्ठी देवी की पूजा करने को कहा। पूजा करने के फलस्वरुप उन्हें माह कार्तिक शुक्ल षष्ठी को पुत्र रत्न प्राप्त हुआ। तब से षष्ठी देवी की पूजा की जा रही है।
यह भी कहा जाता है कि सूरज की आराधना से कुंती को पुत्र प्राप्त हुआ और षष्ठी देवी की पूजा से उत्तरा को पुत्र प्राप्त हुआ। कुछ धर्मशास्त्रों में दुर्गा जी के षष्ठम् रूप को कात्यायनी देवी कहते हैं जिनकी पूजा नवरात्र में छठे दिन होती है। उनको भी छठी मैया कहते हैं। छठी मैया की पूजा- आराधना करने से संतान प्राप्ति और संतान की रक्षा होती है।
सूर्य और प्रकृति का अन्योन्याश्रित संबंध है जो मानव जीवन को प्रभावित करता है। अतः सूर्य और प्रकृति की पूजा साथ- साथ सनातन धर्म में हम करते आए हैं जिसे छठ पर्व कहते हैं।