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  • July 27, 2024
  • Last Update July 25, 2024 2:05 pm
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Dr Hari Shankar Shukla : BHU और गांव में गरीबों की सेवा करने वाले मसीहा, जानिए कैसे सेहतमंद बनेगी लाइफ

Dr Hari Shankar Shukla : BHU और गांव में गरीबों की सेवा करने वाले मसीहा, जानिए कैसे सेहतमंद बनेगी लाइफ

बनारस का सर सुंदरलाल चिकित्सालय जाने-माने कैंसर सर्जन Prof Hari Shankar Shukla की लोकप्रियता से भी जाना जाता है। सेवा को समर्पित व्यक्तित्व या यूं कहें की चलती फिरती संस्था 79 साल के प्रोफेसर हरी शंकर शुक्ला एक ऐसा नाम है जो मरीजों की दुख-तकलीफ दूर करने के मिशन में जुटे हैं। डॉक्टर के रूप में करियर के शुरुआती दौर में डॉ शुक्ला काशी हिंदू विश्वविद्यालय से जुड़े। पूर्वांचल के एम्स कहे जाने वाले सर सुंदरलाल चिकित्सालय से 2006 में रिटायरमेंट के 16 साल बाद भी डॉ हरिशंकर शुक्ला मरीजों की चिकित्सा और सेवा बदस्तूर जारी है।

 

मरीजों की सेवा में रमे डॉ हरिशंकर का गांव बनारस से 120 किलोमीटर दूर प्रयागराज के अटखरियां में है। डॉक्टरी के अलावा डॉ शुक्ला की रुचि खेती में भी है। डॉ शुक्ला मरीजों की सेवा के अलावा उन्हें सरकारी योजनाओं की जानकारी भी देते हैं। अपने गांव में उन्होंने मछली पालन के लिए तालाब बनवाया है, जिसमें 5 हजार मछलियां हैं। उनके बाग चंदन समेत कई तरह के वृक्ष हैं। डॉ शुक्ला मोटे अनाज की जैविक खेती भी करते हैं। जो भी मरीज उनके यहां आता है वह उसे जैविक खेती से उत्पादित फल सब्जियां देते हैं। मरीजों को जैविक खेती करने के लिए प्रेरित भी किया जाता है।

डॉ शुक्ला के साथ 29 साल से रह रहे आनंद बताते हैं कि गांव में जब से डॉ शुक्ला ने रेगुलर आना शुरू किया है, तब से ग्रामीणों ने भी आना-जाना शुरू कर दिया है। आश्रम जैसा लुक दिया गया है। डॉ शुक्ला की जमीन पर जैविक खेती की जाती है। केमिकल मुक्त खेती पर जोर दिया जा रहा है। केयर टेकर और सहयोगियों को भी इससे मदद मिलती है। स्थानीय ग्रामीणों के बीच भी ये सब्जियां लोकप्रिय हैं। इसलिए लोग डॉ हरी शंकर शुक्ता के खेत में पैदा हुई सब्जियों की डिमांड अच्छी है। एक रुपये किलो गेहूं की पिसाई का शुल्क है। सरसों तेल निकालने की मशीन भी लगाई गई है।

Dr Hari Shankar Shukla

डॉ शुक्ला अपने खेत की सब्जियों के बारे में बताते हैं कि जैविक खेती के साथ इंसान आत्मनिर्भर बन सकता है। किसानों की महत्वाकांक्षा पर टिप्पणी में डॉ शुक्ला ने कहा कि टीवी-फ्रिज और स्मार्टफोन की चाहत में केमिकल का इस्तेमाल कर केमिकल का धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन जैविक खेती से उपजाई गई फसल अच्छी कीमत पर बिके तो दवाओं का खर्च खत्म किया जा सकता है। नेचर बैलेंस करती है।

पेशे से वकील डॉ प्रभाकांत और मनोज कुमार शुक्ला डॉ हरीशंकर शुक्ला के यहां नियमित रूप से आते रहते हैं। जैविक खेती करने वाले डॉ शुक्ला कैंसर पीड़ितों के अलावा बाकी लोगों को भी केमिकल मुक्त और जैविक खाद का इस्तेमाल करने का सुझाव देते हैं। करीब 30 साल से डॉ शुक्ला के परिसर में सब्जियों की खेती और बिक्री करने वाली सुनीता बताती हैं कि उनका पूरा जीवन डॉ शुक्ला के आवास पर खेती और सब्जियों की बिक्री में बीता है। काफी सुखद और अच्छा अनुभव रहा है।

डॉ शुक्ला के स्टाफ के लिए जिस किचन में खाना बनता है, खबर हिंदी की टीम वहां भी पहुंची। कंडे और लकड़ी के चूल्हे पर खाना पकाने वाली किरण बताती हैं कि वे सात साल से डॉ शुक्ला के साथ हैं। हर रविवार को यहां तमाम स्टाफ के लिए खाना पकाया जाता है।

डॉ शुक्ला के पास आने वाले लोगों को सुकून का एहसास होता है। पैसों की तंगी से जूझ रहे मरीजों को इलाज के अभाव में तड़पना नहीं पड़ता। जरूरतमंद लोगों को फंड की जरूरत पड़ने पर मुफ्त एंबुलेंस की सेवा मुहैया कराते हैं। सोशल एक्टिविटी में गांवों में कैंप लगाते हैं। सोमवार को बीएचयू में आज भी डॉ शुक्ला मरीजों को देखने जाते हैं। दूरदराज के लोगों को जरूरत पड़ने पर बनारस लाते हैं।

डॉ शुक्ला अपनी जमीन पर 12 मासी आम की खेती भी करते हैं।  वैज्ञानिक और प्राकृतिक तरीकों से मरीजों का इलाज करने के अलावा डॉ शुक्ला 98 साल के बुजुर्ग की नेमत भी संभाल कर रखते हैं। जीप की सवारी एंजॉय करने वाले डॉ शुक्ला अत्याधुनिक चिकित्सा पद्धति से इलाज करते हैं, साथ ही आध्यात्म के प्रति भी रूझान रखते हैं। उनके परिसर में बनाई गई इमारतों पर इसकी झलक मिलती है। डॉ शुक्ला ने पानी की सुविधा वाले भवन को नर्मदा गैराज, विष्णु टावर और एक अन्य भवन को मुन्ने हॉल का नाम दिया है।

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डॉ शुक्ला चाय में चीनी घोलकर पीना पसंद नहीं करते। डॉक्टर साहब के परिसर में एक बहुत पुराना वृक्ष भी दिखाई देता है। दुर्लभ पेड़ों को सहेजने के मकसद से डॉ शुक्ला ने अपने परिसर में लाल चंदन भी लगा रखा है। परमार्थ के यज्ञ में खुद के परिश्रम की आहुति देने वाले लोगों में डॉ सनुज कुमार मौर्या भी शामिल हैं। उन्होंने बताया कि करीब 17 साल से वे डॉ शुक्ला के मार्गदर्शन में जरूरतमंद लोगों की सेवा में लगे हुए हैं। उन्होंने जैविक खेती के बारे में बताया कि जब भी समय मिलता है वे खेतों में श्रमदान करने आते हैं। गरीबों को मुफ्त इलाज और फल सब्जियां-अनाज जैसी मदद भी दी जाती है।

अरहर दाल और केले की खेती की जा रही है। खेती से लोग इसलिए दूर भाग रहे हैं क्योंकि उन्हें रिटर्न कम मिलता है। सनुज सेहतमंद जीवन के लिए आम लोगों से भी रोज मर्रा की सब्जियां उगाने की अपील करते हैं। केले के साथ-साथ बाकी फसलों की खेती के लिए डॉ शुक्ला की जमीन पर अलग सेगमेंट बने हुए हैं। क्यारियों की जुताई के बाद कतारों में केले के पौधे देखे जा सकते हैं।

कर्मभूमि बनारस से 120 किलोमीटर दूर इलाहाबाद के एक गांव में मरीजों की सेवा करने में जुटे डॉ हरि शंकर शुक्ला की लाइफ युवाओं के लिए मिसाल है। गरीबों और मरीजों की सेवा के संकल्प के साथ डॉ शुक्ला गांव में बतौर डॉक्टर रिटायरमेंट के 22 साल के बाद भी सक्रिय हैं। खेती किसानी में शिद्दत से जुटे डॉ शुक्ला के पास इलाज कराने पहुंचे मरीज बताते हैं कि इलाज के अलावा डॉ शुक्ला ऑर्गेनिक खेती करते हैं जो काफी उत्साह बढ़ाने वाला है।

Dr Hari Shankar Shukla
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ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए डॉ शुक्ला सोलर एनर्जी का इस्तेमाल करते हैं। उनके परिसर में भवन का ऊपरी हिस्सा सोलर पावर की प्लेट से ढका है। इसकी मदद से उन्हें कभी भी पावर सप्लाई की परेशानी नहीं होती। परिसर में तालाब के पीछे का तर्क समझाते हुए डॉ शुक्ला कहते हैं कि ग्राउंड वाटर लेवल बरकरार रखने में मदद मिलती है। इसके साथ ही तालाब के कारण फल-सब्जियों और बाकी पौधों की सिंचाई भी समुचित तरीके से करने में काफी मदद मिलती है। तालाब के साथ-साथ मछलीपालन भी करते हैं।

इसे डॉ शुक्ला का विजन ही कहा जाएगा कि उन्होंने गेहूं की पिसाई के लिए चक्की भी इंस्टॉल करा रखी है। दादा-दादी की स्मृति में उन्होंने तालाब का नाम विष्णु सरोवर, जबकि किनारे को आदित्य घाट का नाम दिया है। तालाब के किनारे सेहत के लिए फायदेमंद पपीते का पेड़ लगा रखा है। मनोरम वातावरण में कैंसर जैसी बीमारी का इलाज कराने आने वाले मरीजों के चेहरे की शिकन भी कुछ देर के लिए गायब हो जाती है।

डॉ शुक्ला बुजुर्ग और महिला मरीजों का भी शिद्दत से इलाज करते हैं। उन्हें परामर्श देते समय डॉ शुक्ला के संवेदनशील हृदय को महसूस किया जा सकता है। 1965 में एमबीबीएस के तीसरे साल की पढ़ाई करते समय डॉ शुक्ला को उनके प्रिंसिपल ने प्रेरित किया कि आर्मी ज्वाइन करें। क्लास के पांच लड़कों ने 1968 में फाइनल ईयर के दौरान आर्मी ज्वाइन कर ली। बांग्लादेश के साथ युद्ध के समय भी वे ड्यूटी पर रहे। चीन सीमा पर सेला पास पर तैनाती के दौरान उन्हें करीब 6 महीनों तक बर्फीले माहौल में रहने का मौका मिला। 1971 में मेडिकल कॉलेज दोबारा ज्वाइन कर लिया।

कॉलेज के प्रिंसिपल ने डॉ शुक्ला की काफी मदद की । कार्डिफ यूनिवर्सिटी भेजने के लिए उन्हें प्रोफेसर एनी ह्यून से बात की। सीनियर रजिस्ट्रार बनकर ब्रिटेन पहुंचे डॉ शुक्ला 12-14 साल तक इंग्लैंड में रहे। बाद में बीएचयू में नौकरी मिल गई तो दूसरी जगह जाने का विचार छोड़ दिया। BHU में नौकरी बाद इलाहाबाद को कर्मभूमि बनाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि 1980 के बाद वे लगभग हर रविवार को गांव आकर मरीजों की सेवा करते हैं।

17-18 एकड़ खेत के स्वामी डॉ शुक्ला बताते हैं कि पक्का तालाब बनवाने के पीछे उनके पिता की प्रेरणा है। कैंसर स्पेशलिस्ट डॉक्टर और मरीजों को ऑर्गेनिक खेती के लिए इंस्पायर करने के विचार पर उन्होंने कहा कि 12 ग्लास पानी प्रतिदिन पीने से पेशाब और कई बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है। इसे हाइ़ड्रो थेरेपी कहा जाता है। लौकी का जूस पीने का दिलचस्प वाकया शेयर करते हुए डॉ शुक्ला ने कहा, एक महिला मरीज 105 किलो वजन के साथ उनके पास आई थीं। लौकी के जूस का सेवन करने के बाद पांच महीने में इस महिला का वजन 20-25 किलो कम हुआ।

Dr Hari Shankar Shukla

सब्जियों में केमिकल का इस्तेमाल और कैंसर जैसी बीमारियों से बचाव के बारे में डॉ शुक्ला कहते हैं कि इस बारे में पर्याप्त वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं हैं, लेकिन सतर्कता जरूरी है। उन्होंने कहा कि गेहूं चावल के बदले मोटे अनाजों का सेवन करना चाहिए। मिलेट्स का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। 79 साल की उम्र में भी पॉजिटिव रहना और लगातार सक्रिय रहने का राज क्या है ? इस सवाल पर उन्होंने कहा कि लोगों की बुराई करने से बचें। निंदा करने पर भी लोगों के प्रति नेगेटिव सोच डेवलप न करें। खुद महाभारत और विदुर नीति का अध्ययन करते हैं।

कैंसर से बचाव के बारे में उन्होंने एजुकेशन और जागरूकता ही एकमात्र उपाय है। ओरल कैंसर अधिक रिपोर्ट किया जा रहा है। महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर के मामले देखे जा रहे हैं। उन्हें इसका टीका लगवाना चाहिए। डॉ शुक्ला के खेत में सब्जियों की खेती और उसकी बिक्री करने वाले सहायकों ने बताया कि बैंगन, अमरूद और बाकी सब्जियां बाजार की तुलना में कम कीमत के साथ-साथ अच्छी गुणवत्ता में भी मिलती हैं। मरीजों के अलावा आस-पास के गांवों के खरीदार भी अच्छी खासी तादाद में आते हैं।

डॉ हरीशंकर शुक्ला का परिवार भी उनके साथ खड़ा है। उनके छोटे भाई केएस शुक्ला बताते हैं कि उन्होंने एक छोटा सा फलों का बाग भी लगाया है। घर के पीछे की जमीन पर हाइब्रिड आम, आंवला, अमरूद और जामुन जैसे फल लगाए हैं। बाग के नींबू इतने बड़े आकार के होते हैं कि 4-5 लोगों के परिवार के लिए एक नींबू ही पर्याप्त है।

ऑर्गेनिक खेती के बारे में डॉ केएस शुक्ला ने बताया कि इंसानों में बीमारी का प्रमुख कारण फर्टिलाइजर है, ऐसे में अब लोगों को जागरूक होने और सरकारी प्रयास किए जाने की जरूरत है। आमदनी कम होने का हवाला देते हुए केएस शुक्ला ने बताया कि मेहनत और निगरानी की अधिक जरूरत होने के कारण लोग कन्नी काटते हैं, लेकिन सेहतमंद जीवन की चाह रखने वाले लोगों को केमिकल मुक्त खेती अपनानी चाहिए।

Dr Hari Shankar Shukla

किसी कवि ने क्या खूब कहा है कि अगर आपको हंसना-गाना सीखना है तो फूलों और भंवरों से सीखिए। शायद इसी कथन को चरितार्थ करता है डॉ शुक्ला का बाग। डॉ शुक्ला जैसा संवेदनशील बागवान हो तो प्रेम और करुणा से सींचे गए बीज शानदार पौधे बनते हैं। धरती मां भी खूब आशीर्वाद देती हैं। इनके बाग में फलों के अलावा गुलाब की किस्में भी हैं। मुस्कुराते हुए फूलों के राजा को देखकर आप जीवन का हर तनाव भूल सकते हैं।

घरों में गोवंश को रखने और गौ माता की सेवा करने पर अक्सर लोग कहते हैं कि हमने गाय पाली है। शायद इसे डॉ कुमार विश्वास जैसे कवि हृदय व्यक्ति ने ठीक तरीके से कहा है कि गौ पालन इंसान नहीं करते, बल्कि गौ माता हम इंसानों को पालती हैं। डॉ शुक्ला के परिसर में आने पर एक अलग ही दुनिया की अनुभूति होती है, परिसर में आधे दर्जन से अधिक गायों का पालन होता है। सेवक बताते हैं कि दूध-दही पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है।

बीएचयू से रिटायरमेंट के बाद इलाहाबाद में मरीजों की सेवा में जुटे हरिशंकर शुक्ला के पास कैंसर पीड़ित बहुत दूर-दूर से इलाज कराने आते हैं। डॉ शुक्ला के मरीजों में उत्तर प्रदेश के अलावा नेपाल, मध्य प्रदेश, झारखंड, बिहार जैसे प्रदेशों के लोग भी शामिल हैं। डॉ सतीश शुक्ला मरीजों के प्रति इस कदर समर्पित हैं इसका अंदाजा इसी बात से होता है कि अपने गांव में सप्ताह के दो दिन चिकित्सा शिविर का आयोजन करते हैं।

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