Durga Saptami के दिन भगवती दुर्गा के मां कालरात्रि स्वरूप की उपासना होती है। दो दिनों के बाद रामनवमी है, इस दिन रामलला प्रकट होंगे। चैत्र नवरात्र के सातवें दिन को दुर्गा सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है।
मां कालरात्रि की पूजा का महत्व-
माता कालरात्रि की पूजा से सभी कष्ट दूर होते हैं । माता का ये रूप दुष्टों और शत्रुओं का संहार करने वाला है । माता की पूजा से निगेटिव शक्तियों का नाश होता जाता है माता की पूजा सुबह में भी होती है । लेकिन रात्रि के समय पूजा का विशेष महत्व है । माना जाता है कि मां कालरात्रि की पूजा से साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित होता है ।
मां कालरात्रि की उत्पत्ति की कथा-
तीनों लोकों में राक्षस शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने हाहाकार मचा रखा था सभी देवता चिंतित थे। सभी देवी देवता मिलकर भगवान शंकर के पास गए और रक्षा की प्रार्थना की।तब महादेव ने मां पार्वती से असुरों का अंत कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। इसके बाद माता पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया।
मां कालरात्रि का प्राकट्य
माता के सामने असली चुनौती राक्षस रक्तबीज ने पेश की जैसे ही मां दुर्गा रक्तबीज को मारती और उसका खून धरती पर गिरती. उससे लाखों रक्तबीज पैदा हो जाते। इससे माता क्रोधित हो गईं और उनका वर्ण श्यामल हो गया। इसी स्वरूप से मां कालरात्रि का प्राकट्य हुआ।
देवी कालरात्रि का भोग
मां कालरात्रि ने रक्तबीज का वध करती और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को धरती पर गिरने से पहले ही पी जातीं। इस तरह से माता ने सभी राक्षसों का वध किया और धरती की रक्षा की। देवी को लाल चीजे पसंद है। गुड़ या गुड़ से बनी चीजों को भोग लगाना चाहिए और मां को लाल चंपा के फूल अर्पित करें।