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  • January 15, 2025
  • Last Update January 8, 2025 1:51 pm
  • Noida

Joshimath Land Subsidence के बीच पद्मविभूषण सुंदरलाल बहुगुणा क्यों प्रासंगिक हैं ? जल-जंगल-पहाड़ के लिए संकल्प से लड़ी बेमिसाल लड़ाई

Joshimath Land Subsidence के बीच पद्मविभूषण सुंदरलाल बहुगुणा क्यों प्रासंगिक हैं ? जल-जंगल-पहाड़ के लिए संकल्प से लड़ी बेमिसाल लड़ाई

Joshimath Land Subsidence सोशल मीडिया के साथ डिजिटल और तमाम समाचार एजेंसियों के बीच कीवर्ड की तरह ट्रेंड कर रहा है। आज 10 जनवरी को संयोग ऐसा है जब पद्मविभूषण सुंदरलाल बहुगुणा की 95वीं जयंती है। ये जानना दिलचस्प है कि भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से अलंकृत बहुगुणा जोशीमठ में धंसती जमीन के बीच क्यों प्रासंगिक हैं ? सारांश के रूप में जवाब इतना काफी है कि सुंदरलाल बहुगुणा ने जल-जंगल-पहाड़ के लिए जो बेमिसाल लड़ाई लड़ी इसके पीछे उनके संकल्प की ताकत थी।

जोशीमठ बचाने में मार्गदर्शक बहुगुणा

उत्तराखंड में जन्मे गांधीवादी सुंदरलाल बहुगुणा ने अहिंसक तरीके से प्रकृति को बचाने की लड़ाई लड़ी और कामयाबी भी पाई। बहुगुणा भले ही अब हमारे बीच सशरीर नहीं हैं, लेकिन उनकी स्मृतियां और आचरण से दिए गए सार्थक उपदेश जोशीमठ जैसी जगहों को बचाने में मार्गदर्शक का काम करेंगी, इसमें कोई संदेह नहीं है। त्रासदी की आशंका में जी रहे हजारों लोगों के साथ-साथ तथाकथित प्रगति के नाम पर प्रकृति से छेड़खानी करने पर आमादा लोगों को बहुगुणा के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। जानिए, उनके जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य-

  • ‘हिमालय के रक्षक’ की पहचान रखने वाले सुंदरलाल बहुगुणा ने चिपको आंदोलन से क्रांति की।
  • लगातार धंसते जा रहे जोशीमठ को देखकर बहुगुणा जैसे संकल्प को याद करना जरूरी है।
  • बिना प्रकृति को नष्ट किए कैसे जीना है, सुंदरलाल बहुगुणा को इसकी जीवंत मिसाल कहा जाए तो गलत नहीं होगा।
  • उत्तराखंड में प्रकृति की गोद में पैदा हुए सुंदरलाल बहुगुणा नदी, जंगल, खेत-खलिहान देखकर बड़े हुए।
  • बहुगुणा पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पित रहे। उन्हें जानने वाले कहते हैं कि बहुगुणा ने पहाड़ को ‘जीत का मंत्र’ दिया।

Joshimath Land Subsidence

  • पद्मविभूषण सुंदरलाल ने पेड़ों को कटने के खिलाफ चिपको मूवमेंट शुरू किया। इस क्रांतिकारी मुहिम से जुड़े लोग पेड़ों से चिपक कर प्रकृति की रक्षा करते थे।
  • बहुगुणा की सबसे बड़ी उपलब्धि चिपको आंदोलन और टिहरी बांध का विरोध रहा। जीवनभर प्रकृति को बचाने का संघर्ष करने वाले बहुगुणा धंसते जोशीमठ के बीच और याद आते हैं।
  • 13 साल की उम्र में बहुगुणा का राजनीतिक करियर शुरू हुआ। 1956 में शादी होने के बाद राजनीतिक जीवन से उन्होंने संन्यास लिया।
  • राष्ट्रपिता गांधी से प्रभावित सुंदरलाल बहुगुणा ने टिहरी बांध निर्माण के विरोध में 84 दिन अनशन किया। विरोध में अपना सिर भी मुंडवा लिया।

Joshimath Land Subsidence

  • 12वीं की परीक्षा के बाद लाहौर चले गए बहुगुणा ने बीए की पढ़ाई के बाद बनारस लौटने का फैसला लिया, लेकिन काशी विद्यापीठ में एमए की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए।
  • बहुगुणा ने पत्‍नी विमला नौटियाल के सहयोग से उत्तराखंड के वनों को बचाने का संकल्प लिया और मार्च 1974 में ऐतिहासिक चिपको मूवमेंट शुरू हुआ। इस साल आंदोलन के 50 साल हो गए।
  • बहुगुणा कहते थे कि पहाड़ों में जंगलों का कटना दुर्भाग्यपूर्ण है। रोजगार के सवाल पर बहुगुणा कहते थे कि पहाड़ों में वृक्षारोपण का काम होना चाहिए। इससे हिमालय सुरक्षित रहेगा।
  • 1978 में गोमुख के पास रेगिस्तान जैसा मंजर बहुगुणा को झकझोर गया। पहाड़ों को रेगिस्तान बनता देख बहुगुणा ने संकल्प लिया कि चावल नहीं खाएंगे। उनकी अगुवाई में चिपको आंदोलन से युवा भी बड़ी संख्या में जुड़े।
  • टिहरी बांध पर सुंदरलाल बहुगुणा कहते थे, झील से दूसरे शहरों को पानी और बिजली तो मिलती है, लेकिन पहाड़ों में रहने वाले लोगों के जीवन पर संकट आ जाता है।
  • 1982 में लंदन गए बहुगुणा गंगोत्री का जल लेकर गए थे। उन्होंने कहा था, गंगा का उद्गम जल लाने का मकसद नदियों और इंसानों को भोगवादी सभ्यता से मुक्त करने का संदेश देना है।

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