काशी में धनतेरस से अन्नकूट तक मां अन्नपूर्णा के मंदिर में भक्तों का भारी जनसमूह उमड़ता है। माता अन्नपूर्णा, जिन्हें शिवजी की प्रिय माना जाता है, का आशीर्वाद पूर्णता और समृद्धि देने वाला है। ऐसा कहा जाता है कि उनकी कृपा से काशी में कोई भूखा नहीं सोता। इस पवित्र अवसर पर भक्तों को माता अन्नपूर्णा के खजाने का प्रसाद दिया जाता है, जिसमें चांदी, पीतल और तांबे के सिक्के शामिल होते हैं। यह प्रसाद घर में रखने से अन्न और धन की कमी नहीं होती, ऐसी धार्मिक मान्यता है।
मंदिर के महंत के अनुसार, भगवान शिव ने माता अन्नपूर्णा से काशीवासियों के लिए भोजन का आशीर्वाद मांगा था, और इस परंपरा के तहत प्रत्येक वर्ष धनतेरस के दिन खजाने के कपाट खोले जाते हैं। मंदिर में भोर से ही विशेष पूजा होती है, जिसमें मंगला आरती, श्रृंगार, और खजाना पूजन शामिल हैं। पांच दिनों तक इस विशेष पूजा और दर्शन के दौरान, भक्तों को माता अन्नपूर्णा, भूमि देवी, लक्ष्मी और रजत महादेव के दर्शन करने का सौभाग्य मिलता है।
धनतेरस के दिन मंदिर परिसर माता के जयघोष से गूंज उठता है। भक्त सुबह से लंबी कतारों में खड़े होकर माता के दर्शन के लिए प्रतीक्षा करते हैं। मंदिर के इस स्वर्णमयी कक्ष में विशेष आरती और पूजा के बाद माता का खजाना खुलता है, और भक्तों में सिक्के और लावा बांटे जाते हैं।
काशी के इस मंदिर का धार्मिक महत्व भी गहरा है। स्कंदपुराण के अनुसार, भगवान शिव गृहस्थ हैं और माता अन्नपूर्णा गृहस्थी को संभालने वाली देवी हैं। इस मान्यता के अनुसार, भक्तों का अन्न और धन का योगक्षेम माता अन्नपूर्णा के संरक्षण में रहता है। महंत के अनुसार, कलियुग में विशेष रूप से काशी नगरी को ‘अन्नपूर्णा की पुरी’ कहा जाता है, क्योंकि यहां माता अन्नपूर्णा की कृपा से कोई भूखा नहीं सोता।
यह परंपरा काशीवासियों के लिए बेहद खास है और हर वर्ष इस दौरान काशी का यह स्थान भक्तों के लिए आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व का केंद्र बन जाता है। अन्नपूर्णा माता के इस खजाने को लेकर श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यह उनके जीवन में सुख-समृद्धि और धन-धान्य का प्रतीक है, जो उनके परिवार को संपूर्णता का आशीर्वाद प्रदान करता है।