Menstrual Pain Leave: भारत में कार्यस्थलों पर महिलाओं और कामकाजी वर्ग की महिलाओं के लिए मासिक धर्म का दर्द होने पर नियम बनाने की मांग की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को याचिकाकर्ता से कहा, याचिकाकर्ता केंद्र को लेटर लिखें। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह एक नीतिगत मामला है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि नीतिगत विचारों को ध्यान में रखते हुए यह उचित होगा कि याचिकाकर्ता अपनी याचिका के साथ महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से संपर्क करे। अदालत ने एक कानून के छात्र द्वारा प्रस्तुत याचिका पर भी विचार किया, जिसने याचिका पर कैविएट दायर किया था। कैविएट ने बताया कि अगर कोई नियोक्ताओं को मासिक धर्म की छुट्टी देने के लिए मजबूर करता है, तो ऐसा फैसला वास्तव में महिलाओं को कर्मचारियों के रूप में नियुक्त करने के लिए हतोत्साहित करने वाला काम करेगा।
अदालत सभी राज्यों को निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें कहा गया कि अपने संबंधित कार्यस्थलों पर महिला छात्रों और कामकाजी वर्ग की महिलाओं के लिए मासिक धर्म के दर्द की छुट्टी के लिए नियम बनाए जाएं। मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 की धारा 14 का अनुपालन करने की मांग भी की गई। याचिका अधिवक्ता शैलेन्द्र मणि त्रिपाठी ने दायर की है।
याचिका के अनुसार, 1961 का मातृत्व लाभ अधिनियम, मातृत्व से संबंधित लगभग सभी समस्याओं के लिए महिलाओं को उनकी वास्तविक भावना में प्रावधान करता है। कानून की धारा 5, 5ए, 5बी, 6, 7, 8 के प्रावधानों से समझा जा सकता है। धारा 9, 9ए, 10, 11, 11ए, 12 और 13 में नियोक्ताओं के लिए यह अनिवार्य किया गया है। इसके तहत महिला कर्मचारियों को उनकी गर्भावस्था के दौरान निश्चित संख्या में वैतनिक अवकाश मिलता है। गर्भपात की स्थिति में, नसबंदी ऑपरेशन के लिए और साथ ही प्रसूति के अलग-अलग चरणों से उत्पन्न होने वाली बीमारी के साथ-साथ चिकित्सा जटिलताओं के मामले में भी अवकाश मिलता है।