Naughad, यूं तो आज हम मंगल और चंद्रमा पर जाने की बातें कर रहे हैं और 21वीं सदी में एडवांस टेक्नोलॉजी आजकल इतनी ज्यादा इस्तेमाल हो रही है कि उससे फायदा कम और नुकसान ज्यादा हो रहे हैं। तकनीक के युग में भी कई ऐसे क्षेत्र गांव हैं, जहां अभी तक मूलभूत सुविधाएं भी नहीं पहुंची हैं। चंदौली के नौगढ़ की चिरवाटांड गांव इसी का उदाहरण है।
इस गांव के भीतर जाने के लिए ना तो कोई सड़क है ना ही कोई दूसरा ऐसा मार्ग, जहां इमरजेंसी में भी वाहनों से पहुंचा जा सके। अगर आपको इस गांव में जाना है तो टूटी फूटी पगडंडी नुमा रास्तों से गुजरना होगा। खबर हिंदी की टीम जब इस गांव में पहुंची तो वहां की स्थिति देख दंग रह गई।
चिरवाटांड गांव में ना बिजली है ना ही पीने के पानी की सुलभ व्यवस्था। रहने के लिए पक्के घर भी नहीं। यहां के लोग ही जानते हैं कि विकास के तमाम चमचमाते विज्ञापनों के बीच ये ग्रामीण अपना गुजारा या अपना जीवन यापन कैसे करते हैं। कहने के लिए बहुत ही शानदार स्कूल दिखा, लेकिन बच्चों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है।
हम उसे स्कूल इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वहां लगभग 30 से 35 बच्चे पढ़ते हैं। पढ़ाने वाले रामचंद्र कहते हैं कि यहां अभी तक कोई सुविधा नहीं पहुंच पाई है। बात इंटरनेट और 5G की होती है, लेकिन इस गांव में मोबाइल में टावर तक नहीं रहता है। ना ही मोबाइल चार्ज करने के लिए बिजली है।
स्कूल की पढ़ाई और फीस के बारे में रामचंद्र ने बताया कि पिछले कई सालों से समाजसेवी संजय सिंह उनके स्कूल की फीस वाहन कर रहे हैं। उनके साथ ही सुरेंद्र द्विवेदी और डॉ.साधना द्विवेदी इस गांव में आकर लोगों को राशन, कपड़े, किताब-कॉपी-पेन आदि वितरित करते रहते हैं। चिरवाटांड गांव की बात चौंकाने वाली इसलिये भी है, क्योंकि जहां हम लोग दिन-प्रतिदिन तकनीक और आधुनिकता से जुड़े नए प्रतिमान बना रहे हैं, वहीं कई ऐसे जिले और गांव भी हैं जहां अंत्योदय के तमाम दावों पर सवाल खड़े होते हैं। गांव में मूलभूत सुविधाओं का भी टोटा देखने को मिलता है।
सरकार बहुत काम कर रही है, कई सारे प्रोजेक्ट चला रही है, कई सारी प्लानिंग है जिसके तहत हर जगह हर क्षेत्र का विकास करने का लक्ष्य रखा गया है लेकिन अभी तक योजनाओं को मूर्त रूप नहीं दिया जा सका है। उन जगहों का विकास का नहीं हुआ है। जिन बच्चों के कंधे पर भारत के भविष्य का भार है, ऐसे होनहार एक मड़ई के नीचे स्कूल में पढ़ते हैं।
उनके मां बाप से पता चला कि वह पेड़ की लकड़ी काट कर अपना भरण-पोषण करते हैं। घर के नाम पर सभी के पास एक झोपड़ी है। जिसमें एक मिट्टी का चूल्हा एक-दो कंबल और राशन राशन रखने का पात्र भी मिला।
जब खबर हिंदी की टीम ने संजय सिंह से बात की तो उन्होंने कहा कि वह लोग बीएसए से कहकर यहां पर छोटी-मोटी जरूरतों को पूरा करने की कोशिश करते हैं। वही पिछले कई सालों से वह यहां आ रहे हैं कई बार स्वास्थ्य परीक्षण कैंप लगवाया। कई बार नेत्र चिकित्सक कैंप लगवाया। लोगों के बीच राशन वितरित कराए। पूरे 2 साल कोरोनावायरस से बचाव के साथ-साथ और भी जरूरी अन्य दवाओं का भी वितरण किया गया है। उन्होंने कहा कि भगवान ने हमें इस लायक बनाया है तो हम जरूर इनकी मदद करेंगे।
लालपुर के पूर्व प्रधान सुरेंद्र द्विवेदी ने कहा कि यह बच्चे ही है जो हमारे देश की तकदीर लिखते हैं। ये हमारे देश का भविष्य हैं, और अगर हम सक्षम हैं तो अपने देश के भविष्य को संवारने में अपना आज हम जरूर लगाएंगे। हम कई वर्षों से यहां आ रहे हैं।
लोगों के बीच जरूरत की चीजों का वितरण करते हैं और आगे भी ऐसा करते रहेंगे। वहीं शिक्षा के क्षेत्र में अलख जगा रहीं डॉक्टर साधना द्विवेदी ने कहा कि चिड़िया ताल में उन्होंने महिला महाविद्यालय की पहल की है। जो भी लड़कियां 12वीं पास करेंगी और आगे पढ़ना चाहती हैं वह उनके कॉलेज में दाखिला कर नि:शुल्क शिक्षा का इंतजाम किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि बहुत दूर-दूर डिग्री कॉलेज खुले हैं, लेकिन उनका कॉलेज बहुत पास है और यहां नि:शुल्क शिक्षा लड़कियों को प्रदान की जाएगी। उन्होंने आगे कहा कि वह इनके विकास के लिए जो भी कर सकते हैं जरूर करेंगे। साथ ही अन्य लोगों को भी यहां सहयोग करने के लिए प्रेरित करेंगी।
स्थिति बहुत ही दयनीय है। करीब 10 किलोमीटर दूर राशन लेने के लिए जाना पड़ता है। पीने का पानी लेने के लिए एक से दो किलोमीटर दूर जाकर नदी से पानी मिलता है। अन्य कोई स्रोत नहीं है, जहां से उन्हें साफ पानी मिल सके। खेती के नाम पर थोड़े बहुत सरसों की खेती है। एक कहावत है- ‘जिसका कोई नहीं उसका भगवान होता है।’ ऐसे में समाज की मुख्यधारा से कटे हुए चिड़िया ताल के लोगों को वनवासी भी कहा जा सकता है।
बहरहाल, मीडिया को वॉचडॉग कहा जाता है। ऐसे में खबर हिंदी की टीम चंदौली के चिड़िया ताल का माहौल देख सोचने पर मजबूर हो गई। इसलिए हमारी छोटी सी कोशिश, इंटरनेट की मदद से यहां की आईना दिखाती तस्वीरें पूरे देश और दुनिया तक पहुंचाने बाकी। अंदाजा लगाइये कि यदि India में रहने वाले लोगों को गांवों के देश भारत में चिड़िया ताल आकर एक दिन बिना बिजली और मोबाइल के काटना पड़े तो कैसा एहसास होगा।
अंत में बिना लाग-लपेट भारत से सीधा सवाल- क्या चिड़िया ताल के लोगों को उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए या 26 जनवरी को जिस कर्तव्य पथ पर भारत की चकाचौंध दिखाई गई, उसमें कभी यहां के लोग भी शरीक हो सकें, ऐसा प्रयास या शायद कर्तव्य का निर्वाह करना ही, आज 30 जनवरी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी ?
आजादी के अमृत काल में महोत्सव मनाने और 20 देशों को भारत की गौरवशाली तस्वीर दिखाने और संसद भवन की नई इमारत में प्रवेश से इतर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को इस बात का फैसला करना ही होगा।