Pandit Bhimsen Joshi हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायक के रूप में खास पहचान बनाई। भारत के महानतम सुर साधकों में से एक, पंडित भीमसेन जोशी का जन्म 4 फरवरी 1922 को धारवाड़, वर्तमान कर्नाटक जिले में हुआ था। जोशी 24 जनवरी 2011 को पुणे में चिरनिद्रा में सो गए।
पंडित भीमसेन जोशी के पिता गुरुराज जोशी एक शिक्षक थे। दादा भीमाचार्य संगीतकार थे। बचपन में भीमसेन को अपनी माता के भजन सुनना बहुत अच्छा लगता था। पड़ोस की मस्जिद से सुबह की अजान और मंदिरों का भजन उन्हें आकर्षित करता था। घर के पास से गुजरने वाले संगीत मंडली को फॉलो करते-करते वे अक्सर अपना रास्ता भटक जाते थे।
11 साल की उम्र में संगीत की दुनिया में करियर बनाने के लिए घर से भागे भीमसेन जोशी के बारे में कुछ लोग बताते हैं कि शुरुआती दिनों में उन्होंने ट्रेनों में बिना टिकट यात्रा की। भोजन के लिए यात्रियों को गाने सुनाए।
किसी तरह ग्वालियर पहुंचने में कामयाब रहे। संगीत विद्यालय में कमाल के शास्त्रीय संगीत सुनने के बाद वे भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रसिद्ध केंद्र लखनऊ और रामपुर भी पहुंचे।
घर छोड़ने के तीन साल बाद 1936 में, भीमसेन जोशी महान सवाई गंधर्व के शिष्य बन गए। चार साल तक 14 साल के भीमसेन जोशी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के बारीक पहलुओं की शिक्षा हासिल की।
भीमसेन जोशी ने अपने गुरु को श्रद्धांजलि के रूप में पुणे में सवाई गंधर्व संगीत समारोह की शुरुआत की। साल 2002 तक भीमसेन जोशी ने स्वयं सवाई गंधर्व संगीत समारोह आयोजित की। हिंदुस्तानी संगीत कैलेंडर की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक साल 2008 में हुई।
‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ दूरदर्शन पर प्रसारित ऐसी प्रस्तुति है जिससे भीमसेन जोशी घर-घर में पहचाने गए। आज से 15 साल पहले उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान- भारत रत्न से अलंकृत किया गया।
24 जनवरी 2011 को पंडित भीमसेन जोशी चिरनिद्रा में सो गए। हालांकि, उनका संगीत आज तक अमर है। संगीत के प्रति उनका समर्पण ऐसा रहा जिसे हमेशा प्रेरक माना जाएगा। पंडित जोशी सही मायने में सरस्वती पुत्र थे।
लेकिन उनकी स्मृति में कही गई सबसे खूबसूरत बात गायक अश्विनी भिडे ने कहा, “प्रतिभाएं अमर हैं, लेकिन दुख की बात है कि शरीर अमर नहीं होते। पंडित भीमसेन जोशी के निधन से ऐसा महसूस हो रहा है जैसे कोई शरीर बिना साये के बिना चल रहा हो।”