Politics Affecting Youth : आज के दौर की राजनीति में तमाम युवाओं को विचारधारा की बीमारी से ग्रसित किया जा रहा है। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष युवा आबादी को विचारधारात्मक निष्ठा के बोझ तले दबाकर उनसे तमाम हरकतें कराता है, परंतु जब किसी कार्यकर्ता को कोई आवश्यक कार्य अथवा वह किसी कष्ट में होता है तो लोग बातचीत करना बंद कर देते हैं और ईमानदारी का चोला ओढ़ लेते हैं, और कहते हैं कि नियम कानून के तहत काम होना चाहिए। जबकि स्वयं बेईमानी और नियम कानूनों से हटकर कार्य करते हैं, अपने हित को साधने के लिए जो भी हो सकता है करते हैं।
राजनीतिक मकसद पहचानना जरूरी
हमारी युवा आबादी को यह समझने की जरूरत है कि वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था युवाओं को बरगला रही है, और उनका इस्तेमाल अपने राजनीतिक उद्देश्यों की प्रतिपूर्ति के लिए कर रही है, और युवाओं को बेवजह की विचारधारात्मक उलझन में उलझाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। युवाओं को इनसे सावधान रहने की जरूरत है और अपने भविष्य निर्माण की दिशा में उनको जाना चाहिए।
युवा विचारधारा की अफीम से बचें
छात्र जीवन और अब पत्रकारिता जीवन के अनुभव के आधार पर मैं अपने युवा साथियों से निवेदन करना चाहता हूं कि वह किसी भी राजनीतिक दल के इस छलावे में ना आएं, क्योंकि यह राजनीतिक दल आपको विचारधारा की अफीम देकर – आपको नशे में करना चाहते हैं , और इस नशे से ही आपको बचना है। यदि एक बार आपको यह विचारधारा का नशा लग गया तो मेरा विश्वास मानिए आप जीवन पर्यंत परेशान रहेंगे और अपने उद्देश्यों से भटक जाएंगे।
स्वयं की अस्मिता को खोने का खतरा
सबसे आवश्यक बात आपको यह बताना चाहता हूं कि विचारधारा की यह बीमारी लगने के बाद आप किसी काम के नहीं रहेंगे, स्वयं अपने प्रति भी आपकी निष्ठा समाप्त हो जाएगी । यह किसी भी नशे से ज्यादा खतरनाक नशा और बीमारी है और राजनीतिक दल इसी आगोश में आपको लेते रहते हैं। जैसे ही आप इस विचारधारा रूपी नशे की आगोश में आते हैं तो फिर आप अपनी स्वयं की अस्मिता को खो देते हैं और आप किसी काम के नहीं रह जाते हैं।
मोमबत्ती जलाकर आत्मनिर्भर बनिए !
वर्तमान सरकारें और राजनीतिक व्यवस्था आपको विचारधारा की यही घुट्टी पिला रही है जो किसी भी प्रचलित नशे से ज्यादा खतरनाक है। आपको इनसे बचने की जरूरत है । यदि आप नहीं बचे तो जीवन भर ताली थाली बजाते और मोमबत्ती जलाते रह जाएंगे । क्योंकि इनको यही चाहिए कि आप मोमबत्ती जलाकर आत्मनिर्भर बनिए और राष्ट्र के उत्कर्ष में योगदान दीजिए ,और जैसे ही आप इस विचारधारा को मानते हैं तो आपको ऐसा लगता है कि आप बहुत महान कार्य कर रहे हैं । जबकि ऐसा नहीं है।
व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास करें
आपको इवेंट मैनेजमेंट के तहत यह सब कराया जा रहा है। जिससे आप व्यस्त रहें और मानसिक गुलामी के तंत्र में फंसकर उनके पिट्ठू बनकर काम करते रहें। सबसे दुर्भाग्य की बात यह है कि तमाम राजनीतिक दल भी अब यही प्रक्रिया फॉलो करने लगे हैं, जिससे यह साफ हो गया है कि सभी राजनीतिक दल अब विचारधारा की बीमारी को युवाओं में ठूंस ठूंसकर भरना चाहते हैं। इसलिए युवाओं को यह चाहिए कि इनके इस इवेंट मैनेजमेंट का हिस्सा ना बने और राजनीतिक विचारधारा की बीमारी को एक्सेप्ट करने से मुकर जाएं, और वास्तव में राष्ट्र के उत्कर्ष के लिए व्यक्तिगत स्तर पर जो कर सकते हैं करें।
बहकावे में मत आइए
व्यक्तिगत प्रयास इसलिए क्योंकि राजनीतिक दल केवल और केवल सत्ता लोलुप हो चुके हैं, और यह आपको किसी भी अंधकार के कुएं में डाल कर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की प्रतिपूर्ति कर सकते हैं। सतर्क हो जाइए इनके बहकावे में मत आइए।
(आलोक शुक्ल ‘जोरदार’)
लेखक पत्रकार हैं। आलेख में व्यक्त विचार निजी हैं। विचारों का खबरहिंदी डॉट कॉम से कोई सरोकार नहीं है।