Power Companies, प्रदेश की बिजली कंपनियों (Power Companies) की तरफ से विद्युत नियामक आयोग (Electricity Regulatory Commission) में दाखिल वार्षिक राजस्व आवश्यकता वर्ष 2023 -24 व ट्रू-अप याचिका का वर्ष 2021 -22 जिसके संबंध में उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (Uttar Pradesh Electricity Regulatory Commission) ने बिजली कंपनियों से सैकडों सवाल पूछे थे. प्रस्ताव में तमाम कमियां सामने आई थीं.
इसके संबंध में प्रदेश की बिजली कंपनियों (Power Companies) की तरफ से बुधवार को विद्युत नियामक आयोग में आधा अधूरा जवाब दाखिल कर दिया गया है. इस पर उपभोक्ता परिषद ने कहा कि बिजली कंपनियों की तरफ से विद्युत नियामक आयोग में जो जवाब दाखिल किए जा रहे हैं उसके आधार पर बिजली कंपनियों की वार्षिक राजस्व आवश्यकता को विद्युत नियामक आयोग को किसी भी स्तर पर स्वीकार नहीं करना चाहिए.
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परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि बिजली कंपनियों ने विद्युत नियामक आयोग की तरफ से पूछे गए सवाल का जवाब रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के तहत नहीं दिया है. वर्ष 2021- 22 ट्रू-अप याचिका की बात हो रही है और जब विद्युत नियामक आयोग ने बिजली कंपनियों से सीएजी ऑडिट रिपोर्ट तलब की तो बिजली कंपनियों का कहना है कि अभी सीएजी ऑडिट रिपोर्ट नहीं प्राप्त हुई है ऐसे में फिर इस याचिका का क्या होगा?
बिजली कंपनियां एक तरफ कह रही हैं कि मुआवजा कानून टेस्टिंग में चल रहा है बहुत जल्द लागू हो जाएगा, वहीं दूसरी तरफ अपने जवाब में यह भी कह रही हैं कि किसी भी उपभोक्ता ने आज तक मुआवजा मांगा ही नहीं. अब बिजली कंपनियों की तरफ से जब मुआवजा कानून लागू ही नहीं किया गया तो उपभोक्ता मुआवजा मांगे तो कैसे? इसका जवाब कौन देगा?
बता दें कि प्रदेश की बिजली कंपनियों की तरफ से पिछले दिनों जो वार्षिक राजस्व आवश्यकता विद्युत नियामक आयोग में दाखिल की गई थी उसके साथ जो बिजली दर का प्रस्ताव दाखिल किया गया था उसमें लगभग 18 से 23 प्रतिशत तक औसत वृद्धि का प्रस्ताव दिया गया था अब जब विद्युत नियामक आयोग ने उसके आधार पर डिफिशिएंसी नोट बिजली कंपनियों के लिए जारी किया तो उसका उत्तर देने में बिजली कंपनियों के पसीने छूट रहे हैं.
उपभोक्ता परिषद ने एक बार फिर प्रदेश की बिजली कंपनियों को घेरते हुए कहा कि प्रदेश की बिजली कंपनियां यह कैसे भूल सकती हैं कि जब प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर लगभग 25,133 करोड रुपए सरसरप्लस निकल रहा है ऐसे में बिजली दरों में बढोतरी की बात किस आधार पर की जा सकती है. देश का कोई भी कानून बिजली दरों में बढोतरी की इजाजत नहीं देता.
अवधेश कुमार वर्मा ने कहा विद्युत नियामक आयोग ने आरडीएसएस स्कीम के लिए पूरा विस्तृत जवाब मांगा था, लेकिन बिजली कंपनियों की तरफ से आधा अधूरा जवाब दे दिया गया. यह बताने की कोशिश नहीं की गई कि इस पर होने वाले खर्च की भरपाई कहां से होगी? जबकि विद्युत नियामक आयोग पिछले चार वर्षों से स्मार्ट प्रीपेड मीटर के कैपिटल एक्सपेंडिचर को खारिज करता चला आ रहा है.
बिजली कंपनियों की तरफ से मिलने वाली सरकारी सब्सिडी का उपभोक्ता श्रेणीवार कोई भी ब्रेकअप ना दिया जाना गंभीर मामला है. जब विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 65 का सही मायने में पालन ही नहीं होगा तो उसके आधार पर टैरिफ का निर्धारण कैसे किया जाएगा?