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  • December 9, 2024
  • Last Update November 26, 2024 9:26 pm
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CEC Arun Goel Appointment : SC का सवाल- 15 मई से ही पता थी वैकेंसी, नवंबर में बिजली जैसी तेज गति से नियुक्ति क्यों ?

CEC Arun Goel Appointment : SC का सवाल- 15 मई से ही पता थी वैकेंसी, नवंबर में बिजली जैसी तेज गति से नियुक्ति क्यों ?

CEC Arun Goel की अप्वाइंटमेंट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, चुनाव आयुक्त के रूप में अरुण गोयल की नियुक्ति आसमान में बिजली चमकने जैसी तेज गति से हुई। बता दें कि बुधवार को अरुण गोयल की नियुक्ति के मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा था कि भारत में ऐसे चुनाव आयुक्त की जरूरत है, जो समय आने पर प्रधानमंत्री जैसे व्यक्ति के खिलाफ भी कार्रवाई की क्षमता रखता हो।

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भी पूर्व आईएएस अधिकारी अरुण गोयल की नए चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति मामले पर सुनवाई की। Lightening Speed CEC Appointment प्रकरण पर केंद्र से सवाल करते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्ति की प्रक्रिया 24 घंटे के भीतर पूरी की गई। न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने चुनाव आयुक्त के रूप में गोयल की नियुक्ति पर केंद्र सरकार की ओर से पेश की गई ओरिजनल फाइलों का अवलोकन किया। इस संविधान पीठ में जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार भी शामिल हैं।

CEC अप्वाइंटमेंट मामले पर कोर्ट ने पूछा, “प्रक्रिया को इस तरीके से शुरू करने के लिए सरकार पर क्या दबाव था ?” अदालत ने जानना चाहा कि सब कुछ कम से कम संभव समय और सुपर फास्ट गति से कैसे किया गया ? अटॉर्नी जनरल (एजी) आर वेंकटरमणी से मुखातिब जस्टिस जोसेफ ने कहा, 18 नवंबर को… हमें अरुण गोयल की नियुक्ति की फाइल मिली। फाइल उसी दिन प्रोसेस हुई, उसी दिन क्लीयरेंस मिल गया। आवेदन भी उसी दिन हुआ। स्वीकृति और नियुक्ति भी उसी दिन हो गई। श्रीमान अटॉर्नी जनरल, फाइल के निष्पादन में 24 घंटे भी नहीं लगे। मानो बिजली की गति से काम हो रहा है। इसमें किस तरह का मूल्यांकन किया गया है ?

अदालत के सख्त सवालों के जवाब में केंद्र सरकार ने कहा कि नियुक्ति में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है। पीठ ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट अरुण गोयल की साख और गुण-दोष पर नहीं, बल्कि नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठा रही है। पक्षकारों की दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने चुनाव आयुक्तों (Election Commissioners) और मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

बता दें कि सीईसी बने अरुण गोयल ने 18 नवंबर को अपनी पिछली पोस्टिंग से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली और 19 नवंबर को उन्हें भारत का मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया। उन्होंने और 21 नवंबर को कार्यभार भी संभाल लिया। 1985 बैच के आईएएस अधिकारी गोयल की एक ही दिन में हुई नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार से सवाल किया। जस्टिस अजय रस्तोगी ने पूछा, “आपके पहले पन्ने के मुताबिक वैकेंसी 15 मई ही से थी। क्या आप हमें दिखा सकते हैं कि मई से नवंबर तक ऐसा क्या था जो सरकार पर भारी पड़ा और नवंबर में सब कुछ सुपरफास्ट किया गया ?

केंद्र सरकार की ओर से भेजी गई फाइल देखने के बाद शीर्ष अदालत ने पूछा कि कानून और न्याय मंत्रालय ने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए चार नामों को कैसे शॉर्टलिस्ट किया ? पीठ ने पूछा, “नामों के विशाल भंडार में से सरकार वास्तव में एक नाम का चयन कैसे कर लेती है ?” यह देखा गया कि चार उम्मदीवारों में से केंद्र ने ऐसे नाम चुने हैं, जिन्हें चुनाव आयुक्त (CEC) के रूप में पूरा कार्यकाल यानी छह साल नहीं मिलेंगे। शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र को ऐसे लोगों को चुनना होगा जिन्हें चुनाव आयुक्त के रूप में छह साल मिलना चाहिए।

CEC के कार्यकाल के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “केंद्र ने ऐसे लोगों को नहीं चुना है जिन्हें चुनाव आयुक्त के रूप में छह साल की सामान्य अवधि मिलेगी।” यह पूछते हुए कि केंद्र ने इन्हीं चार लोगों के नाम को क्यों चुना, शीर्ष अदालत ने कहा कि और वरिष्ठ नौकरशाहों के नाम भी हैं, लेकिन केंद्र ने किसी ऐसे व्यक्ति का चयन कैसे किया जिसे छह साल की अवधि बिल्कुल नहीं मिलेगी ?

सर्वोच्च न्यायालय चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर विचार कर रही है। अदालत के सवालों पर अटॉर्नी जनरल ने जवाब दिया कि चयन के लिए एक तंत्र और मानदंड है। ऐसा कोई परिदृश्य नहीं हो सकता है जहां सरकार को हर अधिकारी के ट्रैक रिकॉर्ड को देखना पड़े और यह सुनिश्चित करना पड़े कि वह छह साल का कार्यकाल पूरा करता हो।

गौरतलब है कि चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और कार्य संचालन) अधिनियम, 1991 के तहत एक चुनाव आयुक्त का कार्यकाल अधिकतम छह वर्ष होता है। 65 वर्ष की आयु पूरी होने पर रिटायरमेंट हो जाती है।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार की टिप्पणी में कहा, भारत के चुनाव आयोग को सरकार का “यस मैन” नहीं होना चाहिए। CEC स्वतंत्र और ऐसा हो जो स्वतंत्र रूप से कार्य कर सके भले ही उसे प्रधानमंत्री के खिलाफ एक्शन लेना पड़े। पीठ ने “निष्पक्ष और पारदर्शी तंत्र” पर जोर दिया और कहा कि प्रक्रिया ऐसी हो जिससे “सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति” सीईसी के रूप में नियुक्त किया जा सके।

बता दें कि शीर्ष अदालत सीईसी और ईसी की वर्तमान नियुक्ति प्रक्रिया की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। प्रोसेस पर सवाल करने वालों ने तर्क दिया है कि नियुक्तियां कार्यपालिका की सनक और कल्पना के अनुसार की जा रही हैं।
याचिकाओं में सीईसी और दो अन्य ईसी की भविष्य की नियुक्तियों के लिए एक स्वतंत्र कॉलेजियम या चयन समिति के गठन की मांग की गई है। याचिकाओं में कहा गया है कि सीबीआई निदेशक या लोकपाल की नियुक्तियों में विपक्ष और न्यायपालिका की मौजूदगी होती है, CEC के मामले में केंद्र एकतरफा रूप से चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति करता है। शीर्ष अदालत ने करीब 4 साल पहले 23 अक्टूबर, 2018 को जनहित याचिकाओं को संविधान पीठ के पास भेज दिया था।

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