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  • December 26, 2024
  • Last Update December 13, 2024 11:32 pm
  • Noida

UP Electricity Smart Meter के टेंडर में गड़बड़ी की आशंका, सीबीआई जांच की मांग

UP Electricity Smart Meter के टेंडर में गड़बड़ी की आशंका, सीबीआई जांच की मांग

UP Electricity Smart Meter की मदद से लाखों उपभोक्ताओं को बांट रहा है। हालांकि, उत्तर प्रदेश की सभी बिजली कंपनियों के लगभग 2.5 करोड़ स्मार्ट प्रीपेड मीटर के टेंडर में गड़बड़ी की आशंका उभरी है। टेंडर की उच्च दरों पर अभी भी गतिरोध बना हुआ है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के निजी बिजली घराने नाराज न हो जाएं इसलिए रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कारपोरेशन लिमिटेड (आरईसी) ने गोलमोल जवाब देकर अपना पल्ला झाड़ लिया है।

उपभोक्ता परिषद के विरोध के बाद 25,000 करोड़ की लागत के उच्च दरों वाले टेंडर पर पावर कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक ने संज्ञान लिया था। उनकी तरफ से दिसंबर के आखिरी सप्ताह में भारत सरकार ऊर्जा मंत्रालय के अधीन रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कारपोरेशन लिमिटेड (आरईसी) को प्रस्ताव भेजा गया। इसमें कहा गया था कि चूंकि उत्तर प्रदेश में दो निजी घरानों के टेंडर की दरें भारत सरकार ने बनाईं स्टैंडर्ड बिल्डिंग गाइडलाइन में दर्ज बेंचमार्किंग एस्टिमटेड कॉस्ट 6000 से 48 से 65 प्रतिशत अधिक आई है। ऐसे में आरईसी यह बताए कि उच्च दरों वाले टेंडर को निरस्त किया जाए या ऐस्टीमेटेड कॉस्ट पर क्या निर्णय लिया जाए?

अब भारत सरकार ऊर्जा मंत्रालय के अधीन रूलर इलेक्ट्रिफिकेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड के एकजुकेटिव डायरेक्टर राहुल द्विवेदी की तरफ से पावर कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक को जो जवाब आया है उसमें आरईसी ने कहा है कि जब पुनरुत्थान वितरण क्षेत्र सुधार योजना (आरडीएसएस ) स्कीम बनाई जा रही थी उस समय जो स्टैंडर्ड बिल्डिंग गाइडलाइन में बेंचमार्क की दरें तय की गई थीं वह 6000 रुपए ही हैं, लेकिन वर्तमान में उत्तर प्रदेश में जो बिल्डिंग प्रोसेस से टेंडर की उच्च दरें आई है उसे स्मार्ट प्रीपेड मीटर के टेंडर की अन्य राज्यों की दरों से मिलान करने के बाद प्रदेश की बिजली कंपनियां अपने स्तर से ही निर्णय लें।

सीबीआई जांच की डिमांड

उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा एक तरफ यह बात भी आरईसी मान रहा है कि बेंचमार्किंग रुपया 6000 की है, लेकिन उत्तर प्रदेश में निकले टेंडर की दर रुपया 10000 प्रति मीटर वाले टेंडर को निरस्त करने का आदेश देने की सलाह पर ऊर्जा मंत्रालय के पसीने क्यों छूट रहे हैं? शायद वह इसलिए क्योंकि उसे भी पता है यह देश के बडे निजी घराने का टेंडर है। यह पूरा मामला बहुत गंभीर है। ऐसे में पूरे मामले की उत्तर प्रदेश सरकार या केंद्र सरकार को सीबीआई या सीएजी ऑडिट से जनहित में जांच कराना चाहिए।

देश का कोई भी ऐसा कानून नहीं है जो ऐस्टीमेटेड कॉस्ट से 65 प्रतिशत अधिक दर वाले टेंडर को अवार्ड कराने का आदेश दे सकें। सभी को पता है कि इस पूरी योजना में भारत सरकार ने मनमाने तरीके से बनाई गई स्टैंडर्ड बिल्डिंग गाइडलाइन के आधार पर पूरे देश में कुछ निजी घरानों ने आपस में तालमेल करके उच्चदर पर टेंडर डाला है। ऐसे में दूसरे राज्यों की तुलना ऐस्टीमेटेड कॉस्ट से अधिक दर वाले टेंडर की करना ही अपने आप में बडे भ्रष्टाचार को बढावा देगा, क्योंकि सभी राज्य में ज्यादातर यही निजी घराने हैं और सबकी दरें यही हैं।

उन्होंने कहा कि सबसे बडा चैंकाने वाला मामला है कि इस पूरी योजना पर होने वाला 90 फीसद खर्च की भरपाई प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं से की जाएगी और बडा लाभ देश के बडे निजी घराने कमाएंगे, ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार को पूरे मामले पर हस्तक्षेप करते हुए अविलंब टेंडर को निरस्त कराने का आदेश देना चाहिए। पूर्व में आरडीएसएस योजना के अन्य टेंडर जो निरस्त किए गए थे उनकी दरें पांच से 28 प्रतिशत तक अधिक आई थी। अब जब टेंडर दोबारा खुला तो उसकी दरें 10 से 12 प्रतिशत कम हो गईं यानी उत्तर प्रदेश में अभी तक जो भी निर्णय लिया गया वह उपभोक्ताओं के हित में था। ऐसे में इस टेंडर को निरस्त करने में आखिर क्या दिक्कत है ?

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