ये कहानी है Indian Roti Bank की। भूखी महिला को देखने के बाद द्रवित हुए विक्रम पांडे ने एक ऐसी मुहिम चला रखी है जिससे 14 राज्यों के अलावा दो देशों के करीब 12 लाख लोग भोजन पा रहे हैं। 100 केंद्रों के सफल संचालन के बाद अब विक्रम का टारगेट पूरे देश में सेंटर खोलना है।
इंडियन रोटी बैंक को जो बात खास बनाती है वह ये कि खाने की चीजों को बर्बाद होने से रोकना भी इनका प्रमुख मकसद है। Indian Roti Bank के संस्थापक विक्रम पांडे बताते हैं कि “हम समारोहों से बचा हुआ अतिरिक्त भोजन भी एकत्र करते हैं और इसे जरूरतमंदों को वितरित करते हैं।” राजनीतिक रूप से कांग्रेस पार्टी में सक्रिय रहे पांडे बताते हैं कि गरीबों में रोटी बांटने का अभियान उनके जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य बन गया है।
उनके पिता शैलेश पांडेय हरदोई में अधिवक्ता हैं और उनकी माता गृहणी हैं। उन्होंने कहा कि जन सहयोग से ही संस्था चलती है। पांडे बताते हैं, “मैं सरकार या प्रशासन से एक रुपए का भी सहयोग नहीं लेता और न ही चंदा या अनुदान लेता हूं।” उन्होंने कहा कि इंडियन रोटी बैंक व्हाट्सएप के जरिए अपना नेटवर्क संचालित करता है और समूह ने नाइजीरिया और नेपाल में भी आंदोलन शुरू कर दिया है।
पिछले सात सालों में इंडियन रोटी बैंक से कई लोग जुड़े। बलिया के राम बदन चौबे भी आईआरबी के उत्तर प्रदेश समन्वयक रह चुके हैं। न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में उन्होंने बताया कि वह पहले आईआरबी से जुड़े थे, लेकिन संगठन छोड़ने के बाद, वह बलिया में भूखों को भोजन उपलब्ध कराना जारी रखा है।
विक्रम पांडे ने दावा किया कि कई लोग उत्साह से आईआरबी में शामिल होते हैं और फिर सफलता का स्वाद चखने के बाद चले जाते हैं। उन्होंने कहा कि कई आईआरबी कार्यकर्ता केवल रोटियां बांटकर नगरसेवक बन गए और फिर अभियान छोड़ दिया।