Dhanteras के मौके पर देशभर के बाजारों में रौनक देखी जा सकती है। दीपावली के दो दिन पहले हर साल धनतेरस या धनत्रयोदशी का त्योहार मनाया जाता है। कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि को ‘धनतेरस’ मनाया जाता है। त्रयोदशी इस वर्ष 22 अक्टूबर को सायं 6:41 से शुरू हो रही है। 23 अक्टूबर की शाम 6:37 तक त्रयोदशी तिथि रहेगी। खरीदारी करने वाले लोग धनत्रयोदशी 22 अक्टूबर को मनाएंगे।
धनतेरस के दिन चाँदी का बर्तन खरीदना अत्यन्त शुभ माना गया है, परंतु वस्तुतः यह यमराज से सम्बन्ध रखनेवाला व्रत है। इस दिन सायंकाल घर के बाहर मुख्य दरवाजे पर एक पात्र में अन्न रखकर उसके ऊपर यमराज के निमित्त दक्षिणाभिमुख दीपदान करना चाहिये। दीप का गन्धादिसे पूजन करने का भी विधान है।
काशी विद्वत् परिषद् के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी बताते हैं कि दीपदान करते समय प्रार्थना करनी चाहिये।
Dhanteras पर दीपदान का मंत्र–
मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यजः प्रीयतामिति॥ ॥
प्रो. रामनारायण द्विवेदी बताते हैं कि यमुनाजी यमराज की बहन हैं इसलिये धनतेरस के दिन यमुना-स्नान का भी विशेष माहात्म्य है। उन्होंने कहा, यदि पूरे दिन का व्रत रखा जा सके तो ये अति उत्तम माना जाता है, लेकिन ऐसा न भी संभव हो तो शाम के समय दीपदान अवश्य करना चाहिये।
दीपदान का महत्व–
कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति॥
Dhanteras से जुड़ी कथा—
एक बार यमराजने अपने दूतों से पूछा, तुम लोग मेरी आज्ञा से मृत्युलोक के प्राणियों के प्राण हरण करते हो। क्या तुम्हें ऐसा करते समय कभी दुःख भी हुआ है या कभी दया भी आयी है ? इस पर यमदूतों ने कहा-महाराज! हमलोगों का कर्म अत्यन्त क्रूर है परंतु किसी युवा प्राणी की असामयिक मृत्यु पर उसका प्राण हरण करते समय वहाँ का करुण क्रन्दन सुनकर हमलोगों का पाषाणहृदय भी विगलित हो जाता है।
यमदूतों ने बताया कि एक बार उन्हें एक राजकुमार के प्राण उसके विवाह के चौथे दिन ही हरण करने पड़े। उस समय परिजनों की चीत्कार और हाहाकार देख-सुनकर हमें अपने कृत्य से अत्यन्त घृणा हो गयी। उस मङ्गलमय उत्सवके बीच हम लोगों का यह कृत्य अत्यन्त घृणित था, इससे हमलोगों का हृदय अत्यन्त- दुःखी हुआ। अतः हे स्वामिन् ! कृपा करके कोई ऐसी युक्ति बताइये जिससे ऐसी असामयिक मृत्यु न हो।
मृत्युलोक के प्राणियों के प्राण हरण पर यमदूतों की पीड़ा सुनकर यमराज ने कहा कि जो धनतेरस के पर्वपर मेरे । उद्देश्यसे दीपदान करेगा, उसकी असामयिक मृत्यु नहीं होगी।
बता दें कि भगवान् धन्वन्तरि का जन्मोत्सव कार्तिकमास के कृष्णपक्ष में त्रयोदशी तिथि को होता है। समुद्र मंथन के समय भगवान् धन्वन्तरि का प्राकट्य माना जाता है। देव- दानवों द्वारा क्षीरसागरका मन्थन करते समय भगवान धन्वन्तरि संसार के समस्त रोगों की औषधियों को कलश में भरकर प्रकट हुए थे। उस दिन त्रयोदशी तिथि थी। इसलिये उक्त तिथि में सम्पूर्ण भारतमें तथा अन्य देशों (जहाँ हिन्दुओंका निवास है) भगवान् धन्वन्तरि की जयन्ती-महोत्सव मनाने की परंपरा है।
आयुर्वेद के विद्वान् तथा वैद्य समाज की ओर से विशेष पूजा होती है। भगवान धन्वन्तरि की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है। उनका पूजन श्रद्धा-भक्ति पूर्वक किया जाता है एवं प्रसाद वितरण करके लोगों के दीर्घ जीवन तथा आरोग्य लाभ की मङ्गल कामना की जाती है। दूसरे दिन संध्या समय जलाशयों में प्रतिमाओं का विसर्जन भजन-कीर्तन करते हुए किया जाता है। मान्यता है कि धनतेरस के दिन भगवान् धन्वन्तरि प्राणियों को रोग-मुक्त करने के लिये भव-भेषजावतार के रूपमें प्रकट हुए थे।