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  • November 21, 2024
  • Last Update November 16, 2024 2:33 pm
  • Noida

Diwali Eklavya Sakpal के लिए राम की अयोध्या वापसी नहीं, सागर मंथन से जुड़ा त्योहार, आतिशबाजी पर भी रोचक तर्क, जानिए

Diwali Eklavya Sakpal के लिए राम की अयोध्या वापसी नहीं, सागर मंथन से जुड़ा त्योहार, आतिशबाजी पर भी रोचक तर्क, जानिए

Diwali के मौके पर हमने जाने माने माइथॉलॉजिस्ट Eklavya Sakpal से खास बातचीत की। एकलव्य साकपाल म्यूजिक इंडस्ट्री में किसी पहचान के मोहताज नहीं। इन दिनों एकलव्य अपने अगले गीत ‘Shiv Ki lagan’ की रिकॉर्डिंग पूरी करके इसकी वीडियो शूटिंग की तैयारियों में जुटे हैं। बातचीत के दौरान एकलव्य साकपाल ने दीपावली से जुड़े पौराणिक संदर्भ बताए। लोकप्रचलित तथ्य- भगवान राम की अयोध्या वापसी के मौके पर दीपमाला या दीपावली से इतर एकलव्य ने बताया कि सागर मंथन से दिवाली का कनेक्शन है। पढ़िए इंटरव्यू के प्रमुख अंश–

सवाल- दीवाली में पारंपरिक त्योहार और आधुनिक सेलिब्रेशन को आप कैसे देखते हैं ?

एकलव्य का जवाब- मैं मुंबई में रहता हूं और हमारे यहां शुरुआत से ही दिवाली पारंपरिक तरह से मनाई जा रही है। दिवाली के दिन हम ब्रह्ममुहूर्त पर यानी, सुबह 4:00 बजे से पहले उठकर स्नान करते हैं फिर अच्छे से तैयार होकर फूल, दिए और रंगोली से घर के परिसर को सजाते हैं। सजावट के बाद हम सब मिलकर सुबह की पहली पूजा करते हैं और फिर घर में बनाए हुए दीपावली के खास भोग प्रसाद का आनंद उठाते हैं। खास भोग में करंजी, शकर पाली, गाट्टी, पोहे का चूड़ा, बेसन के लड्डू, चकली और कुछ अन्य मिठाइयां होती हैं, जो बहुत ही विशेष पदार्थ हैं और हमारे घर में yeh sab दिवाली के काफी पहले से बनना शुरू हो जाता है। शाम को जगमगाती हुई लाइट्स, दिए और रंगोली से घर की रौनक और भी बढ़ जाती है और सुंदर वातावरण में हम पूरे परिवार के साथ मिलकर मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं। इसके बाद आतिशबाजी का भी लुत्फ उठाते हैं। संपूर्ण प्रक्रिया अपने आप में पूर्णत: पारंपरिक है।

Dhanteras

सवाल- राम की अयोध्या वापसी पर दीवाली और अब घर-घर आतिशबाजी वाली दीपावली किसे और क्यों बेहतर मानते हैं ?

एकलव्य का जवाब- मैं दीपावली को राम की अयोध्या वापसी से नहीं जोड़ता। दिवाली तो सृष्टि के प्रारंभ से ही मनाई जा रही है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में इसका वर्णन मिलता है। जब यह संसार श्रीहीन था तब देवताओं ने ऐश्वर्य, धन-धान्य, सिद्धि, समृद्धि की स्थापना हेतु असुरों की सहायता से सागर मंथन किया था। सागर मंथन से 14 दिव्य रत्न उत्पन्न हुए। इन रत्नों में ही एक मां लक्ष्मी थीं। उनके आने से समस्त सृष्टि को एक नई तेजस्वी उर्जा प्रदान हुई। यही वह दिन था जो हर साल आज भी दिवाली के रूप में यानी मां लक्ष्मी पूजन के पर्व के रूप में मनाया जाता आरहा है। जब मां लक्ष्मी का सागर मंथन से आगमन हुआ उसके पहले तक हर जगह केवल अंधकार था, किंतु श्री हरि विष्णु के चरणों में देवताओं ने उन्हें सम्मान देते हुए मिट्टी का दीया प्रज्वलित किया था। संपूर्ण परिसर में केवल उस दीये की ही रोशनी थी। इसीलिए मां लक्ष्मी श्री हरि विष्णु की शरण में गईं। तब संसार को यह ज्ञात हुआ कि मां लक्ष्मी को गौ माता के शुद्ध घी से प्रज्वलित मिट्टी से बने हुए दीपक अत्यंत प्रिय हैं। इसलिए हम दीपावली पर घर के अंदर और घर के बाहर मिट्टी के दीए प्रज्वलित करते हैं, ताकि मां वह दीपक देखकर हमारे घर में आएं।

दीपावली पूजन

रहा सवाल आतिशबाजी का तो यह भी कोई नई बात नहीं है। सागर मंथन से जब मां लक्ष्मी का आगमन हुआ तब देवताओं और असुरों ने उनके स्वागत में अपने धनुष-बाण से आकाश में आग के कई बाण चलाए ताकि परिसर प्रकाशमय हो सके। मां को वह दृश्य अत्यंत मनभावन लगा क्योंकि अग्निबाण संपूर्ण वातावरण में तेज एवं रोशनी उत्पन्न कर रहे थे। तब से दिवाली पर आतिशबाजी का भी अत्यंत महत्वपूर्ण विधान माना जाने लगा।

सवाल– आप एक कलाकार के तौर पर कई शहरों में जाते रहे हैं। दीवाली के पारंपरिक त्योहार से जुड़ी कोई ऐसी रोचक बात जो आपको बाकी शहरों या अपने पैतृक घर के उत्सव से अलग लगी हो ?

एकलव्य का जवाब- यह बात सच है कि मैं बहुत यात्राएं करता रहता हूं, लेकिन मैं विशेष तौर पर इस बात का ध्यान रखता हूं कि दिवाली के दिन में घर से बाहर ना जाऊं। इसके पीछे मेरी अपनी एक मान्यता है। हम दिन रात परिश्रम करते हैं ताकि हम सुखी जीवन व्यतीत कर सकें। सुखी जीवन की परिभाषा सीधे-सीधे आपकी श्रीमंती से जुड़ी होती है। मैं दोबारा कह रहा हूं श्रीमंती से जुड़ी होती है, आपके धन से नहीं। धनवान होने में और श्रीमंत होने में बहुत बड़ा अंतर है। धनवान तो धन अर्जित करके कोई भी बन सकता है किंतु जो व्यक्ति उस धन को उच्च आध्यात्मिक कार्यों में लगाता है वही श्रीमंत कहलाता है। आप कभी भी श्री अर्थात मां लक्ष्मी के आशीर्वाद के बिना श्रीमंत नहीं बन सकते। इसलिए दिवाली का एक दिन जहां लक्ष्मी पूजन होता है उस दिन में घर में रहकर पूजा पाठ में अपना समय व्यतीत करता हूं। एक विश्वास होता है कि मैं जब में अपनी संपूर्ण आस्था से मां का चिंतन एवं पूजन करता हूं तो मां जरूर किसी ना किसी दृश्य-अदृश्य रूप में घर अवश्य आएंगी। ऐसे में सोचिए अगर मां घर आएं और उनका बेटा घर पर ना हो तो यह बात कितनी दुखद लगती हैं। ऐसे में दीवाली के मौके पर मैं सदैव घर पर ही रहता हूं।

Dhanteras

सवाल– क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि आतिशबाजी के कारण पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है ? अगर पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है तो नुकसान को कैसे कम किया या रोका जा सकता है ?

एकलव्य का जवाब— दिवाली खुशियों का त्योहार है। अगर आप संसार के साथ अपनी खुशियां बांट सकते हो तो अच्छी बात है लेकिन कभी दूसरों की खुशियों के आड़े न आएं। किसी को आतिशबाजी करना पसंद है तो उन्हें वह करने देना चाहिए। पटाखे जलाने से वातावरण दूषित हो रहा है और पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है, ऐसी बकवास बातें कृपया ना करें। दिवाली सिर्फ तीन दिन की होती है यदि आपको वातावरण की इतनी ही चिंता है तो दिवाली के बाद आप सिर्फ दो दिन के लिए किसी भी वाहन का प्रयोग ना करें। कहीं आना जाना हो तो उसके लिए केवल पैदल या साइकिल जैसे साधनों का चयन करें। ऐसा करने से नि:संदेह जितना नुकसान 3 दिन की दिवाली में पर्यावरण को होगा उससे ज्यादा फायदा पर्यावरण को आप के 2 दिन वाहन का प्रयोग ना करने से होगा।

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