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  • September 8, 2024
  • Last Update August 15, 2024 9:49 am
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क्या Kashi Vishwanath Mandir स्थापना के समय 100 साल ही मांगी गई आयु ? किन आक्रांताओं के निशाने पर रहा आस्था-विश्वास का यह केंद्र ?

क्या Kashi Vishwanath Mandir स्थापना के समय 100 साल ही मांगी गई आयु ? किन आक्रांताओं के निशाने पर रहा आस्था-विश्वास का यह केंद्र ?

उत्तर प्रदेश संस्कृति और तीर्थ के मामले में विशेष है। अयोध्या, मथुरा, प्रयाग और सारनाथ जैसे उदाहरण उत्तर प्रदेश के साथ-साथ भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रमाण हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर की ऐतिहासिकता भी आकर्षित करती है। दरअसल, Kashi Vishwanath Mandir बनारस का सबसे प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर माना जाता है। सरकार ने इसका सौंदर्य बढ़ाने के लिए वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण कराया है, लेकिन भगवान शंकर के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शुमार काशी विश्वनाथ मंदिर के अस्तित्व में आने और सैकड़ों साल पहले हुए निर्माण की कहानी भी काफी दिलचस्प है।

828 साल पहले क्या हुआ

काशी विश्वनाथ मंदिर सर्वप्रथम गुप्तकालीन राजा विक्रमादित्य के समय बना। काशी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना और पत्थरों से मंदिर के गर्भगृह के निर्माण का उल्लेख ऐतिहासिक ग्रंथों में भी मिलता है। यह मंदिर अपने समय का सबसे विशाल एवं भव्य मंदिर था। ऐसे में इसकी ख्याति दूर दूर तक फैली थी। इतिहास के जानकारों का मानना है कि काशी विश्वनाथ मंदिर मुस्लिम आक्रांता के निशाने पर रहा और मंदिर को चार बार तोड़ा गया। सर्वप्रथम इस मंदिर को मोहम्मद गोरी ने बनारस विजय की सनक में धराशाई किया था। विश्वनाथ मंदिर के अलावा काशी में कई और मंदिरों को भी निशाना बनाया गया। मंदिरों की संपत्ति लूटी गई। उत्पात के बाद लूटी गई संपत्ति गजनी भेज दी गई। टाइमलाइन की जानकारी रखने वाले बताते हैं कि ये घटना 1194 ईस्वी की है।

Kashi Vishwanath Mandir
फोटो सौजन्य- ट्विटर

तोड़फोड़ और लूटपाट

मोहम्मद गौरी की विनाश लीला खत्म होने के बाद गुजरात के एक व्यापारी ने काशी विश्वनाथ मंदिर को दोबारा निर्माण कराया। मंदिर टूटने के डर से इस मंदिर को पहले की तरह विशाल नहीं बनाया गया था। जीर्णोद्धार के बाद दिलचस्प बात ये रही कि काशी विश्वनाथ मंदिर को तुगलक वंश के राजा फिरोज तुगलक ने भी देखा, लेकिन उसने मोहम्मद गौरी की तरह तोड़फोड़ और लूटपाट नहीं की। श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र काशी विश्वनाथ में बड़ी संख्या में लोग दर्शन पूजन करने आते थे।

Kashi Vishwanath Mandir
फोटो सौजन्य- ट्विटर

काशी विश्वनाथ अकबर के दौर में

समय बीतता गया और सैकड़ों साल बाद सिकंदर लोदी के शासनकाल में काशी विश्वनाथ मंदिर को फिर तोड़ा गया। कई बार लूटपाट और मंदिर तोड़े जाने के कारण काशी विश्वनाथ मंदिर की दशा जीर्णशीर्ण हो गई, दशकों तक मंदिर इसी अवस्था में पड़ा रहा, क्योंकि मुगलों के शासनकाल में मंदिर निर्माण की हिम्मत नहीं जुटाई जा सकी। मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में उनके राजस्व मंत्री टोडरमल ने अपने गुरु नारायण भट्ट के आग्रह पर इस  मंदिर को दोबारा बनाने की पहल की। अकबर के आदेश पर काशी विश्वनाथ मंदिर पुराने स्थान पर दोबारा बनकर तैयार हुआ।

Kashi Vishwanath Mandir
फोटो सौजन्य- ट्विटर

400 साल पहले ‘केवल 100 साल के काशी विश्वनाथ’ !

1585 में जब मंदिर बनकर तैयार हुआ उस समय उद्घाटन के लिए मंदिर के मुख्य आचार्य नारायण गुरू मौजूद नहीं रह सके। उनकी अनुपस्थिति में दूसरे आचार्य से मंदिर का उद्घाटन कराया गया। लोकश्रुति है कि नारायण गुरू की गैरहाजिरी में जिस आचार्य ने उद्घाटन किया उन्होंने ‘शतम जीवेम, शतम जीवेम’ का पाठ आरंभ कर दिया। यह बात जैसे ही नारायण गुरु के कानों में पड़ी वे माथा पीटने लगे। आनन-फानन में काशी पहुंचे आचार्य नारायण गुरू ने कहा, लगता है बड़ा अनर्थ हो गया। काशी विश्वनाथ जैसे भव्य मंदिर के लिए केवल 100 वर्ष की आयु ही मांगी गई।

Kashi Vishwanath Mandir
फोटो सौजन्य- ट्विटर

काशी विश्वनाथ के 100 साल और औरंगजेब की हुकूमत 

आचार्य नारायण गुरू ने आशंका जताई और कहा, लगता है 100 वर्ष बाद फिर मंदिर को तोड़ा जाएगा। आचार्य की आशंका सत्य साबित हुई अकबर के बाद मुगल शासक औरंगजेब ने विशाल और भव्य मंदिर को नष्ट करने का फरमान सुना दिया। इतिहास के जानकारों का मानना है कि औरंगजेब की सेना ने काशी को चारों ओर से घेरा और शस्त्र बल से काशी विश्वनाथ मंदिर समेत कई मंदिरों को धराशाई कर दिया।

Kashi Vishwanath Mandir
फोटो सौजन्य- ट्विटर

Kashi Vishwanath Mandir और ज्ञानवापी मस्जिद

इतिहासकारों का मत है कि औरंगजेब की हुकूमत के दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर के मूल भाग को नष्ट कर एक मस्जिद का निर्माण कराया गया। आज इसी का अस्तित्व ज्ञानवापी मस्जिद के रूप में है। दिलचस्प बात ये की सैकड़ों साल पहले की इस घटना पर अदालतों में जिरह हो रही है। पक्षकार मंदिर और मस्जिद के दावे कर रहे हैं, लेकिन अदालत ने अंतिम फैसला नहीं सुनाया है।

Kashi Vishwanath Mandir
फोटो सौजन्य- ट्विटर

मंदिर का जीर्णोद्धार

कई लोगों की धारणा है कि धर्म के आधार पर समाज को बांटने और हिंदुओं को नीचा दिखाने की नीयत से काशी विश्वनाथ मंदिर के पिछले हिस्से को जीर्णशीर्ण हालत में छोड़ दिया गया। वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर और उसके परिसर से सटे ज्ञानवापी मस्जिद के कारण धार्मिक भावनाओं के आहत होने की बातें सामने आती हैं। काशी के इतिहास से वाकिफ पुराने लोग बताते हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर आने वाले श्रद्धालु मंदिर को तोड़े जाने के बाद भी शिवलिंग बनाकर पूजा-उपासना करते रह। 18वीं सदी में रानी अहिल्याबाई होल्कर ने उसी स्थान पर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। वर्तमान विश्वनाथ मंदिर उसी समय का है। कुछ दिनों बाद राजा रणधीर सिंह ने एक मन सोने (लगभग 40 किलो) से काशी विश्वनाथ मंदिर के शिखरों को मंडित करवाया। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनने के बाद अब उसका सौंदर्य और निखरा है। सोने की परत वाला मूल मंदिर बरकरार रखा गया है।

kashi vishwanath mandir
फोटो सौजन्य- ट्विटर

बनारस की गलियां ऐतिहासिक

अंग्रेजों के शासन काल में बनारस में हिंदू मुस्लिम के दंगे भी हुए। कभी गलियों का शहर कहे जाने वाले बनारस में कुछ साल पहले काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचने के लिए गलियों से गुजरना होता था। लोगों का कहना है कि समय बीतता गया और आबादी भी बढ़ी। काशी विश्वनाथ मंदिर गलियों से घिर गया। दावा ये भी है कि बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को विश्वनाथ मंदिर पहुंचने और दर्शन करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। हालांकि, कई देशी-विदेशी मेहमान बनारस की गलियों को ऐतिहासिक मानते हुए इसके संरक्षण की अपील भी करते रहे।

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फोटो सौजन्य- ट्विटर

मंदिर का विस्तार हुआ

तमाम उथल-पुथल के बीच वर्तमान समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में काशी विश्वनाथ मंदिर पर नए सिरे से ध्यान दिया गया। कॉरिडोर निर्माण के बाद विश्वनाथ मंदिर परिसर का क्षेत्रफल लगभग 5000 एकड़ बताया जाता है। पहले यह क्षेत्र करीब 300 एकड़ था। वर्तमान सड़क 20 फीट चौड़ी है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनने के बाद मंदिर में दर्शन-पूजन करने हजारों लोग प्रतिदिन आते हैं।

(लेखिका- डॉ रंजन सिंह)

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