दिल्ली के सघन इलाके शाहाबाद डेरी में देर शाम सरेराह एक युवक ने जिस तरह से एक किशोरी की बर्बर हत्या की, उसने कई सवालों को जन्म दिया है। यह चिंता स्वाभाविक है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में, जहां पुलिस चुस्त मानी जाती है और वह सीसीटीवी जैसे साधनों से सुसज्जित है, वहां कोई व्यक्ति इतनी बेफिक्री से हत्या करके कैसे फरार हो सकता है? हालांकि, जल्द ही कातिल को गिरफ्तार कर लिया गया, पर इसने दिल्ली पुलिस की साख को धूमिल जरूर कर दिया।
इस हत्याकांड में इससे भी बड़ा सवाल आम लोगों की संवेदनहीनता को लेकर है। इंसान से अपेक्षा होती है कि राह चलते भी यदि कोई चोटिल हो जाए, तो वह उसकी सहायता करे। एकाध अपवादों को छोड़ दें, तो हम ऐसा करते भी हैं। इतनी सहानुभूति हममें होनी ही चाहिए कि विपरीत परिस्थितियों में हम एक-दूसरे का हाथ थाम सकें। मगर दिल्ली की इस घटना का वीडियो बता रहा है कि किशोरी के ऊपर लगातार प्राणघातक हमले को लोग देखते रहे और हत्यारे को पकड़ने की कोशिश नहीं की गई। कातिल को रोकने की अपनी नैतिक जिम्मेदारी किसी ने नहीं समझी।
आज से कुछ वर्ष पहले दिल्ली के ही एक प्रमुख इलाके में निर्भया कांड हुआ था। उस समय भी हमारी संवदेनशीलता पर सवाल उठे थे। उस घटना में पहले चलती बस में लड़की के साथ बर्बरता की गई और बाद में उसे और उसके दोस्त को घायलावस्था में सड़क के किनारे धकेल दिया गया था। नग्न अवस्था और करीब-करीब मृतप्राय पड़े उन दोनों तक सहायता पहुंचने में कुछ वक्त लगा था, पर उनको मदद मिली जरूर, और अगले ही दिन से पूरी दिल्ली सड़कों पर आ गई थी। ताजा वारदात में आम लोगों में जिम्मेदारी का अभाव क्या एक नई प्रकार की दिल्ली बनने का संकेत है? क्या राजधानी में ऐसे इलाके भी हो गए हैं, जहां के लोग एक-दूसरे की परवाह नहीं करते? क्या इसका कारण लोगों का प्रवासी होना, एक-दूसरे से परिचित न होना या अमीर व गरीब की दिल्ली में फर्क होना है? निश्चय ही, यह दुखद घटना दिल्ली के बदलते वर्ग-चरित्र पर सवाल उठा रही है।
Wrestler Protest, नौकरी की बात पर बोले- साक्षी, विनेश, बजरंग
यह हत्या युवकों और युवतियों के परस्पर संबंधों के समाजशास्त्रीय विश्लेषण की भी मांग करती है। माना जा रहा है कि इस बर्बरता के पीछे एकतरफा प्रेम भी एक पहलू है। इसका पता तो जांच के बाद चलेगा, लेकिन हताश होकर मित्र यदि हत्या पर आमादा हो जाए, तो यह चिंता की बात जरूर है। प्रेम को आखिर हम किस तरह से समझ रहे हैं? यह दरअसल एक लगाव है, अपनत्व है, अपनी सार्थकता के लिए दूसरे के संग, साथ, मैत्री और स्नेह की तलाश है। मगर प्रेम यदि कोई वस्तु मान ली जाए, जिसमें स्नेह न मिलने की सूरत में प्रेमी की हत्या का भाव बन जाए, तो संवेदनशील समाज को चिंतन करना चाहिए।
प्रेम संबंध मानव समाज में सहज जीवन की बहुत पुरानी आधारशीला है। इसे दुनिया की हर सभ्यता में महत्व दिया गया है। मगर अपने देश में यदि नई पीढ़ी इसे भौतिक और तामसिक दृष्टि से देख रही है, जिसके परिणामस्वरूप वह अपने प्रेम की हत्या करने से भी नहीं हिचक रही, तो हमें इसकी पड़ताल करनी चाहिए।