Supreme Court Same Sex Marriage पर अहम फैसला सुना चुका है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के सवाल पर कहा कि भारत के संविधान के तहत जीवनसाथी चुनना नागरिकों की जिंदगी का अभिन्न अंग है।
लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर, क्विर या क्वेश्चनिंग, इंटरसेक्स, एसेक्सुअल (LGBTQIA+) समुदाय के लोगों से जुड़े इस बहुचर्चित मामले में सुप्रीम कोर्ट कहा, समलैंगिक होना एलीट या शहरी अवधारणा नहीं है। शहरी लोगों को एलीट कहना गलत समझ पैदा करने जैसा होगा।
अदालत की 10 बड़ी बातें-
- सुप्रीम कोर्ट स्पेशल मैरेज एक्ट को समाप्त नहीं कर सकती। ऐसा करना आजादी के वर्षों पहले जाने जैसा होगा।
- अदालत का काम कानून बनाना नहीं, इसकी व्याख्या करना है।
- क्विरनेस पूरी तरह शहरी अवधारणा है, ऐसा कहना गलत होगा।
- शादी नाम की संस्था में लंबे समय में काफी बदलाव हो चुके हैं।
- सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने फैसले में कहा, शादी नाम की संस्था जड़ नहीं है, समय के साथ-साथ इसमें बदलाव होते रहे हैं।
- स्पेशल मैरेज एक्ट में कितना बदलाव करना है, इसके बारे में फैसला संसद को करना होगा।
- शहरों में रहने वाले सभी लोगों को एलीट कहना पूरी तरह न्यायोचित नहीं।
- ऐसे जोड़े जो शादीशुदा नहीं हैं, LGBTQIA+ समुदाय में क्विर कैटेगरी में गिने जाते हैं, वे मिलकर बच्चों को गोद ले सकते हैं। बच्चों को गोद लेना इनका कानूनी अधिकार है।
- शादी करना कई लोग जिंदगी का सबसे अहम फैसला मानते हैं। संविधान के आर्टिकल 21 के तहत मिले राइट टू लाइफ और लिबर्टी के अधिकार के तहत शादी का अधिकार भी इसी से जुड़ा है।
- केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन को क्विर समुदाय के लोगों से भेदभाव करने का कोई अधिकार नहीं। अगर ऐसे लोग कपल के रूप में रहना चाहें तो उन्हें पूरा अधिकार होगा।
10 दिनों की मैराथन सुनवाई, 6 महीने बाद फैसला
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने 10 दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। करीब 6 महीने बाद आज बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाया गया। देश की सबसे बड़ी कोर्ट की संविधान पीठ में सीजेआई चंद्रचूड़ के अलावा न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा भी हैं।