Raid, छापेमारी की खबरें अक्सर सुर्खियों में रहती हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि छापेमारी के दौरान जो पैसे केंद्रीय एजेंसियां जब्त करती हैं उसका होता क्या है ? आज हम आपको इसके बारे में बता रहे हैं।
प्रवर्तन निदेशालय और केंद्रीय जांच ब्यूरो जैसी एजेंसियां छापेमारी की कार्रवाई के कारण अक्सर सुर्खियों में रहती हैं। ईडी और सीबीआई के रूप में जाने जाने वाली दोनों एजेंसियां अक्सर शिकायत मिलने के बाद छापेमारी करते हैं।
इन दोनों के अलावा चुनाव आयोग ने भी करोड़ों रुपए की संपत्ति और गहने जब्त कर सकती है। जब्त की गई हर एक पाई का हिसाब रखा जाता है और हर सामग्री का डिटेल नोट तैयार किया जाता है जो गोपनीय सरकारी दस्तावेज का हिस्सा होता है।
हालांकि, क्या आप जानते हैं कि किन विभागों और आयोगों को रेड के दौरान पैसे जब्त करने का अधिकार है? दरअसल, पिछले कुछ महीनों में चुनावों के दौरान उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों में ईडी ने कई जगहों पर छापेमारी की और भारी मात्रा में नकदी बरामद हुई।
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आज से 21 साल पहले साल 2002 में लागू हुआ मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत ईडी कार्रवाई करती है। पिछले कई साल में 5400 से अधिक मामले इस कानून के तहत दर्ज हो चुके हैं। कई हाईप्रोफाइल लोगों के नाम भी सामने आते रहे हैं। छापेमारी के दौरान 1.04 लाख करोड़ रुपए से भी अधिक संपत्ति ईडी अटैच कर चुकी है यानी ईडी इतनी राशि जब्त कर चुकी है। 400 से अधिक लोगों को अरेस्ट भी कर चुकी है।
हालांकि, कोर्ट में प्रक्रिया लंबित है इसलिए अधिकांश लोग दोषी नहीं पाए गए हैं। पिछले 21 साल में केवल 25 लोग ही कोर्ट में दोषी साबित हुए हैं। करोड़ों की संपत्ति जब्त करने के जो बहुचर्चित मामले सामने आ चुके हैं इनमें पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाला, झारखंड में अवैध खनन घोटाला प्रमुख हैं।
अब सवाल यह है कि इन जगहों पर छापेमारी के बाद बरामद पैसों का एजेंसियां करती क्या हैं? पैसे जब्त करने का काम प्रमुख रूप से प्रवर्तन निदेशालय, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट या इलेक्शन कमीशन के अधिकारी करते हैं। आय से अधिक संपत्ति मामला, धन शोधन यानी मनी लांड्रिंग मामला और अवैध संपत्ति रखने जैसे मामलों में अधिकांश छापेमारियां होती हैं।
जिन लोगों के पास से पैसे जब्त होते हैं उनके खिलाफ मामले दर्ज कर कानूनी कार्रवाई होती है अगर आरोपी साबित करने में सफल रहता है कि जब्त राशि अवैध नहीं है और कमाई पर पर्याप्त टैक्स जमा किया जाता रहा है तो यह पैसे वापस कर दिए जाते हैं। अब दूसरा सवाल, कानून के मुताबिक बरामद पैसे का इस्तेमाल कहां होता है? क्या एजेंसी इन पैसों का खुद इस्तेमाल करती हैं? या सरकार इन पैसों का इस्तेमाल कर सकती है।
जानकारों की राय में जांच एजेंसियां पैसों का इस्तेमाल खुद नहीं कर सकतीं। संपत्ति और गहने भी जब्त होते हैं लेकिन इन्हें नीलाम नहीं किया जा सकता। अगर किसी व्यक्ति या आरोपी के पास कागजात सही नहीं होते हैं उस स्थिति में संपत्ति जब्त तो होती हैं लेकिन उन्हें पर्याप्त मौके भी दिए जाते हैं। इस मौके के दौरान आरोपी अपना कानूनी और मालिकाना हक साबित कर सकते हैं।
संपत्तियों और पैसों को एजेंसी एक समय के बाद नीलाम कर सकते हैं। इसके लिए कानूनी प्रावधान स्पष्ट हैं। अगर अदालत में दोष साबित हो जाता है तो एजेंसियों को संपत्तियों को नीलाम करने का अधिकार दिया गया है। कोर्ट में केस खत्म होने के बाद गहने, घड़ी, घर और फ्लैट जैसी अचल संपत्तियों को नीलाम करने का नोटिस सार्वजनिक अखबारों में प्रकाशित किया जाता है।
अगर किसी अन्य को कोई नुकसान हुआ है तो घाटे की भरपाई नीलामी के पैसे से होती है। इसके बाद भी अगर कोई रकम बचती है तो उसे सरकारी खजाने में डाल दिया जाता है। चुनाव के दौरान अगर आयोग पैसे बरामद करता है और अवैध कमाई का शक होता है तो इस पैसे को आयकर विभाग के हवाले कर दिया जाता है।
आयकर विभाग अपने स्तर से जांच करने के बाद व्यक्ति के दोष की जांच करता है और बेगुनाही साबित होने पर पैसे वापस कर दे जाते हैं। अपराध साबित होने पर पहली प्रक्रिया की तरह ही यहां भी पैसे सरकारी खजाने में चले जाते हैं। नियमों के अनुसार पैसे सरकारी खजाने में डाले जा सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि कोर्ट में चल रहे मामले में दोष सिद्ध हो जाए और अपील का कोई अवसर बाकी ना रहे।
यानी निचली अदालतों से लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट केस में अपील का कोई मौका बाकी नहीं रहना चाहिए। एजेंसियां केस लंबित रहने तक पैसे अपने पास रखते हैं और बहुत बड़ी रकम होने पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से मदद ली जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि एक लाख करोड़ रुपये तक ईडी अपने पास रख सकती है।
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छापेमारी के दौरान जो भी बरामद होता है उसकी पूरी जानकारी नोट तैयार कर रखी जाती है। यानी कितने रुपए के कितने नोट जब्त किए गए? इसलिए कई बार नोट गिनने में कई घंटों का समय लगता है। मनी लॉन्ड्रिंग कानून के तहत बरामद पैसे का हिसाब करने के लिए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारियों को बुलाया जाता है। साथ ही एक स्वतंत्र गवाह भी मौजूद रहता है।
तमाम कार्रवाई करने का लिखित दस्तावेज तैयार किया जाता है यानी जो डिटेल तैयार किया जाता है उसे ईडी का सीजर मेमो यानी जब्ती मेमो कहा जाता है । पैसों को एसबीआई ब्रांच में जमा करा दिया जाता है। अगर आरोपी पैसे का स्रोत बताने में नाकाम रहता है तो पैसा केंद्र सरकार का हो जाता है। हालांकि, इस मामले में भी पैसे केंद्र सरकार के खजाने में जाने से पहले अदालती कार्यवाही समाप्त होना जरूरी है।