दुनिया की सबसे बड़ी इकॉनमी अमेरिका (US Economy) के लिए हर तरफ से निगेटिव खबर आ रही है। हाल में देश के दो बड़े बैंक डूब गए और कई डूबने के कगार पर हैं। लोगों ने कुछ ही दिनों में बैंकों से कुछ ही दिनों में एक लाख करोड़ डॉलर से अधिक निकाल लिए। इससे बैंकों की हालत और खस्ता हो गई है। डॉलर को पूरी दुनिया में कड़ी चुनौती मिल रही है। कई देशों ने डॉलर के बजाय अपनी करेंसी में ट्रेड करना शुरू कर दिया है।
अमेरिका का डेट टु जीडीपी रेश्यो (debt to GDP ratio) रेकॉर्ड पर पहुंच गया है। अमेरिका पर पहली बार डिफॉल्ट करने का खतरा मंडरा रहा है। जुलाई तक डेट सीलिंग (debt ceiling) नहीं बढाई गई तो तबाही आ सकती है। अगर अमेरिका ने डिफॉल्ट किया तो 70 लाख से अधिक नौकरियां एक झटके में खत्म हो जाएगी और जीडीपी में पांच फीसदी गिरावट आएगी। इसका असर भारत समेत पूरी दुनिया पर होगा।
अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलन ने जनवरी में चेतावनी दी थी कि अमेरिका जून तक कर्ज के भुगतान में डिफॉल्ट कर सकता है। अमेरिका डेट लिमिट को पार कर चुका है। येलन ने संसद से जल्दी से जल्दी डेट लिमिट बढ़ाने का अनुरोध किया था। अगर अमेरिका ने कर्ज के भुगतान में डिफॉल्ट किया तो इससे अमेरिका की इकॉनमी को भारी नुकसान होगा, लोगों की जिंदगी दूभर हो जाएगी और ग्लोबल फाइनेंशियल स्टैबिलिटी पर इसका व्यापक असर होगा।
डेट लिमिट वह सीमा होती है जहां तक फेडरल गवर्नमेंट उधार ले सकती है। 1960 से इस लिमिट को 78 बार बढ़ाया जा चुका है। पिछली बार इसे दिसंबर 2021 में बढ़ाकर 31.4 ट्रिलियन डॉलर किया गया था। लेकिन यह इस सीमा के पार चला गया है।