मोतियाबिंद यानी Cataract रोगियों के लिए ‘स्वस्थ दृष्टि, समृद्ध काशी’ अभियान वरदान बन रहा है। इसके तहत पिछले दो हफ्ते में करीब 99 लोगों का सफलतापूर्वक इलाज किया गया। उत्तर प्रदेश में पदस्थापित आशा-आंगनबाड़ी कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों की स्क्रीनिंग कर रहीं हैं। मरीजों का इलाज चित्रकूट में इलाज हो रहा है।
‘स्वस्थ दृष्टि-समृद्ध काशी’ अभियान का फायदा
वाराणसी के रामनगर निवासी लक्ष्मण यादव के पिता रामराज यादव (75) पिछले एक साल से आँखों के रोग मोतियाबिंद से काफी परेशान थे । आर्थिक स्थिति ठीक न होने पर वह इलाज कराने में असमर्थ थे लेकिन अब उनका इलाज ‘स्वस्थ दृष्टि-समृद्ध काशी’ अभियान के तहत निःशुल्क इलाज हुआ है और अब वह पूरी तरह स्वस्थ हैं ।
लक्ष्मण ने बताया कि उनके क्षेत्र में आशा कार्यकर्ता के भ्रमण से मोतियाबिंद के इलाज के बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिली थी । इसी तरह पिछले दो हफ्ते में जनपद के करीब 99 मोतियाबिंद के मरीजों का सफलतापूर्वक इलाज हो चुका है । इस अभियान की शुरुआत प्रधानमंत्री की प्रेरणा से 11 दिसंबर को हुई थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया की उपस्थिति में शुरू किया गया था।
बनारस में मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ संदीप चौधरी ने बताया कि ‘स्वस्थ दृष्टि-समृद्ध काशी’ व राष्ट्रीय अंधता निवारण कार्यक्रम के तहत रविवार को तीसरा जत्था जिसमें 53 मोतियाबिंद के रोगी हैं, चित्रकूट में इलाज के लिए भेजा गया। इसमें सभी रोगियों का सोमवार को इलाज किया जा चुका है। जबकि इससे पूर्व जनपद से पहले जत्थे में 27 और दूसरे में 19 रोगियों को चित्रकूट भेजकर सफलतापूर्वक इलाज किया जा चुका है । ये सभी रोगी पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं।
अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी व नोडल अधिकारी डॉ एके मौर्य ने बताया कि प्रशिक्षित आशा व आंगनबाड़ी कार्यकर्ता घर-घर जाकर 50 व इससे अधिक आयु वर्ग के लोगों का नेत्र परीक्षण कर रही हैं। इन लोगों की आँखों में किसी भी प्रकार की समस्या मिलेगी उन्हें रेफरल कार्ड देकर नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में होने वाले नेत्र जाँच शिविर में जाने के लिए प्रेरित कर रही हैं जिससे उन्हें चित्रकूट भेजकर इलाज किया जा सके।
डॉ मौर्य ने कहा कि मोतियाबिंद आंखों का एक सामान्य रोग है। आंखों के लेंस आँख से विभिन्न दूरियों की वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है । समय के साथ लेंस अपनी पारदर्शिता खो देता है तथा अपारदर्शी हो जाता है। लेंस के धुंधलेपन को मोतियाबिंद कहा जाता है। दृष्टिपटल तक प्रकाश नहीं पहुँच पाता है एवं धीरे-धीरे दृष्टि में कमी अन्धता के बिंदु तक हो जाती है। ज्यादातर लोगों में अंतिम परिणाम धुंधलापन एवं विकृत दृष्टि हो जाते हैं ।
उन्होंने बताया कि प्रायः 50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में मोतियाबिंद होता है। वृद्धावस्था में मोतियाबिंद जैसे रोगों के कारण बुजुर्गो को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है । कम दिखाई देने से अक्सर वह दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते हैं। शल्य क्रिया ही इसका एकमात्र इलाज़ है, जो सुरक्षित एवं आसान प्रक्रिया है।