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  • November 22, 2024
  • Last Update November 16, 2024 2:33 pm
  • Noida

Guest Writer, ज्ञान का अभेद्य दुर्ग प्रभु नारायण इंटर कॉलेज

Guest Writer, ज्ञान का अभेद्य दुर्ग प्रभु नारायण इंटर कॉलेज

Guest writer- अवधेश दीक्षित

Varanasi  जी.टी रोड से रामनगर की ओर जाते हुए एक बड़े परिसर और दुर्ग शैली में बनी इस भव्य इमारत को देखकर बहुतेरे नए लोग अक्सर ही इसे रामनगर का किला समझ बैठते हैं। तब साथ चल रहा स्थानीय व्यक्ति बताता है कि”… नहीं, नहीं ! किला तो मां गंगा के तट पर है ; दरअसल दुर्ग की तरह दिखने वाली यह भव्य संरचना प्रभु नारायण राजकीय इंटर कॉलेज है।

109 वर्ष पुराना यह कॉलेज सात एकड़ की भूमि पर अवस्थित है। एक बड़े खेल के मैदान, 50 से अधिक कक्ष, भौतिकी तथा रसायन की दो मंजिला समृद्ध प्रयोगशाला, दूर से आने वाले छात्रों के लिए विशाल छात्रावास, योग्य शिक्षकों की सतत श्रृंखला तथा सर्वांगीण व सर्वस्पर्शी शैक्षिक माहौल से भरा यह प्रांगण सच्चे अर्थों में एक दिव्य मंदिर है, जिसके दर्शन व मार्गदर्शन से अब तक लाखों लोगों का जीवन – पथ आलोकित हुआ है। काल के प्रवाह में इमारतें कुछ पुरानी जरूर हुई हैं, लेकिन जीवंतता और उपादेयता यथावत समृद्ध व नित नूतन बनी हुई है।

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17 जनवरी सन 1913 को स्थापित कॉलेज का प्रारंभिक नाम ‘जेम्स मेस्टन हाई स्कूल’ था। स्वतंत्रता के उपरांत ‘जेम्स मेस्टन हाई स्कूल’ को गवर्नमेंट कॉलेज की मान्यता प्राप्त हुई तथा तत्कालीन काशी नरेश महाराज प्रभु नारायण सिंह के सौम्य सौजन्य से निर्मित इस भव्य शिक्षा मंदिर का नाम कृतज्ञता ज्ञापन के साथ ‘प्रभु नारायण सिंह इंटर कॉलेज’ रखा गया।

कॉलेज के मध्य में स्थित ‘कृष्ण रंगमंच’ तथा ‘प्राचीन कूप’ पुरा-छात्रों की स्मृतियों में झरोखे सरीखा विद्यमान है। सन् 1953 से कॉलेज की वार्षिक पत्रिका नवज्योति का प्रकाशन अनवरत जारी है , जिसके पुराने पन्नों में कॉलेज का स्वर्णिम अतीत बिखरा पड़ा है। यह सबकुछ निश्चित ही संरक्षणीय है।

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कौन थे जेम्स मेस्टन
जेम्स मेस्टन ब्रितानिया हुकूमत के मातहत तथा वित्तीय मामलों के जानकार अंग्रेज़ अधिकारी थे। सन् 1865 में जन्मे मेस्टन की प्रारंभिक रुचि व्यवसाय में थी। बाद के दिनों में एक सिविल सेवक के रूप में मेस्टन ने सन् 1912 से 1918 तक आगरा और अवध संयुक्त प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर के रूप में कार्य किया। कानपुर में ‘मेस्टन रोड’ का नाम भी इन्हीं के नाम से रखा गया। सन् 1913 में इसे जनता के लिए खोला गया तथा मेस्टन रोड स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कांग्रेस के केंद्र के रूप में विख्यात रहा।

रामपुर में मेस्टनगंज मुहल्ले का नाम भी इन्हीं के सम्मान में रखा गया। वर्तमान प्रभु नारायण राजकीय इंटर कॉलेज की स्थापना 17 जनवरी सन् 1913 में जेम्स मेस्टन हाई स्कूल के रूप में की गई। चूंकि तत्समय जेम्स मेस्टन आगरा और अवध संयुक्त प्रांत के गवर्नर थे इसलिए उनके सौजन्य से इस अंचल को प्राप्त इस शैक्षिक संस्थान का नाम प्रशस्ति वाचक- जेम्स मेस्टन हाई स्कूल ” रखा गया होगा; इसमें कोई दो राय नहीं। अंग्रेजी सत्ता के दौर में स्वनाम धन्यता की परिपाटी जिस तरह से शुरू हुई, यह नामकरण भी उसकी एक झलक है; जो आज लोकतंत्र में भी हुक्मरानों की ललक बनती जा रही है।

काशिराज तथा महाराज प्रभु नारायण सिंह
काशिराज के वर्तमान वंश परंपरा की स्थापना तथा इसके इतिहास-विकास की कहानी मुगल साम्राज्य के पतन व ब्रिटिश हुकूमत के अभ्युदय के दौर की समवेत गाथा है। काशी से पांच कोस दक्षिण स्थित ‘कशवार परगना’ के थिथरिया नामक स्थान को गंगापुर बनाए जाने का उद्योग जमीदार मनोरंजन सिंह के वंशजों के कौशल, परिश्रम और पराक्रम के अध्यायों में सन्निहित है।

गौतम भूमिहार जमीदार मनोरंजन सिंह के पुत्र मनसाराम द्वारा मुगल सत्ता के मातहत मीर रुस्तम अली के यहां नौकरी कर लेने की प्रगतिशील सोच ने उनके पुत्र बलवंत सिंह को राजा की पदवी दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अवध के नवाब और दिल्ली के बादशाह के बीच स्वयं का संतुलन स्थापित करते हुए बलवंत सिंह राज्य की दृढ़ता और विस्तार की ओर बढ़ते रहे। अपने गांव का नाम बदलकर गंगापुर रखते हुए गंगातट पर सन् 1750 में एक किला तैयार करते हुए बलवंत सिंह ने रामनगर को अपनी राजधानी घोषित की।

कालक्रम में मुगलों के पतन व ब्रितानियों के तपिश की आंच राजपरिवार पर आती रही ,लेकिन दैवयोग से काशी की राजसत्ता इसी वंश परम्परा के हाथों में फिरती रही। चेतसिंह , महीप नारायण सिंह, उदित नारायण सिंह से होते हुए महाराज ईश्वरी प्रसाद नारायण सिंह तक आते-आते सांस्कृतिक संरक्षण की बहुआयामी क्रिया शीलता के माध्यम से इस राजपरिवार ने काशी की धर्मप्राण जनता के दिलों में अपनी गहरी जगह बना ली। रामलीला की शुरुआत में उदित नारायण सिंह का संकल्प और इसे विश्वप्रसिद्ध बनाने में ईश्वरी नारायण सिंह का अद्भुत शोध व अद्वितीय संयोजन इसका जीवंत उदाहरण है। काशी के धार्मिक व सांस्कृतिक इतिहास व उन्नयन में काशिराज का योगदान अप्रतिम व प्रणम्य है।

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लॉर्ड केनिंग से अनुज्ञा तथा कागजी औपचारिकताओं की विधिवत पूर्ति के साथ महाराज ईश्वरी नारायण सिंह ने अपने भाई नर नारायण सिंह के 9 वर्षीय पुत्र प्रभु नारायण सिंह को दत्तक पुत्र बनाया। इनकी मृत्यु के उपरांत 30 जून सन् 1889 को प्रभु नारायण सिंह को राज्याधिकार मिला। महाराज प्रभु नारायण सिंह के कार्यकाल में राजधानी रामनगर के क्षेत्र में अविस्मरणीय उन्नति हुई। स्कूल, अस्पताल, गोशाला , धर्मशाला ,थाना,सड़कें, प्राचीन स्थानों की मरम्मत तथा ढेरों नई इमारतें बनीं।

सन् 1902 में नागरी प्रचारिणी सभा के वर्तमान भवन की नींव दी गई जिसमें महाराज की तरफ से बड़ी आर्थिक सहायता प्रदान की गई; साथ ही इसी वर्ष रामनगर में एक धर्मशाला भी बनवाया गया जिसका भार एक कमेटी को सौंपा गया।

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बनारस हिंदू विश्वविद्यालय को एक बड़ा भूभाग तथा आर्थिक मदद के साथ ही काशी के बहुतेरे धार्मिक, सांस्कृतिक, सार्वजनिक कामों में महाराज प्रभु नारायण सिंह अपना योगदान देते रहे। रामनगर में जलकल की स्थापना, बिजली , चीफ कोर्ट की स्थापना, स्टेट बैंक, लबेट हॉस्पिटल तथा मेस्टन हाई स्कूल ( वर्तमान प्रभु नारायण सिंह इंटर कॉलेज ) की स्थापना प्रभु नारायण सिंह के राज्यकाल की महत्वपूर्ण उपलब्धियों में शामिल हैं।

सन् 1931 में महाराज का स्वर्गवास हो गया। तदुपरांत महाराज आदित्य नारायण सिंह, तत्पश्चात् धर्मनिष्ठ महाराज विभूति नारायण सिंह की राज्य व्यवस्था देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ समाप्त हो गई तथा काशी – राज्य का विलय भारत गणराज्य के अंतर्गत हो गया।

वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजा का संबोधन तो बचा रहा लेकिन राज्य और शासन के अधिकार समाप्त कर दिए गए। काशिराज की वंश परम्परा के वर्तमान संवाहक कुं. अनंत नारायण सिंह हैं।

Guest Writer- अवधेश दीक्षित

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