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  • November 21, 2024
  • Last Update November 16, 2024 2:33 pm
  • Noida

बाबा साहेब की रो रही होगी आत्मा, 5 साल में बढ़े दलित अपराध के मामले, आंकड़ों पर एक नजर

बाबा साहेब की रो रही होगी आत्मा, 5 साल में बढ़े दलित अपराध के मामले, आंकड़ों पर एक नजर

राजस्थान एक बार फिर दलित उत्पीड़न के कारण सुर्खियों में है। स्कूल में पानी की बाल्टी छूने के कारण आठ साल के मासूम को बेरहमी से पीटने के मामले में पुलिस कार्रवाई का आश्वासन तो दे रही है, लेकिन चौथी कक्षा में पढ़ने वाला यह बच्चा इतना आतंकित है, कि उसने स्कूल जाना ही छोड़ दिया है। अलवर जिले के इस मामले में स्थानीय पुलिस ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ जांच हो रही है, दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होगी।

मामले की जांच कर रहे इंस्पेक्टर ने भरोसा दिलाया कि लड़का स्कूल जा सकता है, उसे अब कोई परेशानी नहीं होगी। घटना के संबंध में आई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक स्कूल परिसर में लगे हैंडपंप पर पानी पीने गया बच्चा वहां रखी बाल्टी छूने के कारण बर्बरता और दमन की मानसिकता का शिकार हो गया। पानी भर रहा शख्स कथित तौर पर ऊंची जाति का है। बेटे की पिटाई के बाद पिता ने स्थानीय पुलिस से शिकायत की। सर्किल इंस्पेक्टर सवाई सिंह के मुताबिक अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण कानून के तहत प्राथमिकी दर्ज की है।

प्रति 10 हजार लोगों पर 6 से अधिक अपराध के मामले
इंसानियत को शर्मसार करने वाली अलवर जिले की इस घटना के बहाने एक नजर उन घटनाओं पर जहां राजस्थान के गौरवशाली इतिहास और विरासत पर कलंक लगा। कलंक लगने का कारण दलितों के खिलाफ अपराध दर है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक साल 2021 में प्रति 10 हजार लोगों की आबादी पर 6 से अधिक अपराध के मामले दर्ज किए गए। एक लाख की आबादी पर यह संख्या 60 से अधिक हो जाती है। एनसीआरबी के मुताबिक दलित आबादी के खिलाफ अपराध के मामले दर्ज होने का राष्ट्रीय औसत 25 है। यानी प्रति एक लाख की आबादी में 25 मामले। इसी साल यूपी में प्रति एक लाख पर 31 ऐसे मामले दर्ज किए गए।

सबसे अधिक मामले उत्तर प्रदेश में
‘क्राइम इन इंडिया 2021’ टाइटल के साथ प्रकाशित इस रिपोर्ट के मुताबिक पूरे भारत में अनुसूचित जातियों, या दलितों, के खिलाफ सबसे अधिक संदिग्ध अपराध के मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए।

राजस्थान के अलावा एमपी में भी हो रहा उत्पीड़न
2021 में दलितों के खिलाफ उच्चतम अपराध दर (प्रति लाख जनसंख्या पर) के मामले में राजस्थान के साथ मध्य प्रदेश भी सबसे आगे रहा। साल 2016 से 2020 तक दलितों के खिलाफ हुए अपराधों की औसत दर की गणना करने पर राजस्थान और मध्य प्रदेश में अनुसूचित जाति के सदस्यों के खिलाफ अपराध दर में सबसे अधिक बढ़ा है।

दलितों के उत्पीड़न मामले में किन आरोपों को गिनती है पुलिस
अनुसूचित जाति के खिलाफ किए गए अपराधों/अत्याचारों के रिपोर्टेड मामलों (NCRB डेटा के मुताबिक) के बारे में यह जानना भी अहम है कि इस दायरे में केवल उन्हीं मामलों को गिना गया है जो पुलिस के रिकॉर्ड्स में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून, 1989 (एससी/एसटी एक्ट) के तहत दर्ज किया गया है। अगर पुलिस ने किसी दलित के खिलाफ अत्याचार का मामला भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत दर्ज किया हो, तो एनसीआरबी ने उसे दलित उत्पीड़न के दायरे में नहीं रखा है। एनसीआरबी के मुताबिक ऐसा इसलिए क्योंकि उन मामलों में अनुसचित जाति के ही किसी सदस्य द्वारा किसी और एससी / एसटी के खिलाफ किये गए अपराध का उल्लेख होता है।

दलितों के उत्पीड़न से जुड़ी कुछ अहम तथ्य बिंदुवार पढ़ें-

  • भारत में साल 2021 में हर घंटे दलितों के खिलाफ छह अपराध।
  • 2021 में कुल मामलों की संख्या बढ़कर 50,900 तक पहुंची।
  • उत्तर प्रदेश ने दलितों के खिलाफ सबसे अधिक (13,146) अपराध के मामले।
  • दलितों के खिलाफ अपराध के मामले दर्ज होने के संबंध में दूसरे से चौथे नंबर पर क्रमश: राजस्थान (7,524), मध्य प्रदेश (7,214), और बिहार (5,842) है।
  • साल 2011 की जनगणना के मुताबिक उत्तर प्रदेश में देश में दलितों की सबसे अधिक (4 करोड़ से प्लस) आबादी।

 

2016-2020 के बीच औसतन 45 अपराध; एक साल बाद 16 फीसदी उछाल
राजस्थान में 1 करोड़ से अधिक की दलित आबादी रहती है। अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध दर बढ़ने के मामले में राजस्थान सबसे आगे। पांच वर्षों (2016-2020) में प्रति लाख दलित जनसंख्या पर औसतन 45 अपराध दर्ज किए गए। 2021 में आंकड़ा बढ़कर 61 तक जा पहुंचा।

हर साल बढ़ रहा है अपराध का आंकड़ा
नवंबर, 2023 में आई एक अन्य मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक राजस्थान पुलिस ने बताया है कि 2017 से 2023 के बीच एससी-एसटी कानून के तहत 56,879 मामले दर्ज किए गए। 2017 में 4,532, 2018 में 5,478, 2019 में 8,472, 2020 में 8,811, 2021 में 9,472, 2022 में 11,054 मामले दर्ज किए गए। 2023 में नवंबर तक 9,060 मामले दर्ज किए गए। इन आंकड़ों से साफ है कि राजस्थान में हर साल दलितों के खिलाफ उत्पीड़न बढ़ रहा है।

बाड़मेर से आई थी रूह कंपाने वाली घटना
राजस्थान में दलितों के खिलाफ अत्याचार का एक मामला लगभग एक साल पहले भी सामने आया था। बाड़मेर जिले की इस घटना में दलित का शव चार दिनों से मोर्चरी में रखे होने का आरोप लगा था। मामला तूल पकड़ने पर स्थानीय विधायक के साथ-साथ पुलिस प्रशासन को भी संज्ञान लेना पड़ा। बाद में मृत व्यक्ति के परिजन और दलित समुदाय के लोग बाड़मेर अस्पताल की मोर्चरी से शव लेकर असाड़ी गांव गए और अंतिम संस्कार किया।

सिर पर हैवानियत सवार हुई, अस्पताल के रास्ते में ही टूट गई सांसें
दलित उत्पीड़न के इस मामले में आई मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कोजा राम को पीटने वाले लोगों के सिर पर खून सवार था। हैवानियत में इतना पीटा गया कि शरीर में कई फ्रैक्चर हुए। ब्रेन हेमरेज के साथ-साथ आंतरिक रक्तस्राव के कारण पेट में खून भर गया। लोहे के सरियों से हुई पिटाई के बाद शरीर के कई हिस्से में गहरे घाव हो गए, यहां तक की हिप्स की हड्डी भी टूट गई। बाड़मेर अस्पताल ले जाते समय निजी वाहन में उनकी मौत हो गई।

सोढ़ा राजपूत समुदाय के लोगों पर आरोप
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक बाड़मेर कलेक्टर लोक बंधु ने बताया कि दलित समुदाय के एक शख़्स की बेरहमी से पीट-पीट कर हत्या के इस मामले में 16 आरोपी नामजद हैं। पुलिस ने सोढ़ा राजपूत समुदाय के लोगों को अभियुक्त बनाया है।

दलितों के उत्पीड़न का कारण क्या मानते हैं विशेषज्ञ
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दलितों के खिलाफ राजस्थान में अधिक अपराध का कारण आंशिक रूप से धीमी आर्थिक वृद्धि और इसी कारण से सामाजिक परिवर्तन में पिछड़ना है। विशेषज्ञों का मानना है कि पुराने समय की तुलना में अब लोग मुखर हो रहे हैं। जाति-आधारित अपराधों या भेदभाव के मामले में लोग खुलकर बोलने और पुलिस से संपर्क करने लगे हैं। पश्चिमी राजस्थान में जाति-आधारित मुद्दों के विशेषज्ञ कहे जाने वाले खिनवराज जांगिड़ के मुताबिक राजस्थान में अधिकांश नौकरियां पर्यटन उद्योग पर आधारित हैं। पारंपरिक व्यवसाय अभी भी सामाजिक समीकरणों पर हावी हैं। राज्स्थान में ऐतिहासिक विरासतों और रजवाड़ों से जुड़ी निशानियों की भरमार है, लेकिन महानगरीय क्षेत्रों की कमी है। आवाजाही की उच्च लागत आर्थिक गतिशीलता में बाधा बनती है। ऐसे में शायद ही कभी अपनी पारंपरिक अलग-अलग घेरेबंदी वाली रिहाइश से बाहर लोग बाहर निकल पाते हैं। यही कारण है कि यहां का समुदाय अपेक्षाकृत अधिक जातिवादी है।

स्मार्टफोन के दौर में वीडियो का सहारा; दमन के खिलाफ युवा बुलंद कर रहे आवाज
राजस्थान में पिछले कुछ वर्षों में दलितों के खिलाफ हो रहे अत्याचार में उल्लेखनीय वृद्धि के मामले में दलित कार्यकर्ता और लेखर भंवर मेघवंशी बताते हैं कि नई पीढ़ी के युवा अपमानों के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं। स्मार्टफोन के दौर में वीडियो वायरल होना भी आम बात है। सबूत सामने होने के कारण पुलिस-प्रशासन को भी ऐसे मामलों को गंभीरता से देखना पड़ता है। अब पुलिस से शिकायत के लिए वीडियो सबूत काफी है। दबंगई करने वाले और दलितों की आवाज दबाने वाले लोगों के खिलाफ अब प्राथमिकी दर्ज के लिए हजारों लोगों की भीड़ जमा करने की जरूरत नहीं।

संविधान शासित देश में जातिवाद का जहर कई दशक पुराना
इन घटनाओं के अलावा एनसीआरबी के आंकड़े यह बता रहे हैं कि भले ही भारत को आजाद हुए 77 साल बीत चुके हैं, संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर को अपने बचपन में जैसी यातनाएं झेलनी पड़ीं, वैसा ही स्याह मंजर आज भी दिखाई देता है। इसके एक ही मायने हैं; सामंती और जातिवादी मानसिकता के बेड़ियों में जकड़े निर्वीय नपुंसक अपनी कुंठा के वशीभूत होकर अपेक्षाकृत और कथित तौर पर कमजोर तबके को अपनी जूतियों के नीचे मसलना चाहता है। जिस तरह अलवर में प्यास बुझाने हैंडपंप गए आठ साल के मासूम बच्चे के साथ शर्मनाक बर्ताव हुआ, वैसा ही दशकों पहले कभी आंबेडकर के साथ होता था। ब्रिटिश हुकूमत के दौर में तत्कालीन जातिवादी समाज प्यास बुझाने से पहले भी मानवता नहीं, जाति देखता था। यह बात खुद आंबेडकर ने अपनी जीवनी में लिखी है।

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