Dignity of women and dress code: दुनियाभर में महिलाओं के पहनावे को लेकर अक्सर बहस होती रहती है. सदियों से महिलाएं अपने कपड़ों और ड्रेसिंग सेंस को लेकर पुरुषों की अशोभनीय टिप्पणियों का शिकार होती आई है. अपने पहनावे को लेकर महिलाओं ने सदियों से जो कुछ सहा और बर्दाश्त किया है उसके बारे में लिखने में हजारों पन्ने भी कम पड़ जाएंगे. हिजाब हो या पर्दा प्रथा या फिर जींस टी शर्ट और मिनी स्कर्ट महिलाओं को आज भी घर से बाहर निकलते ही लोगों के तानों का शिकार होना पड़ता है. इसी देश में महिलाओं के जींस-शर्ट पहनकर दफ्तर जाने पर सवाल उठ चुके हैं.
नारी समाज की जननी है. नारी के बिना समाज का अस्तित्व नहीं है. ऐसी बड़ी-बड़ी बातों के बीच महिलाओं के पहनावे को उनके चरित्र से जोड़कर देखा जाता है. यह स्थिति आज भी पूरी तरह से बदली नहीं है. ऐसे में आइए जानते हैं कि महिलाओं ने कैसे अपनी मर्जी के कपड़े पहनने के अधिकार के लिए समाज से लड़ाई लड़ी?
1. छेड़खानी और कपड़े फाड़ने की घटनाएं
2. मंदिर जाने पर रोक
3. हिजाब विवाद और पर्दा प्रथा
4. ब्रेस्ट टैक्स
महिलाओं के पहनावे को लेकर उनके साथ अभद्रता के कई मामले सामने आ चुके हैं. कभी छोटे कपड़े पहने महिलाओं की मंदिर में एंट्री बंद कर दी जाती है, तो कभी बीच बाजार उनके कपड़े खींचे जा रहे हैं. हाल ही में मुजफ्फरनगर के बालाजी मंदिर के बाहर एक पोस्टर लगाया गया था. जिसमें लिखा था, महिलाएं या युवतियां परिसर में जींस, मिनी स्कर्ट और कटे-फटे कपड़े पहनकर नहीं आ सकती हैं. बिजनौर में कुछ लड़कों ने हिंदू लड़के के साथ बाइक पर जा रही मुस्लिम लड़कियों से बदसलूकी की जबकि उन्हें उनके भाई ने ही सुरक्षा के लिए भेजा था. वहीं मेरठ में भी हिंदू युवक से बात करने पर महिलाओं को ये सुनना पड़ा कि ‘मुस्लिम होकर हिंदू से बात कर रही हो… शर्म नहीं आती.’ ऐसे कुछ मामले पश्चिमी यूपी के कुछ और शहरों में भी सामने आए, जहां महिलाओं को पहनावे की वजह से खरीखोटी बाते सुननी पड़ीं.
हालांकि छेड़खानी के मामलों की बात की जाए तो देशभर में ऐसी अनगिनत घटनाएं सामने आ चुकी हैं. जब छोटे या तंग कपड़े पहने हुई लड़कियों और महिलाओं के साथ गलत व्यवहार करते हुए उनके कपड़े खींचने तक की कोशिश की गई.
महिलाओं को अपना स्तन ढकने के लिए भी टैक्स देना पड़ता था
1729 में त्रावणकोर में ब्रेस्ट टैक्स मतलब ‘स्तन कर’ लगाया गया था. त्रावणकोर में निचली जाति की महिलाएं सिर्फ कमर तक कपड़ा पहन सकती थीं. अफसरों और ऊंची जाति के लोगों के सामने वे जब भी गुजरती, उन्हें अपनी छाती खुली रखनी पड़ती थी. जब महिलाओं ने कपड़े से सीना ढका, तो खबर मिलते ही सत्ता के लोगों ने उनके कपड़े को फाड़ देने में देर नहीं लगाई. इस प्रथा का विरोध करने के लिए नांगेली नाम की एक महिला ने अपना स्तन काटकर टैक्स वसूलने वालों को दे दिया. नांगेली की मौत हो गई. उसके बाद ये सब बंद हुआ.
सुर्खियों में रहे मामले
जिस महिला के घुटने फटे दिखते हैं, वो बच्चों को क्या संस्कार दे पाएगी? महिलाओं को पूरा तन ढककर निकलना चाहिए. ऐसी नसीहतें आज भी अक्सर सुनने को मिल जाती हैं. स्कूल, कॉलेज और दफ्तरों तक उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक कमोबेश एक जैसे हालात हैं. लड़कियों को क्या पहनना है, इसके नियम बनाए गए हैं.
बिलासपुर में तो एक महिला के पति ने तलाक के बाद बच्चे की कस्टडी मांगी और कोर्ट में तर्क दिया कि पत्नी जींस-शर्ट पहनती है जिससे बच्चे पर गलत असर पड़ेगा. तब बिलासपुर हाईकोर्ट ने कहा था कि पहनावे का महिलाओं के चरित्र से कोई लेना-देना नहीं है.
मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु के मंदिरों में जींस और छोटे कपड़े पहनने पर पाबंदी लगाई थी.
देशभर के स्कूल कॉलेजों में न जाने कितनी बार कहा जा चुका है कि छोटे कपड़े पहनने से छेड़खानी के मामले सामने आने लगते हैं. इसलिए छात्राओं को पूरा तन ढंकना जरूरी है. ऐसे नियम तोड़ने पर कुछ जगह जुर्माने का भी प्रावधान था.
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पश्चिमी यूपी की खाप पंचायतें हो या राजस्थान की पंचायतें सभी ने समय समय पर महिलाओं और छात्राओं के लिए कई फरमान सुनाए हैं. बाड़मेर में तो सिर्फ जींस ही नहीं, बल्कि लड़कियों को फोन पर बात करने पर भी पाबंदी लगाई गई थी. ये आदेश लड़कियों की सुरक्षा के नाम पर जारी किया गया था.
चेन्नई से तिरुवल्लुवर तक कुछ कॉलेजों में लड़कियां जींस-टॉप और एयरटाइट पैंट नहीं पहन सकतीं. ना ही अपने बाल खुले रख सकती हैं. कई जगहों पर तो महिला शिक्षकों को भी ऐसे नियमों का पालन करने के लिए कहा गया था.
इसी तरह कर्नाटक के एक कॉलेज से शुरू हुए हिजाब विवाद को भी औरतों की सुरक्षा से जोड़कर देखा गया था.