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  • October 11, 2024
  • Last Update October 5, 2024 3:17 pm
  • Noida

तीन साल से गलवान में अटकी बात

तीन साल से गलवान में अटकी बात

भारत और चीन के बीच तीन साल पहले पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में हिंसक टकराव हुआ था, लेकिन हालात अब भी सामान्य नहीं हो सके हैं। आज भी कई सीमावर्ती इलाकों पर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और भारतीय सेना के जवान आमने-सामने डटे हुए हैं। आखिर वास्तविक नियंत्रण रेखा की समस्या का समाधान क्या है? दोनों सेनाओं के बीच अब तक 18 दौर की सैन्य-वार्ताएं हो चुकी हैं, फिर भी देपसांग, चारडिंग नाला जंक्शन जैसे क्षेत्रों में समस्याएं जस की तस क्यों बनी हैं? क्या सैन्य-वार्ता की भी सीमा होती है और हमें कूटनीतिक या राजनीतिक समाधान पर ज्यादा भरोसा करना चाहिए?

इन तमाम सवालों के जवाब हमें आसानी से मिल जाते, यदि चीन की मंशा सही होती। बीजिंग भू-राजनीति के तहत इस मामले को उलझाए रखना चाहता है। उसने अब तक 14 देशों के साथ अपने सीमा-विवाद सुलझा लिए हैं, सिर्फ भारत और भूटान ही दो ऐसे राष्ट्र हैं, जिनसे उसका विवाद बना हुआ है। विडंबना यह है कि उसने म्यांमार के साथ लगी मैकमोहन रेखा को तो स्वीकार कर लिया है, लेकिन जब बात अरुणाचल प्रदेश की आती है, तो वह इस रेखा को खारिज कर देता है। चार दशकों में उसने रूस के साथ भी अपने सीमा-विवाद सुलझा लिए हैं।

आखिर वह ऐसा क्यों कर रहा है? दरअसल, वह भारत की तरफ से कोई खतरा नहीं महसूस करता। मसलन, भारत और चीन विवाद की एक कड़ी तिब्बत, खासकर दलाई लामा का प्रवासन है, लेकिन 1954 में ही हमने मान लिया था कि यह इलाका चीन के अधीन एक स्वायत्तशासी क्षेत्र है। लद्दाख में तो उसने 1950 के दशक में ही सड़क बना लिए थे, जो तिब्बत जाने का एकमात्र रास्ता था। मगर अब उसने रेल लाइन भी बिछा दी है और सड़कों का जाल भी फैला लिया है, जिससे अक्साई चिन रोड का ज्यादा महत्व नहीं रह जाता। फिर, पाकिस्तान की भारत के प्रति आतंकवाद को प्रोत्साहित करने की जो नीति है, ऐसी कोई मंशा हमारी नहीं है। यहां तक कि दलाई लामा को भी हमने बेशक शरण दी, लेकिन उनकी पूरी विचारधारा अहिंसक है। यानी, हमारी तरफ से चीन को आतंकवाद का भी खतरा नहीं है। हमारी तरफ से उसे कोई सैन्य खतरा भी नहीं है। चीन के किसी भी सीमावर्ती इलाके को अपने अधीन करने के लिए हम उत्सुक नहीं हैं। हमारी स्थिति बिल्कुल रक्षात्मक है।

फिर भी, वह सीमा का तेजी से सैन्यीकरण कर रहा है। उसने धीरे-धीरे करके न सिर्फ अपने सैनिकों की संख्या बढ़ाई, बल्कि नजदीकी इलाकों में मिसाइलें तक तैनात कर दी हैं। वह बुनियादी ढांचों पर भी तेज गति से काम कर रहा है। साफ है, वह हमसे सीमा विवाद सुलझाना ही नहीं चाहता। इसके तीन मुख्य कारण हैं। पहला, चीन की मंशा नई दिल्ली को दबाव में रखने की है। वह समझता है कि भारत का भू-राजनीतिक महत्व लगातार बढ़ रहा है, इसीलिए वह वक्त-बेवक्त सीमा पर हमें उलझाए रखता है।

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दूसरा कारण पाकिस्तान है। अगर हिन्दुस्तान के साथ चीन कोई समझौता करता है और हमें मुख्य सहयोगी मानता है, तो वह पाकिस्तान का उस तरह से फायदा नहीं उठा सकेगा, जिस तरह से अभी उठाता रहा है। अमेरिका के साथ भी यही हुआ था, जब उसने भारत को अपना मुख्य सहयोगी मानना शुरू किया, तो पाकिस्तान के साथ उसके रिश्ते ठंडे होते चले गए। इतना ही नहीं, सीमा विवाद के समाधान के बाद यहां के चीनी सैनिक पाकिस्तान की तरफ भेजे जा सकते हैं, जिससे इस्लामाबाद पर दबाव बढ़ सकता है और पाकिस्तान से जुड़ी चीन की परियोजनाएं प्रभावित हो सकती हैं।

तीसरा कारण चीन की अपनी नीति है। चीन हाल के वर्षों में अपनी ‘बेल्ट रोड इनीशिएटिव’ के जरिये बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार जैसे तमाम पड़ोसी देशों में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है। ऐसा करने की एक वजह भारत को चारों तरफ से घेरना भी है। ऐसे में, यदि हमारे साथ उसका सीमा-विवाद खत्म हो जाएगा, तो उसे अपनी यह विस्तारवादी नीति बदलनी होगी। ऐसे में, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का कथित संप्रभुता का दावा भी महत्वहीन हो जाएगा।

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