कुमार रत्न सम्मान से सुशोभित समाज सेवी स्व. Ramashray Babu की आज पुण्यतिथि है। माँ नेतुला मंदिर निर्माण में इनका योगदान अविस्मरणीय है। आज माँ नेतुला मंदिर का भव्य और दिव्य स्वरूप रामाश्रय बाबू और इनके सहयोगियों के तप और त्याग का ही परिणाम है।
नेतुला माता मंदिर निर्माण के लिए गांव-गांव, घर-घर जाकर भिक्षाटन किए। माँ नेतुला के मंदिर निर्माण को जीवन का लक्ष्य बना चुके रामाश्रय बाबू का सरोकार गाँव के हर सार्वजनिक कार्य से था। नदी से पानी लाने के लिए जान लड़ा देने वाले रामाश्रय बाबू को अच्छे से पता था की उनके गाँव के 80% लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से खेती-किसानी पर आश्रित हैं।
गाँव की भौगोलिक स्थिति से वाकिफ रामाश्रय बाबू को पता था कि जमीन के नीचे पहाड़ होने के कारण ट्यूबेल या बोरिंग कराना सम्भव नहीं है। भगवान भरोसे खेती नहीं की जा सकती है। उनको अच्छे से पता था की गाँव को यदि सच में खुशहाल देखना है तो उसके लिए हर हाल में नदी (कुर घाट, लछुआर) का पानी गाँव तक लाना ही होगा। गाँव में पानी आने के बाद स्टॉक करना भी जरूरी है।
प्रतिदिन गाँव के आहर-पोखर घूमकर मुआयना करने वाले रामाश्रय बाबू ध्यान रखते थे कि पानी बर्बाद तो नहीं किया जा रहा है। नल खुला छूटने या आहर पोखर का बांध टूटने जैसी स्थिति में ग्रामीणों को एकत्रित कर बांध बंधवाने का काम करते थे। बिहार में मुखिया का चुनाव नहीं होने के कारण गाँव का सारा सार्वजानिक कार्य चंदा जुटाकर करते थे। चंदा लेकर सार्वजनिक कार्य प्रबंधन व निष्पादन में रामाश्रय बाबू का कोई मुकाबला नहीं था।
गाँव में जो व्यक्ति आर्थिक रूप से कमजोर होते थे उनसे आर्थिक सहायता ना लेकर श्रमदान के लिए प्रेरित करते थे। इन्होंने स्व. अम्बिका बाबू (इंजीनियर साहब) की अगुआई में नदी से गांव तक पानी लाने के लिए वर्षों तक पटना हाईकोर्ट में केस भी लड़ा। गाँव की जीत में स्व. सिंघा सिंह (मुखिया जी), स्व. चंद्रिका सिंह(मुखिया जी), स्व. वीरेंद्र शर्मा, भोला सिंह, हरदेव सिंह, सिंघेश्वर सिंह (शिक्षक), कृष्णनंदन सिंह, मुन्ना सिंह(शिक्षक), देवनन्दन सिंह, संजय सिंह और जीतू सिंह जैसे सामाजिक और खेती-किसानी से जुड़े लोगों का सहयोग भी मिलता रहा।
हर साल भादो मास में कुमार गाँव से देवघर तक रथ यात्रा निकलती है। इस भव्य रथयात्रा के पीछे भी रामाश्रय बाबू का उल्लेखनीय योगदान रहा है। शुरुआती 5 वर्षों तक चंदा जुटाकर रथयात्रा निकाली गई। आखारी पूजा हो या दुर्गा पूजा धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में इनका योगदान अविस्वमरणीय है।
सौम्य स्वभाव और सादगी ऐसी जिसके सभी लोग मुरीद थे। गाँव के हर लोग इनका सम्मान करते थे। हर जाति वर्ग में इनकी स्वीकार्यता थी। इसी कारण से पंचायत स्तर के छोटे-बड़े विवादों को बहुत ही सहजता से निपटा देते थे। इसी कारण से सिकंदरा प्रखंड के लोग रामाश्रय बाबू का बहुत सम्मान करते थे। किताबी ज्ञान बहुत अधिक नहीं होने के बाबजूद इनका राजनैतिक पैठ मजबूत था।
स्व. प्रयाग चौधरी (भू-राजस्व मंत्री, बिहार सरकार), कपिल देव बाबू (समाजबादी नेता), महाचन्दर सिंह (मंत्री बिहार सरकार), कृष्णा शाही, राजो सिंह सरीखे नेताओं के साथ रामाश्रय बाबू का घरेलू और दोस्ताना संबंध थे। इन्होंने अपने राजनैतिक रिश्तों का लाभ कभी भी व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए नहीं किया। गाँव के विकास और भलाई को जीवन का मकसद बना लेने वाले रामाश्रय बाबू के बारे में कई किस्से मशहूर हैं।
एक बार की बात है। कुछ ग्रामीणों के साथ स्व. प्रयाग चौधरी (भू-राजस्व मंत्री, बिहार सरकार) से मिलने गए रामाश्रय बाबू हमेशा की तरह सादगी वाले पोशाक में मंत्री जी से मिलने पहुंचे। प्रयाग चौधरी जी से उनका व्यवहार इतना मित्रवत था की वो उन्हें अपने बगल की कुर्सी पर बिठाते थे। हंसी-मज़ाक के दौरान प्रयाग चौधरी ने पूछा, ‘रामाश्रय बाबू आप कुछ ठेका बगैरह क्यों नहीं कराते? हमारे इतने करीबी होने का कुछ तो फायदा उठाएं।’ रामाश्रय बाबू ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, नेता जी हमरा गाँव के विकास में ही ख़ुशी मिलता है, गाँव विकसित हो जाए। हम अपने आप विकसित हो जायेंगे।
रामाश्रय बाबू को पता था कि ठेकेदारी कोई भी कराए, लोग शक की नजर से ही देखते हैं। जब खुद ठेकेदारी करने लगेंगे तो दूसरे ठेकेदारों को गलत काम करने से रोक नहीं सकते। आपको जानकर आश्चर्य होगा की 2005 से पहले इनके गांव में विकास कार्यों से जुड़े ठेके की निगरानी गांव के मानिंद लोग करते थे। सड़क निर्माण, सामुदयिक भवन निर्माण, आहर-पोखर, छिलका-खुदाई जैसे कामों पर कुमार गाँव के लोगों की पैनी नजर होती थी। अच्छा कार्य कराने के साथ-साथ बचत का बड़ा हिस्सा माँ नेतुला मंदिर निर्माण समिति को जाता था। इसकी निगरानी टीम में खुद रामाश्रय बाबू शामिल थे।
अधिकांश सहयोगियों का निधन हो जाने के कारण कुमार गाँव की कृषि व सार्वजनिक कार्यों का हाल बुरा हो चुका है। रामाश्रय बाबू के निधन के बाद आज किसी को कोई चिंता/फ़िक्र नहीं है। गाँव में नदी से पानी आये या नहीं, आहर/ पोखर, पैन, नाला रहे ना रहे, किसी को कोई परवाह नहीं। इसका परिणाम बेहद भयावह है। अब लोग खेती-किसानी से मुंह मोड़ने लगे हैं। गाँव से शहर की ओर पलायन बढ़ रहा है। गाँव में रह रहे लोगों के बीच आत्मनिर्भरता और स्वावलंबिता घट रही है। इसका असर बच्चों व युवाओं पर भी पड़ रहा है, उनके शिक्षा, नैतिकता व आचरण में आ रही तेजी से गिरावट इस बात का सबूत है।
रामाश्रय बाबू की आत्मा यह देखकर निश्चित ही दुखी होगी। वो सोच रहे होंगे कि अपना पूरा जीवन जिस गाँव पर न्योछावर कर दिए, आज उनकी धरोहर को सहेजने वाला कोई नहीं। उनकी पुण्यतिथि पर दिवंगत रामाश्रय बाबू के पदचिह्नों पर चलने का प्रयास करने का संकल्प लेना उन्हें सबसे सार्थक श्रद्धांजलि होगी। अन्त में स्व. रामाश्रय बाबू के लिए बस इतना;
“जिन्होंने खपा दिया पूरा जीवन हमारे गाँव के लिए,
हम भूल जाएं उन्हें, हम इतने भी गए, गुजरे, निष्ठुर तो नहीं?
आप चाहते थे जैसा, गाँव में सदा रहेगा वैसा ही अमन,
आपको है हमारा शत-शत नमन, शत-शत नमन।