कई ग्राहक ऐसे होते हैं, जो बैंकों से लोन लेकर अपनी कार या बाइक खरीदते हैं और किसी कारणवश लोन नहीं चुकता कर पाते हैं, तो लोन अमाउंट की वसूली करने के लिए बैंक अपने एजेंटों को भेजकर ग्राहकों से गाड़ी वापस लेकर चले जाते हैं। ऐसे ही एक मामले में पटना हाईकोर्ट का एक बड़ा फैसला आया है। कोर्ट ने कहा कि ये किसी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। पटना हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए इस पर एक बड़ा फैसला सुनाया है। आइए इस पर एक नजर डालते हैं।
पटना हाईकोर्ट ने कहा है कि लोन न चुकाने वाले गाड़ी मालिकों से जबरन वाहनों की जब्ती करना अवैध है। ये संविधान की जीवन और आजीविका के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। इस तरह की धमकाने वाली कार्रवाइयों के खिलाफ एफआईआर दर्ज होनी चाहिए। इसके अलावा पटना हाईकोर्ट ने कहा कि प्रतिभूतिकरण (Securitization) के प्रावधानों का पालन करते हुए वाहन लोन को वसूल किया जाना चाहिए।
बैंकों और फाइनेंस कंपनियों को लताड़
न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद की एकल पीठ ने रिट याचिकाओं के एक बैच का निस्तारण करते हुए बैंकों और फाइनेंस कंपनियों को लताड़ लगाई, जो बाहुबलियों को बंधक वाहनों (बंदूक की नोक पर भी) को जबरन जब्त करने में लगाती हैं। अदालत ने बिहार के सभी पुलिस अधीक्षकों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि किसी भी वसूली एजेंट द्वारा किसी भी वाहन को जबरन जब्त नहीं किया जाएगा।
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गाड़ियों की जबरन जब्ती पर पटना हाईकोर्ट सख्त
अदालत ने 19 मई को वसूली एजेंटों के जबरन वाहनों को जब्त करने के 5 मामलों की सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया। दोषी बैंकों/वित्तीय कंपनियों में से प्रत्येक पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया। अपने 53 पन्नों के फैसले में न्यायमूर्ति रंजन ने सर्वोच्च न्यायालय के 25 से अधिक फैसलों का उल्लेख किया। इसमें दक्षिण अफ्रीका के एक फैसले का भी जिक्र किया गया।
कोर्ट ने कहा कि उच्च न्यायालय किसी भी ‘निजी कंपनी’ के खिलाफ एक रिट याचिका पर सुनवाई कर सकता है, जिसकी कार्रवाई एक नागरिक को उसके जीवन और आजीविका के मौलिक अधिकार से वंचित करती है, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत है।