समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री Akhilesh Yadav नए तेवर और नई टीम के साथ आगे की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार हो रहे हैं। सपा अब लोहियावादियों और अम्बेडकरवादियों को साथ लाने की कोशिश में है। इस बीच राजनीतिक गलियारों में यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या चुनाव के वक्त सपा और बसपा एक बार फिर साथ आ सकते हैं?
इसकी वजह ये है कि अखिलेश ने वोट विस्तार की इस कोशिश में अपनी सधी रणनीति के तहत अब तक मायावती पर कोई हमला नहीं बोला है। अभी तो नहीं लेकिन चुनाव के वक्त सपा बसपा के साथ आने की गुंजाइश शायद इसीलिए छोड़ी है। संभव है कि गैरभाजपा और गैरकांग्रेस दल यूपी में सपा-बसपा को साथ लेकर विपक्षी मोर्चा बनाने का दबाव बनाएं।
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इस मुहिम के परवान चढ़ने से सपा अब अपने परंपरागत यादव मुस्लिम समीकरण का विस्तार करना चाहती है। इसमें गैरयादव ओबीसी को तवज्जो पहले से ही दी जाने लगी है। इसके साथ ही दलितों में भी आधार विस्तार की कोशिशें शुरू हो गईं हैं। इसके लिए पहले पार्टी की नई बिग्रेड में इस मुहिम का अक्श दिखेगा।