राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की भारत जोड़ो यात्रा अपने समापन की तरफ बढ़ रही है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की तरफ से विपक्षी दलों के नेताओं को भेजी गयी चिट्ठी से पूर्णाहुति जैसा माहौल भी बनने लगा है.
जब तक यात्रा पूरी नहीं हो जाती, पूरी पैमाइश तो हो भी नहीं सकती. ये तो महसूस किया ही जाने लगा है कि कांग्रेस नेतृत्व के आत्मविश्वास में इजाफा तो हुआ ही है. राहुल गांधी को जगह जगह मिल रहे लोगों के समर्थन का भी तो कोई संदेश होगा ही – फिर भी बड़ा सवाल ये है कि क्या राहुल गांधी भी ये सब महसूस कर रहे हैं? अगर कुछ खास बदलाव महसूस कर रहे हैं तो क्या राहुल गांधी मानने को भी तैयार हैं – और क्या जो वास्तव में मानते हैं उसे सार्वजनिक तौर पर स्वीकार भी कर सकते हैं?
अपनी छवि को लेकर पूछे गये एक सवाल के जवाब में राहुल गांधी एक प्रेस कांफ्रेंस में कह रहे थे, ‘आप लोग इतने हैरान क्यों दिख रहे हैं? मुझे छवि से कोई लेना-देना नहीं… छवि में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है… आप मुझे जो चाहें, छवि दे सकते हैं – अच्छी या बुरी!’
और फिर लगा जैसे वो अचानक ही सलमान खान का कोई डायलाग दोहरा रहे हों, “मैं दिल में आता हूं… मैं समझ में नहीं.”
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राहुल गांधी कह रहे थे, ‘जिस शख्स को आप देख रहे हैं वो राहुल गांधी नहीं है… आप उन्हें देख सकते हैं… समझ नहीं सकते… हिंदू धर्मग्रंथों को पढ़ें, शिव जी के बारे में पढ़ें… तब आप समझ पाएंगे.’
और यात्रा से उनकी छवि में आये बदलाव को लेकर उनके जवाब ने तो जैसे उलझा ही दिया, ‘राहुल गांधी आपके दिमाग में हैं… मैंने उन्हें मार दिया है… वो मेरे दिमाग में बिल्कुल भी नहीं है… वो चले गये हैं.’