क्रिकेट की दुनिया में एक कहावत बहुत लोकप्रिय है। प्रशंसक कहते हैं कि भारत में क्रिकेट अगर धर्म है तो सचिन तेंदुलकर इसके भगवान। सचिन का जिक्र इसलिए क्योंकि 24 अप्रैल को उनका जन्मदिन होता है, लेकिन उन्होंने 25 साल पहले अनोखा बर्थडे सेलिब्रेट किया।
इस पटकथा का रंगमंच सात समंदर पार शारजाह में सजा था। भारत, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच ट्रायंगुलर सीरीज खेली जा रही थी। दो दशक से भी अधिक पुराने लेकिन आज भी वैसा ही रोमांच पैदा करने वाले दो मुकाबले खेले गए। सचिन ने कंगारू टीम की जमकर बखिया उधेड़ी।
शुरुआत पहले मैच यानी फाइनल से पहले वाले मुकाबले से। इस कहानी का जिक्र इसलिए क्योंकि आज 22 अप्रैल है और सचिन ने इसी दिन उस समय तक का अपना बेस्ट परफॉर्मेंस किया था।
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भारत को जीत दिलाने में सचिन का रोल कितना अहम है, इसका अंदाजा इसी से होता है कि टीम के टोटल 250 रनों में 143 अकेले सचिन ने बनाए क्रिकेट के शौकीन आज भी शारजाह में खेले गए भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया मुकाबले को चाव से देखते हैं।
भारत को ऑस्ट्रेलिया से जीतने के लिए 46 ओवर में 276 रन बनाने थे। फाइनल के लिए क्वालिफाई करने वाली इंडियन टीम ने 20 गेंद बाकी रहते 237 रन बना लिए, जिसके आधार पर मैच हारने पर भी फाइनल खेला और वहां भी जीती।
भारत से सिर जीत का सेहरा बांधने की कसम के साथ मैदान पर उतरे सचिन ने तूफानी बैटिंग की। कलात्मक चौकों और गगनचुंबी छक्कों की बरसात करने वाले सचिन ने किसी भी ऑस्ट्रेलियन बॉलर को नहीं बख्शा।
25 साल पहले 1998 के इस मुकाबले में सचिन ने 131 गेंदों में 143 रनों की शानदार पारी खेली। उनकी बल्लेबाजी इंडिया को जीत की तरफ ले जा रही थी, लेकिन तभी एक नो बॉल गेंद पर सचिन को आउट करार दिया गया।
अपने सौम्य स्वभाव के लिए मशहूर सचिन ने जेंटलमैन की तरह बिना कोई विरोध किए पवेलियन की राह ली। हालांकि, इसी मुकाबले की वीडियो में जब साथी बैटर लक्ष्मण ने रन भागने से इनकार किया तो सचिन का गुस्सा साफ दिखा था।
दरअसल, जिस गेंद पर सचिन आउट हुए उस शॉर्ट पिच बॉल की हाइट सचिन के कंधे से ऊपर होने के कारण सचिन को लोग नॉटआउट मानते हैं, लेकिन 25 साल पहले तकनीक का उतना इस्तेमाल नहीं होता था।
आज की क्रिकेट में वाइड बॉल जैसे फैसले को भी दोबारा रिव्यू किया जा सकता है, लेकिन उस दौर में वीडियो रीप्ले, स्निको मीटर, अल्ट्रा एज, हॉट स्पॉट और डिसिजन रिव्यू सिस्टम (DRS) जैसी तकनीक नहीं थी तो अंपायर का फैसला अंतिम माना जाता था।