Logo
  • December 4, 2024
  • Last Update November 26, 2024 9:26 pm
  • Noida

Nehru-Gandhi legacy: क्या नेहरू-गांधी की विरासत को आगे बढ़ा पाएंगी Priyanka Gandhi?

Nehru-Gandhi legacy: क्या नेहरू-गांधी की विरासत को आगे बढ़ा पाएंगी Priyanka Gandhi?

Nehru-Gandhi legacy: 23 जनवरी 2019 को, प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस पार्टी की महासचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। 2019 के लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही इनका पार्टी में आना, वास्तव में एक महत्वपूर्ण कदम है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की छोटी बहिन प्रियंका को पार्टी की तरफ से पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी भी बनाया गया है। वास्तव में, ऐसा पहली बार है कि प्रियंका गाँधी को पार्टी के भीतर औपचारिक रूप से किसी पद पर नियुक्त किया गया हो। हालांकि, इन्होंने हमेशा राजनीति में एक सीमांत तरीके से भूमिका निभाई है। वह राहुल और उनकी मां सोनिया गाँधी के साथ रैलियां करती रही हैं।

गांधी नेहरू लाइन
औपचारिक रूप से पार्टी का हिस्सा बनने के साथ प्रियंका गांधी नेहरू परिवार की 11 वीं सदस्य बन गईं हैं जिन्हें राष्ट्रीय स्तर की पार्टी में शामिल किया गया है। असल में, इस वंश का पता देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू से लगाया जा सकता है। मोतीलाल पार्टी के सदस्य थे और इनका नाम भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में प्रमुख था। इन्होंने पार्टी अध्यक्ष के रूप में दो अवसरों पर काम किया – पहले 1919 से 1920 तक और फिर 1928 से 1929 तक।

वंश को आगे ले जाना
भारतीय राजनीति के संदर्भ में इस परिवार की स्थिति बहुत ही जानी-मानी रही है। प्रियंका गांधी इस विशाल वंशावली को सहजता से आगे बढ़ाने जा रही हैं। पूर्वी यूपी (उत्तर प्रदेश) में और कर्नाटक में भी इनकी कुछ बैठकें हो चुकी हैं, जो इनकी मां का संसदीय क्षेत्र है। इन बैठकों में इन्होंने खुद को एक स्पष्ट रूप से मुखर संचारक के रूप में दिखाया है। हालाँकि, जैसा कि इस तरह के मामलों में उम्मीद की जा सकती है, पार्टी के साथ-साथ मीडिया में कुछ अति उत्साही समर्थकों ने इनमें और इनकी दादी इंदिरा गांधी के बीच समानताओं को चित्रित करना शुरू कर दिया है। यह एक जाल है जिससे इन्हें बचने की जरूरत है।

विशिष्ट योगदान के लिए Homeopathic Doctors हुए सम्मानित, मंत्री,अभिनेता और खली हुए शामिल

वह किस चेहरे को अपनाएगी?
प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी ने कई बड़े फैसले तो किए पर इनमें कई बड़ी गलतियां भी शामिल थीं। साल 1959 में जब इंदिरा गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गईं थीं तो उन्होंने यह सोच लिया था कि कम्यूनिस्ट सरकार को किस तरह से किनारे लगाना है। इन्होंने कई निजी स्वामित्व वाले बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया और मालिकों को नोटिस भेजा। आपातकाल से पहले इनके पास मोहन कुमारमंगलम और एएन हस्कर के दर्जे के प्रगतिशील सलाहकार भी थे। हालांकि, आपातकाल इनके लिए अभिशाप साबित हुआ। इससे वामपंथी कंपनी और उन सलाहकारों को वापस लाया गया, जो कॉरपोरेट्स के साथ अधिक श्रेणीबद्ध थे, जिन्हें बैंको से बाहर निकाल दिया गया था। कहने की जरूरत नहीं है, वे अभी भी राष्ट्रीयकृत बैंकों से बेइमानी से पैसे निकाल रहे हैं।

उचित सलाह से वंछित होने से इन्हें स्थानीय सलाह पर निर्भर रहना पड़ा और इस तरह उन्होंने मूल रूप से स्वर्ण मंदिर के मुद्दे पर ध्यान दिया, जिसने अंततः उनकी जान ले ली। वर्षों से सोनिया गांधी ने वाम प्रवृत्ति सलाहकार परिषद का गठन कर पार्टी के मानवीय पक्ष को वापस लाने की कोशिश की। उसी तरह लग रहा है कि प्रियंका गाँधी अपनी दादी के मुकाबले अपनी माँ के नक्शेकदम पर अधिक चलती हैं। उम्मीद की जा रही है कि ये मध्यमवर्गीय चेहरा बन सकती हैं।

editor
I am a journalist. having experiance of more than 5 years.

Related Articles