राजनीतिक दलों की ओर से मुफ्त स्कीमों के ऐलान को लेकर चुनाव आयोग की ओर से उसके खर्च का प्लान मांगे जाने पर कई दलों ने ऐतराज जताया है। आयोग के प्लान का BJP और अकाली दल की ओर से समर्थन किया गया है तो वहीं कांग्रेस और वामपंथी दलों ने उसके दायरे पर ही सवाल उठा दिया है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश की ओर से चुनाव आयोग को दिए गए जवाब में कहा गया है कि यह ऐसा मसला है, जो आपके दायरे में नहीं आता। उन्होंने अपने जवाब में कहा कि न तो सरकार, ना ही अदालत और ना चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में आता है कि वह ऐसे मुद्दों पर कोई निर्णय लें। यही नहीं उन्होंने चुनाव आयोग से कहा कि वह इस पर कोई भी फैसला न ले, यही बेहतर होगा।
यही नहीं संविधान में दिए नियमों का हवाला देते हुए कांग्रेस ने चुनाव आयोग को उसके अधिकार क्षेत्र की याद दिलाई है। कांग्रेस ने अपने लेटर में कहा कि चुुनाव आयोग का यह काम है कि वह फ्री एंड फेयर इलेक्शन कराए। इसके लिए आर्टिकल 324 में उसे अधिकार दिए गए हैं। कांग्रेस ने कहा कि आयोग के पास अधिकार है कि वह नफरती भाषण, सांप्रदायिक तनाव फैलाने वाली चीजों या प्रभाव के बेजा इस्तेमाल पर रोक लगाए। लेकिन जैसे प्रस्ताव की बात की गई है, वैसा कुछ भी करने के लिए संसद से एक अलग कानून पारित कराना होगा। फिलहाल ऐसे किसी प्रस्ताव पर फैसला लेना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है।
यही नहीं कांग्रेस की ओर से चुनाव आयोग को उलटे सीख दी गई है। पार्टी का कहना है कि चुनाव आयोग को सबसे पहले मौजूदा कानूनों को ही ढंग से लागू करने पर ध्यान देना चाहिए। कांग्रेस ने कहा कि एक नियम तो यही है कि चुनाव के दौरान कोई भी राजनीतिक दल सुरक्षा बलों की उपलब्धियों का जिक्र करते हुए श्रेय नहीं लेगा।
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उसका राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास नहीं करेगा। लेकिन 2019 के आम चुनाव में ऐसा ही हुआ था, जब पीएम और गृह मंत्री ने सीधे तौर पर सेना की उपलब्धियों का श्रेय लेने का प्रयास किया। कांग्रेस ने कहा कि इस मामले में हमने सुप्रीम कोर्ट तक जाकर मांग की थी कि आयोग सुनवाई करे, लेकिन हमारी अर्जी को खारिज कर दिया गया।