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  • October 9, 2024
  • Last Update October 5, 2024 3:17 pm
  • Noida

स्‍नैपचैट की रिसर्च से सामने आए भारत के टॉप निकनेम्‍स, दो अनूठे ऑग्‍मेन्‍टेड रिएलिटी(AR) लैंस पेश किए

स्‍नैपचैट की रिसर्च से सामने आए भारत के टॉप निकनेम्‍स, दो अनूठे ऑग्‍मेन्‍टेड रिएलिटी(AR) लैंस पेश किए

भारत में, निकनेम्स रखने की परंपरा सिर्फ नाम रखने तक ही सीमित नहीं है। यहव्‍यक्तिगत पहचान को परिभाषित करने में अहम् भूमिका निभाती है। ये घर का नाम या डाक नाम रखने का चलन हमारे सांस्‍कृतिक ताने-बाने में गुंथा हुआ है।

इस सर्वे से यह खुलासा हुआ है कि पांच सबसे ज्‍यादा प्रचलित उपनाम सोनू, बाबू, छोटू, अन्‍नू और चिंटू हैं। लेकिन अन्‍य क्षेत्रों में कुछ अन्‍य उपनामों को रखने का ज्‍यादा चलन है। उत्‍तर भारत में, गोलू और सनी का जलवा है, जबकि अम्‍मू और माचा जैसे उपनाम दक्षिण के राज्‍यों में ज्‍यादा रखे जाते हैं। पूर्वी भारत में शोना और मिष्‍टी लोकप्रिय हैं तो पश्चिम को पिंकी और दादा ज्‍यादा पसंद हैं।

लोकप्रियता को छोड़ दें तो भी यह जानना दिलचस्‍प है कि प्‍यार-दुलार से रखे गए ये उपनाम भारतीयों को अपने बारे में एक अलग अहसास से भरते हैं और साथ ही, यह भी कि वे दूसरों के साथ कैसे इंटरेक्‍ट करते हैं। पचास फीसदी से अधिक प्रतिभागियों ने बताया कि उनके जीवन में दो से तीन उपनाम तक रह चुके हैं। भले ही आपको यह बात पता हो या नहीं, मगर सच यह है कि ये उपनाम गर्व का भी विषय होते हैं, क्‍योंकि सिर्फ 15% ने ही कहा कि वे सार्वजनिक रूप से अपने उपनामों को इस्‍तेमाल करने पर शर्मिंदगी महसूस करते हैं।

कनिष्‍क खन्‍ना, डायरेक्‍टर मीडिया पार्टनरशिप्‍स – एपीएसी, स्‍नैप इंक. ने कहा, ”निकनेम्स हम भारतीयों की जिंदगी का अहम् हिस्‍सा होते हैं और हमारे असल कनेक्‍शंस यानि हमारे दोस्‍तों या परिवारजनों द्वारा दिए गए होते हैं। हम भारतीयों के निकनेम्स के बारे में कुछ रोचक पहलुओं को उजागर करना चाहते थे – यानि अजीबोगरीब से लेकर अटपटे नाम, रोमांटिक और कभी हास्‍यास्‍पद नाम तक, अब यह कस्‍टम निकनेम एआर अनुभव यूज़र्स को अपनी जिंदगी के नज़दीकी सर्कल के और करीब आने तथा निकनेम्स शेयर करने का मज़ा भी दिलाएगा।”

 

निकनेम्स (उपनामों) से मिलती है कनेक्‍शन बनाने में मदद

इस सर्वे से यह खुलासा हुआ है कि भारतीय संबंधों में गहराई लाने और उन्‍हें अधिक जानदार बनाने के लिए भी उपनामों का इस्‍तेमाल करना पसंद करते हैं। 67% भारतीयों ने कहा कि वे किसी के नज़दीक होने के अहसास को और पुख्‍ता बनाने के लिए उपनामों का इस्‍तेमाल करते हैं। यह एक तरह से भावनात्‍मक जुड़ाव और साथ ही, देश में उपनामों की परंपरा से जुड़े सांस्‍कृतिक संस्‍कारों का सूचक है।

जितने भी लोगों के कभी न कभी उपनाम रहे हैं, उनमें से 60% ने इस बात की पुष्टि की है कि उन्‍हें ये नाम बचपने में या स्‍कूली पढ़ाई के दिनों में मिले थे। लेकिन कइयों के उपनाम तो स्‍कूली पारी शुरू करने से भी पहले के हैं और अब तक चले आ रहे हैं, जो उस व्‍यक्ति की पहचान से जुड़े शुरुआती सफर की ओर इशारा करता है।

उपनामोंसे जुड़ाव का एक अलग अहसास होता है। 61% ने कहा कि उन्‍हें घर में एक अलग नाम से पहचाना जाता है और करीब 60% के सामने ऐसे हालात भी पैदा हो चुके हैं कि दूसरे लोग उन्‍हें उनके असली नाम की बजाय उपनाम से जानते-पहचानते हैं। इस सर्वे के नतीजों से वही सामने आया है जो हमें हमेशा से पता है – यह कि घर में पुकारे जाने वाले प्‍यार के नाम यानि उपनाम में ही हमारी पहचान की असल आत्‍मा छिपी होती है और ये उस जुड़ाव के सूचक होते हैं जो हमें बेहद पसंद आते हैं।

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स्‍नैपचैट पर ये दो निकनेम लैंस 21 जून से उपलब्‍ध होंगे। लैंस कैरोसेल में ‘माय निकनेम IN’ और ‘IN’s टॉपनिकनेम्स’ सर्च करें और फोन को अपने चेहरे की दिशा में घुमाएं। फिर देखिए कि कैसा मज़ेदार अनुभव आपको मिलता है

editor
I am a journalist. having experiance of more than 5 years.

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