Sri Lankan President रानिल विक्रमसिंघे ने जल्दी संसदीय चुनाव कराने की विपक्ष की मांग को बुधवार को खारिज कर दिया और सत्ता बदलने के उद्देश्य से भविष्य में होने वाले किसी भी सरकार विरोधी प्रदर्शन को कुचलने के लिए सेना का इस्तेमाल करने का संकल्प जताया। विक्रमसिंघे (73) ने इस साल जुलाई में श्रीलंका के राष्ट्रपति का पदभार संभाला था। इससे पहले तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे आर्थिक संकट के मद्देनजर भड़के जनाक्रोश तथा विरोध प्रदर्शनों के बीच देश छोड़कर चले गए थे। देश 1948 के बाद सबसे बदतर आर्थिक संकट से जूझ रहा है।
विक्रमसिंघे ने संसद में कहा कि जबतक आर्थिक संकट का समाधान नहीं हो जाता है तबतक वह संसद को भंग नहीं करेंगे। विक्रमसिंघे राजपक्षे के बचे हुए कार्यकाल तक राष्ट्रपति बने रहेंगे जो नवंबर 2024 में खत्म होना है। विपक्षी दल समय से पहले चुनाव कराने की मांग कर रहे हैं। उनका दावा है कि विक्रमसिंघे की सरकार के पास चुनावी विश्वसनीयता की कमी है। राष्ट्रपति का अगला चुनाव 2024 में किया जाएगा। श्रीलंका इस साल की शुरुआत से सबसे खराब आर्थिक संकट से जूझ रहा है और उसके पास आयात के वास्ते भुगतान करने के लिए भंडार समाप्त हो गया।
देश में ईंधर, रसोई गैस के लिए लंबी कतारें देखी गई जबकि दैनिक उपभोग की वस्तुओं की किल्लत हो गई। अप्रैल से सरकार के आर्थिक संकट से निपटने में नाकाम रहने को लेकर व्यापक प्रदर्शन शुरू हुए जिससे राजनीतिक संकट में पैदा हो गया। बुधवार को विक्रमसिंघे ने कहा कि भले ही प्रदर्शनकारी उन्हें “तानाशाह” कहें, लेकिन उन्हें सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करने के लिए पुलिस की अनुमति लेनी होगी। राष्ट्रपति ने कहा, ”सरकार को बेदखल करने के लिए एक और ‘अरागालय’ (सामूहिक विरोध प्रदर्शन) आयोजित करने की योजना है। मैं इसकी अनुमति नहीं दूंगा। अगर वे दोबारा कोशिश करते हैं तो मैं उन्हें रोकने के लिए सेना बुलाउंगा और आपातकालीन कानूनों का इस्तेमाल करूंगा।”
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विक्रमसिंघे को कठोर आतंकवाद निरोधक अधिनियम के तहत कार्रवाई का आदेश देने और कम से कम दो प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लेने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है। विक्रमसिंघे ने कहा कि सड़कों पर हुए प्रदर्शनों के पीछे फ्रंटलाइन सोशलिस्ट पार्टी नाम की कट्टरपंथी राजनीतिक पार्टी थी जो अपने राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहती थी। आर्थिक संकट से निपटने में भारत ने श्रीलंका की मदद की है और उसे चार अरब डॉलर की सहायता दी है।